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Mahashivratri 2023: मेवाड़ में महाराणा के रूप में पूजे जाते हैं भगवान एकलिंग नाथ, दर्शनमात्र से हर कामना होती है पूरी - Rajasthan hindi news

मेवाड़ की धरती स्वाभिमान और त्याग के लिए जानी जाती है. लेकिन इसके साथ ही ये धरती भगवान एकलिंगनाथ जी के लिए भी पहचानी जाती है. मेवाड़ के अराध्य माने जाने वारे एकलिंगनाथ के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता.

Lord Ekling Nath Temple in Udaipur
Lord Ekling Nath Temple in Udaipur
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Published : Feb 17, 2023, 10:04 PM IST

भगवान एकलिंग नाथ

उदयपुर. उदयपुर. मेवाड़ का नाम सुनते ही स्वाभिमान, मान-सम्मान और त्याग की कहानियां याद आने लगती है. मेवाड़ में ही मुगल आक्रांता अकबर को महाराणा प्रताप ने लोहे के चने हल्दीघाटी में दांतो तले चबा दिए थे. एकमात्र हिंदुस्तान में ऐसी पूर्व रियासत रही जिसने कभी भी आक्रांता के सामने घुटने नहीं टेके. मेवाड़ का नाम आते ही वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जेहन में आते हैं. लेकिन महाराणा प्रताप उदयपुर के राजा नहीं रहे, बल्कि एक दीवान के रूप में काम करते थे. अब आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों? क्योंकि मेवाड़ का असली राजा भगवान एकलिंगनाथ ही हैं.

उदयपुर से 22 किलोमीटर दूर एकलिंग जी का मंदिरः उदयपुर शहर से करीब 22 किलोमीटर दूर भगवान एकलिंग नाथ का मंदिर स्थित है. कैलाशपुरी नामक स्थान पर भगवान एकलिंग नाथ विराजमान है. जहां भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर बना हुआ है. भगवान एकलिंग नाथ ही मेवाड़ के महाराजाओं और यहां की प्रजा के कुल देवता के रूप में पूजे जाते हैं. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि जब भी कोई राजा युद्ध लड़ने के लिए जाता, उससे पहले वह भगवान एकलिंग नाथ के दरबार में जरूर पहुंचता था. उदयपुर के एकलिंग नाथ महादेव को मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजा जाता है और मेवाड़ के महाराणा खुद को दीवान मानकर राज कार्य संपन्न करते हैं. इतिहासकारों ने बताया कि ऐसा आज से नहीं बल्कि 1500 वर्षों से होता आया है. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि युद्ध क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के दौरान जब राजा विजयी घोषित होते थे तो युद्ध के मैदान में मेवाड़ जय स्वामी भगवान एकलिंग नाथ के जयकारे गूंजते थे.

पढ़ें. Mahashivratri 2023: अचलनाथ महादेव की अनूठी महिमा, केवल दर्शन मात्र से ही पूरी हो जाती है हर मनोकामना

इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि बप्पा रावल के काल से मेवाड़ के राजा एकलिंग नाथ को माना जाता है. राजतंत्र के दौरान लिखे गए कई पत्रों में जब किसी को महाराणा आदेश देते तो वे पत्र के अंदर मेवाड़ के दीवान के आदेश से शब्द को काम में लेते थे. इतना ही नहीं युद्ध क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के दौरान जब राजा विजयी घोषित होते थे तो युद्ध के मैदान में मेवाड़ जय स्वामी भगवान एकलिंग नाथ के जयकारे गूंजते थे.

पढ़ें. Mahashivratri 2023: 900 साल पुराना महाकालेश्वर मंदिर, जहां स्वयंभू अलग-अलग स्वरूपों में देते हैं दर्शन

प्रभु के मंदिर का इतिहासः इतिहासकारों के अनुसार नागदा गांव के समीप बप्पा रावल गाय चराने आया करते थे. माना जाता है कि शिव मंदिर में हरित राशि नाम के एक महाराजा पूजा अर्चना करते थे और बप्पा रावल ने उन्हें अपना गुरु भी बनाया था. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने आगे बताया कि हरित राशि जब मोक्ष की ओर जा रहे थे तो उनका रथ बप्पा रावल के आने से पहले ही रवाना हो गया था. हरित राशि को जब बप्पा रावल ने देखा तो हाथ जोड़कर नमन किया उसके बाद हरित राशि ने बप्पा रावल को मेवाड़ का शासक बना दिया.

आराध्य देव के रूप में मेवाड़ में पूजे जाते हैं एकलिंग नाथः मेवाड़ के अधिपति के रूप में भगवान एकलिंग नाथ की पूजा अर्चना की जाती है. यहां देश-दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान महादेव के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. महाराणा मोकल सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू किया था.

पढ़ें. Special: छोटी काशी के ऐसे शिवालय जहां भक्त महाशिवरात्रि पर ही कर सकते हैं दर्शन

भगवान एकलिंग नाथ का 4 मुखी शिवलिंगः जितना पुराना यह प्राचीन मंदिर है. उतनी ही पुरानी इस मंदिर की आस्था है. कहा जाता है कि भगवान के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. स्थानीय व्यक्ति अशोक ने बताया कि भगवान एकलिंग नाथ जी के मंदिर में चौमुखी शिवलिंग विद्यमान हैं. जिसके चार मुख्य हैं, यहां ब्रह्मा, विष्णु,महेश और सूर्य विद्यमान हैं. इसे एकलिंग नाथ के नाम से जानते हैं.

महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा आराधनाः एकलिंग जी मंदिर में इस बार महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा आराधना की जाएगी. महाशिवरात्रि की विशेष पूजा रात्रि 10 बजे से प्रारंभ होती है जो चार प्रहर तक निरंतर चलती रहती है और दूसरे दिन 19 फरवरी प्रात 11:30 से 12:00 के बीच पूर्ण होती है. महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर की पूजा मे प्रत्येक प्रहर में 13 रुद्रीपाठ होते हैं. प्रत्येक प्रहर में सवा सवाल, नौ किलो प्रत्येक दूध, दही, घी, शहद एवं शक्कर का पंचामृत श्री एकलिंग नाथ को धारण होता है. महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर बैंड बजता रहता है.

भगवान एकलिंग नाथ

उदयपुर. उदयपुर. मेवाड़ का नाम सुनते ही स्वाभिमान, मान-सम्मान और त्याग की कहानियां याद आने लगती है. मेवाड़ में ही मुगल आक्रांता अकबर को महाराणा प्रताप ने लोहे के चने हल्दीघाटी में दांतो तले चबा दिए थे. एकमात्र हिंदुस्तान में ऐसी पूर्व रियासत रही जिसने कभी भी आक्रांता के सामने घुटने नहीं टेके. मेवाड़ का नाम आते ही वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जेहन में आते हैं. लेकिन महाराणा प्रताप उदयपुर के राजा नहीं रहे, बल्कि एक दीवान के रूप में काम करते थे. अब आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों? क्योंकि मेवाड़ का असली राजा भगवान एकलिंगनाथ ही हैं.

उदयपुर से 22 किलोमीटर दूर एकलिंग जी का मंदिरः उदयपुर शहर से करीब 22 किलोमीटर दूर भगवान एकलिंग नाथ का मंदिर स्थित है. कैलाशपुरी नामक स्थान पर भगवान एकलिंग नाथ विराजमान है. जहां भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर बना हुआ है. भगवान एकलिंग नाथ ही मेवाड़ के महाराजाओं और यहां की प्रजा के कुल देवता के रूप में पूजे जाते हैं. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि जब भी कोई राजा युद्ध लड़ने के लिए जाता, उससे पहले वह भगवान एकलिंग नाथ के दरबार में जरूर पहुंचता था. उदयपुर के एकलिंग नाथ महादेव को मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजा जाता है और मेवाड़ के महाराणा खुद को दीवान मानकर राज कार्य संपन्न करते हैं. इतिहासकारों ने बताया कि ऐसा आज से नहीं बल्कि 1500 वर्षों से होता आया है. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि युद्ध क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के दौरान जब राजा विजयी घोषित होते थे तो युद्ध के मैदान में मेवाड़ जय स्वामी भगवान एकलिंग नाथ के जयकारे गूंजते थे.

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इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि बप्पा रावल के काल से मेवाड़ के राजा एकलिंग नाथ को माना जाता है. राजतंत्र के दौरान लिखे गए कई पत्रों में जब किसी को महाराणा आदेश देते तो वे पत्र के अंदर मेवाड़ के दीवान के आदेश से शब्द को काम में लेते थे. इतना ही नहीं युद्ध क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के दौरान जब राजा विजयी घोषित होते थे तो युद्ध के मैदान में मेवाड़ जय स्वामी भगवान एकलिंग नाथ के जयकारे गूंजते थे.

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प्रभु के मंदिर का इतिहासः इतिहासकारों के अनुसार नागदा गांव के समीप बप्पा रावल गाय चराने आया करते थे. माना जाता है कि शिव मंदिर में हरित राशि नाम के एक महाराजा पूजा अर्चना करते थे और बप्पा रावल ने उन्हें अपना गुरु भी बनाया था. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने आगे बताया कि हरित राशि जब मोक्ष की ओर जा रहे थे तो उनका रथ बप्पा रावल के आने से पहले ही रवाना हो गया था. हरित राशि को जब बप्पा रावल ने देखा तो हाथ जोड़कर नमन किया उसके बाद हरित राशि ने बप्पा रावल को मेवाड़ का शासक बना दिया.

आराध्य देव के रूप में मेवाड़ में पूजे जाते हैं एकलिंग नाथः मेवाड़ के अधिपति के रूप में भगवान एकलिंग नाथ की पूजा अर्चना की जाती है. यहां देश-दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान महादेव के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. महाराणा मोकल सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू किया था.

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भगवान एकलिंग नाथ का 4 मुखी शिवलिंगः जितना पुराना यह प्राचीन मंदिर है. उतनी ही पुरानी इस मंदिर की आस्था है. कहा जाता है कि भगवान के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. स्थानीय व्यक्ति अशोक ने बताया कि भगवान एकलिंग नाथ जी के मंदिर में चौमुखी शिवलिंग विद्यमान हैं. जिसके चार मुख्य हैं, यहां ब्रह्मा, विष्णु,महेश और सूर्य विद्यमान हैं. इसे एकलिंग नाथ के नाम से जानते हैं.

महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा आराधनाः एकलिंग जी मंदिर में इस बार महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा आराधना की जाएगी. महाशिवरात्रि की विशेष पूजा रात्रि 10 बजे से प्रारंभ होती है जो चार प्रहर तक निरंतर चलती रहती है और दूसरे दिन 19 फरवरी प्रात 11:30 से 12:00 के बीच पूर्ण होती है. महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर की पूजा मे प्रत्येक प्रहर में 13 रुद्रीपाठ होते हैं. प्रत्येक प्रहर में सवा सवाल, नौ किलो प्रत्येक दूध, दही, घी, शहद एवं शक्कर का पंचामृत श्री एकलिंग नाथ को धारण होता है. महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर बैंड बजता रहता है.

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