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लोकरंग का 8वां दिन: जल तरंग और लोक वाद्य यंत्रों से मंत्रमुग्ध हुए संगीत प्रेमी

राजधानी में आयोजित 'लोकरंग' समारोह अपनी अद्भूत छठा बिखेर रहा है. लोकरंग का 8वां दिन भी उत्साह और उमंग से भरा रहा. 8वें दिन उस्ताद निसार हुसैन ग्रुप ने अपनी शानदार प्रस्तुति से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. इसके साथ ही लोक कलाकारों ने मध्यप्रदेश का 'बधाई' और यूपी का 'ढेढिया' लोकनृत्य प्रस्तुत कर लोगों की खूब वाहवाही लूटी.

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Published : Oct 19, 2019, 10:55 AM IST

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जयपुर. जवाहर कला केन्द्र में ‘लोकरंग‘ के 8वें दिन उस्ताद निसार हुसैन ग्रुप ने शानदार प्रस्तुतियां दी. कार्यक्रम में संगीत प्रेमी तराना और सूफी गायन प्रस्तुति से सभी सराबोर हो गए. ‘सबरंग‘ नाम से आयोजित इस विशेष प्रस्तुति में जल तरंग, संतुर, बांसुरी, की मधुर धुनों ने सभी के दिलों को छुआ. प्रस्तुति में मृदंग, तबला, ढोलक, नक्कारा, सितार के अतिरिक्त मोरचंग, खडताल, रावणहत्था, अलगोजा, शहनाई जैसे लोक वाद्य यंत्रों को भी रचनात्मकता के साथ शामिल किया गया.

जयपुर लोकरंग समारोह का 8वें दिन कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुतियां

उत्तरप्रदेश का 'ढेढिया' लोकनृत्य रहा खास

कलाकारों की प्रस्तुतियों में अवध का लोकनृत्य 'ढेढिया' सबसे खास रहा. रावण वध के बाद भगवान श्रीराम के फिर से अयोध्या आने की खुशी में ढेढिया नृत्य किया गया था. मान्यता है कि स्वयं सीताजी ने अपने मायके मिथिला जाकर यह नृत्य किया था. महिलाएं रंगीन वस्त्रों में सिर पर जलता हुए दीपक रखकर यह लोकनृत्य पेश करती है तो नजारा अद्भुत बन जाता है. इस अवसर पर नृत्य निर्देशक, बीना सिंह का रचित मधुर गीत 'ताल बोयो ममरी, पाताल बोयो ममरी, ममरी का फूल कचनार घूमर ममरी' ने प्रस्तुति में नया आकर्षण जोड़ा. महिलाओं की वेशभूषा में लहंगा, चुन्नी, कुर्ती, गले में हार, कर्णफूल, गुलबन्द, मांगटीका, नथ और बालों में गजरा शामिल था.

पढ़ें- लोक गीतों और डांस की प्रस्तुतियों के जरिए कलाकारों ने सजा दी सुरीली सांझ

राग भोपाली में शिव प्रस्तुति 'हरिओम नमः शिवाय' के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. इसके बाद ताल अद्धा और द्रुत लय तीन ताल में तराना की अनोखी प्रस्तुति से सभी श्रोता कर्णप्रिय संगीत में मग्न हो गए. 'मन कुंतो मौला' सूफी गाने की दमदार प्रस्तुति से केन्द्र परिवेश का माहौल आध्यात्मिक हो गया. कार्यक्रम में गायन, पखावज और पढंत पर निसार हुसैन थे. उनके साथ ही अतिरिक्त अल्लारखा (सितार), फतेहअली (संतुर), गुलाम गोश और शफाक (तबला) आदि कलाकार भी शामिल थे.

पढ़ें- जयपुर में लोकरंग के 6वें दिन देश भक्ति गानों पर थिरके कलाकार, स्वर लहरियां पर झूमे संगीत प्रेमी

मध्यप्रदेश के बधाई लोकनृत्य ने जमाया रंग

इस अवसर पर मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड से आए लोक कलाकारों ने नदीम राईन के निर्देशन में पारम्परिक 'बधाई' लोकनृत्य की रंगबिरंगी प्रस्तुति दी. किसी परिवार में बच्चे के जन्म होने पर घर के सभी सदस्य शीतला माता के समक्ष यह लोकनृत्य करते हैं. महिला और पुरुष नर्तकों ने पारम्परिक वेशभूषा में 'जन्म लिया रघुरैया अवध में बाजे बधईया' गीत पर मार्शल आर्ट की प्रस्तुति देते हुए यह नृत्य पेश किया. थाली में दीपक और हाथ में चक्र का संचालन करते हुए नर्तकों ने खूब तालियां बटोरी. यह प्रस्तुति ढोलक, नगड़िया, लोटा, ढपला, रमतूला, बांसुरी के रोचक संगीत के साथ पेश की गई.

