उदयपुर. प्रदेश के विधानसभा चुनाव में करीब 7 महीने का समय बचा है. इसको लेकर नेताओं का दौर शुरू हो गया है. मेवाड़ में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए भाजपा के नेता लगातार दौरे कर रहे हैं. अब मेवाड़ वागड़ पर फोकस करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उप नेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया भी मेवाड़ के दौरे पर आए हैं. हालांकि दोनों का ही निजी कार्यक्रम बताया जा रहा है, लेकिन सियासी गलियारों में दोनों नेताओं दौरे को लेकर लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं.
वसुंधरा और पूनिया का मेवाड़-वागड़ दौरा : उदयपुर संभाग राजस्थान की राजनीति में विशेष महत्व रखता है. एक पुरानी कहावत है कि राजस्थान में सत्ता का रास्ता मेवाड़ से होकर गुजरता है. अब सतीश पूनिया भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद मां त्रिपुरा सुंदरी के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचे हैं. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि मां त्रिपुरा सुंदरी जी के पास अक्सर आता हूं, वो मुझे ऊर्जा देती हैं. खूब आशीर्वाद भी देती हैं.
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माँ त्रिपुरा सुंदरी जी के पास अक्सर आता हूँ, वो मुझे ऊर्जा देती हैं, ख़ूब आशीर्वाद भी। संयम, ईमानदारी और परिश्रम जो सामाजिक जीवन से सीखा हमेशा उसके लिए प्रेरित भी करती हैं।
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कह तो यही रही हैं कि “सत्यमेव-जयते” pic.twitter.com/8JZYIr4GTZ
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— Satish Poonia (@DrSatishPoonia) April 13, 2023
कह तो यही रही हैं कि “सत्यमेव-जयते” pic.twitter.com/8JZYIr4GTZमाँ त्रिपुरा सुंदरी जी के पास अक्सर आता हूँ, वो मुझे ऊर्जा देती हैं, ख़ूब आशीर्वाद भी। संयम, ईमानदारी और परिश्रम जो सामाजिक जीवन से सीखा हमेशा उसके लिए प्रेरित भी करती हैं।
— Satish Poonia (@DrSatishPoonia) April 13, 2023
कह तो यही रही हैं कि “सत्यमेव-जयते” pic.twitter.com/8JZYIr4GTZ
दोनों ही नेता मेवाड़-वागड़ के नब्ज टटोलेंगे : अपने दौरे के दौरान दोनों ही नेता मेवाड़-वागड़ में भाजपा कार्यकर्ताओं से मुलाकात के साथ सियासी नब्ज को टटोलने का काम करेंगे. दरअसल 28 विधानसभा सीट वाला उदयपुर संभाग राजस्थान में सत्ता के लिए बेहद महत्वपूर्ण संभाग माना जाता है, क्योंकि यहां मिला जनादेश राजस्थान में सत्ता का रास्ता साफ करता है.
पिछले चुनाव के परिणाम : 2008 में परिसीमन के बाद उदयपुर संभाग की विधानसभा सीटें घटकर 28 हो गईं. इससे पहले ये 30 थीं. बात करें वर्ष 1998 से लेकर 2018 के बीच की चुनावों की तो सन् 1998 में कुल 30 सीटें थीं, तब कांग्रेस को 23, भाजपा को 4 और अन्य के खाते में 3 गईं. सन् 2003 में कुल 30 ही विधानसभा सीटें थीं. इसमें से कांग्रेस को 7, भाजपा को 21 और अन्य को 2 सीटें मिलीं. सन् 2008 कुल सीटें सिमट कर 28 हो गईं. इनमें कांग्रेस को 20, भाजपा को 6 और अन्य को 2 सीटें मिलीं. सन् 2013 में कुल 28 सीटें थीं. यहां कांग्रेस को दो, भाजपा को 25 और अन्य के खाते में 1 सीटें गई. 2018 विधानसभा में कुल 28 सीटें थीं. इसमें कांग्रेस को दस, भाजपा को 15 और अन्य को 3 मिलीं.