उदयपुर. राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के तत्त्वावधान में लोक कला मण्डल के सहयोग से शनिवार को राष्ट्रीय लेखक निर्देशक की तीन दिवसीय कार्यशाला प्रारम्भ हुई. कार्यशाला में देश के जाने माने नाट्य विशेषज्ञ, निर्देशक और लेखकों ने इसमें भाग लिया.
लेखकों को आवश्यक सुझाव दिए : राजस्थान मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और राज्यमंत्री रमेश बोराणा ने कार्यशाला के आयोजन के उद्देश्य पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि यह कार्यशाला अपने आप में अनूठी है, क्योंकि इसमें नाटककार, निर्देशक और समीक्षक एक साथ विभिन्न पक्षों पर चर्चा करेंगे. साथ ही अकादमी की नाट्य पाण्डुलिपि प्रतियोगिता के पुरस्कृत नाटकों के लेखकों को आवश्यक सुझाव भी देंगे. उन्होंने कार्यशाला की परिकल्पना के बारे में भी चर्चा की और अकादमी की अध्यक्ष बिनाका मलू का आभार भी जताया.
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नाटक कई कलाओं का अंतरगुंफन : नाटक के उदघाटन सत्र में संबोधित करते हुए नंद किशोर आचार्य ने कहा कि नाटक केवल मंच ही नहीं, एक साहित्यिक कृति भी है. यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि नाटक लिखने के पीछे क्या पाने या देने की मंशा है ? प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक और नाट्य चिंतक भानु भारती ने अपने वक्तव्य में कहा कि नाट्य आलेख सघन नाटकीय अनुभव की सृजनात्मक अभिव्यक्ति है. उन्होने लेखक और निर्देशक के अन्तः संबंधों को भी रेखांकित करते हुए कहा कि नाटक कई कलाओं का अंतरगुंफन है. इस सामाजिक अनुष्ठान में परस्परता है, स्पर्धा नहीं. सत्र संचालन लाईक हुसैन ने किया.
नाटक की क्राफ्ट पता नहीं तो सही आमद नहीं : दूसरे सत्र में मुंबई से आए लेखक और निर्देशक बृज मोहन व्यास ने नाट्य शास्त्र और पश्चिमी नाटक के संदर्भ में निर्देशक की परिकल्पना और भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए. नाट्य लेखन और निर्देशक के सबंध पर लाईक हुसैन ने अगले सत्र में अपने विचार रखे. सत्र का संचालन नाट्य निर्देशक अभिषेक मुद्गल ने किया. अंतिम सत्र में नाट्य समीक्षक राघवेंद्र रावत ने नाटक और सामाजिक सरोकार विषय पर अपने विचार व्यक्त किए. भानु भारती ने निर्देशक की दृष्टि और नाट्य आलेख पर कहा कि अगर नाटक की क्राफ्ट पता नहीं है तो सही आमद नहीं होती. उन्होने कहा कि नाटक में कुछ भी अनायास नहीं होता.
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कई ड्राफ्ट के बाद तैयार होता है एक नाटक : नंद किशोर आचार्य ने नाट्य लेखन, दर्शन और प्रतिबद्धता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नाटक में हम अपने अनुभव को व्यक्त करते हैं, किसी विचार को नहीं. कला को जानना और अभिव्यक्त करने में एक प्रक्रिया से गुजरना होता है. सत्र का संचालन बीकानेर से आए नाट्य निर्देशक विपिन पुरोहित ने किया. अगले सत्र में पुरस्कृत नाटकों के आलेखों पर समग्र चर्चा हुई, जिसमें लेखक और चुनिंदा नाट्य निर्देशकों ने अपने विचार व्यक्त किए. कार्यशाला नाट्य लेखन की प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए अगले सत्र की आधार भूमि रमेश बोराणा ने तैयार की. उन्होने कहा कि कई ड्राफ्ट के बाद कोई एक नाटक तैयार होता है. अंतिम सत्र में नाटक का विषय, लेखक, अभिनेता, निर्देशक और बाज़ार के अंतर संबंधों पर बृज मोहन व्यास ने कहा कि नाम और सम्मान से अर्थव्यवस्था कि कल्पना करना गलत होगा. लेखन प्रक्रिया पर आशीष पाठक ने अपनी रचना प्रक्रिया के साथ-साथ नाट्य लेखन के विभिन्न पक्षों के व्यावहारिक पक्ष पर अपने विचार व्यक्त किए.