जयपुर. जवाहर कला केन्द्र में ‘लोकरंग‘ के 8वें दिन उस्ताद निसार हुसैन ग्रुप ने शानदार प्रस्तुतियां दी. कार्यक्रम में संगीत प्रेमी तराना और सूफी गायन प्रस्तुति से सभी सराबोर हो गए. ‘सबरंग‘ नाम से आयोजित इस विशेष प्रस्तुति में जल तरंग, संतुर, बांसुरी, की मधुर धुनों ने सभी के दिलों को छुआ. प्रस्तुति में मृदंग, तबला, ढोलक, नक्कारा, सितार के अतिरिक्त मोरचंग, खडताल, रावणहत्था, अलगोजा, शहनाई जैसे लोक वाद्य यंत्रों को भी रचनात्मकता के साथ शामिल किया गया.

जयपुर लोकरंग समारोह का 8वें दिन कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुतियां

उत्तरप्रदेश का 'ढेढिया' लोकनृत्य रहा खास

कलाकारों की प्रस्तुतियों में अवध का लोकनृत्य 'ढेढिया' सबसे खास रहा. रावण वध के बाद भगवान श्रीराम के फिर से अयोध्या आने की खुशी में ढेढिया नृत्य किया गया था. मान्यता है कि स्वयं सीताजी ने अपने मायके मिथिला जाकर यह नृत्य किया था. महिलाएं रंगीन वस्त्रों में सिर पर जलता हुए दीपक रखकर यह लोकनृत्य पेश करती है तो नजारा अद्भुत बन जाता है. इस अवसर पर नृत्य निर्देशक, बीना सिंह का रचित मधुर गीत 'ताल बोयो ममरी, पाताल बोयो ममरी, ममरी का फूल कचनार घूमर ममरी' ने प्रस्तुति में नया आकर्षण जोड़ा. महिलाओं की वेशभूषा में लहंगा, चुन्नी, कुर्ती, गले में हार, कर्णफूल, गुलबन्द, मांगटीका, नथ और बालों में गजरा शामिल था.

पढ़ें- लोक गीतों और डांस की प्रस्तुतियों के जरिए कलाकारों ने सजा दी सुरीली सांझ

राग भोपाली में शिव प्रस्तुति 'हरिओम नमः शिवाय' के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. इसके बाद ताल अद्धा और द्रुत लय तीन ताल में तराना की अनोखी प्रस्तुति से सभी श्रोता कर्णप्रिय संगीत में मग्न हो गए. 'मन कुंतो मौला' सूफी गाने की दमदार प्रस्तुति से केन्द्र परिवेश का माहौल आध्यात्मिक हो गया. कार्यक्रम में गायन, पखावज और पढंत पर निसार हुसैन थे. उनके साथ ही अतिरिक्त अल्लारखा (सितार), फतेहअली (संतुर), गुलाम गोश और शफाक (तबला) आदि कलाकार भी शामिल थे.

पढ़ें- जयपुर में लोकरंग के 6वें दिन देश भक्ति गानों पर थिरके कलाकार, स्वर लहरियां पर झूमे संगीत प्रेमी

मध्यप्रदेश के बधाई लोकनृत्य ने जमाया रंग

इस अवसर पर मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड से आए लोक कलाकारों ने नदीम राईन के निर्देशन में पारम्परिक 'बधाई' लोकनृत्य की रंगबिरंगी प्रस्तुति दी. किसी परिवार में बच्चे के जन्म होने पर घर के सभी सदस्य शीतला माता के समक्ष यह लोकनृत्य करते हैं. महिला और पुरुष नर्तकों ने पारम्परिक वेशभूषा में 'जन्म लिया रघुरैया अवध में बाजे बधईया' गीत पर मार्शल आर्ट की प्रस्तुति देते हुए यह नृत्य पेश किया. थाली में दीपक और हाथ में चक्र का संचालन करते हुए नर्तकों ने खूब तालियां बटोरी. यह प्रस्तुति ढोलक, नगड़िया, लोटा, ढपला, रमतूला, बांसुरी के रोचक संगीत के साथ पेश की गई.

Intro:जयपुर
एंकर- जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में ‘लोकरंग‘ के 8वें दिन, उस्ताद निसार हुसैन ग्रुप ने शानदार प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम में संगीत प्रेमी तराना एवं सूफी गायन प्रस्तुति से सराबोर हुए। ‘सबरंग‘ नाम से आयोजित इस विशेष प्रस्तुति में जल तरंग, संतुर, बांसुरी, की मधुर धुनों ने सभी के दिलों को छुआ। प्रस्तुति में मृदंग, तबला, ढोलक, नक्कारा, सितार, के अतिरिक्त मोरचंग, खडताल, रावणहत्था, अलगोजा, शहनाई जैसे लोक वाद्य यंत्रों को भी रचनात्मकता के साथ शामिल किया गया। Body:उत्तरप्रदेश का देेधिया लोकनृत्य रहा खास
कलाकारों की प्रस्तुतियों में अवध का लोकनृत्य ‘डेढ़िया‘ सबसे खास रहा। रावण वध के बाद श्रीराम के फिर से अयोध्या आने की खुशी में डेढ़िया नृत्य किया गया था। किवदंती है कि स्वयं सीता जी ने यह नृत्य अपने मायके मिथिला में जा कर यह नृत्य किया था। महिलाएं रंगीन वस्त्रों में सिर पर ‘ डेढ़िया‘ में जलता हुए दीपक रख कर यह लोकनृत्य पेश करती है तो अद्भुत नजारा होता है। इस अवसर पर नृत्य निर्देशक, बीना सिंह द्वारा रचित मधुर गीत ‘ताल बोयो ममरी, पाताल बोयो ममरी, ममरी का फूल कचनार घूमर ममरी‘ ने प्रस्तुति में नया आकर्षण जोडा। महिलाओं की वेशभूषा में लहंगा, चुन्नी, कुर्ती, गले में हार, कर्णफूल, गुलबन्द, मांगटीका, नथ और बालों में गजरा शामिल था। 
राग भोपाली में ताल अद्धा में शिव प्रस्तुति ‘हरिओम नमः शिवाय‘ के साथ कार्यक्रम की शुरूआत हुई। इसके बाद ताल अद्धा और द्रुत लय तीन ताल में तराना की अनोखी प्रस्तुति से सभी श्रोता कर्णप्रिय संगीत में मग्न हो गए। ‘मन कुंतो मौला‘ सूफी गाने की दमदार प्रस्तुति से केन्द्र परिवेश का माहौल आध्यात्मिक हो गया। कार्यक्रम में गायन, पखावज और पढंत पर निसार हुसैन थे। उनके अतिरिक्त अल्लारखा (सितार), फतेहअली (संतुर), गुलाम गोश एवं शफाक (तबला) आदि कलाकार भी शामिल थे। 

मध्यप्रदेश के बधाई लोकनृत्य में जमाया रंग
इस अवसर पर रंग जमाते हुए मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड से आए लोककलाकारों ने नदीम राईन के निर्देशन में प्रसिद्ध एवं पारम्परिक ‘बधाई‘ लोकनृत्य की रंगबिरंगी प्रस्तुति दी। किसी परिवार में बच्चे के जन्म होने पर घर के सभी सदस्य शीतला माता के समक्ष यह लोकनृत्य अत्यंत हर्षोल्लास के साथ करते हैं। महिला एवं पुरुष नर्तकों ने पारम्परिक वेशभूषा में ‘जन्म लिया रघुरैया अवध में बाजे बधईया‘ गीत पर मार्शल आर्ट की प्रस्तुति देते हुए यह नृत्य पेश किया। थाली में दीपक और हाथ में चक्र का संचालन करते हुए नर्तकों ने खूब तालियां बटोरीे। यह प्रस्तुति ढोलक, नगडिया, लोटा, ढपला, रमतूला, बांसुरी के रोचक संगीत के साथ पेश की गई। 

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