टोंक. कोरोना संकट में पहली लहर में मजदूरों का पलायन खूब हुआ और दूसरी लहर में आज मजदूर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी परिवार के लिए कैसे करे, उनके सामने संकट यह है. मजदूर दिवस पर उनके हितों की रक्षा के लिए भले ही बातें बड़ी-बड़ी हों, पर न आज मजदूरों के परिवार की किसी को परवाह है, न ही कोई उनके लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहा है. ऐसे में सचिन पायलट की विधानसभा वाले टोंक जिले में मजदूरी कर अपना पेट पालने वालो के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराता जा रहा है.
कोरोना संकट काल में मजदूर दिवस की अहमियत ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर में यदि किसी की रोजी-रोटी पर बनी है, तो वह मजदूर वर्ग ही है. टोंक जिले में भी कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर इन्हीं मजदूरों को परेशान किए हुए है. जिले में हजारों मजदूर बेरोजगार होकर घर बैठने को मजबूर हैं. जिला मुख्यालय पर घंटाघर क्षेत्र में रोजाना काम पाने के लिए मजदूरों का जमावड़ा लगता है, लेकिन अप्रैल के शुरुआती दिनों में शुरु हुई कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक होने पर 16 अप्रैल को वीकेंड कर्फ्यू और उसके बाद 19 अप्रैल से 3 मई तक जारी जन अनुशासन पखवाड़े के तहत सुबह 11 बजे के बाद बाजार बंद होने से मजदूरों का काम छिन गया हैं. हालात यह हैं कि कई मजदूर आस-पास के लोगों से उधार लेने के अलावा सूदखोरों के सहारे घर खर्च चला रहे हैं.
रामलाल कुम्हार, राजेश, धन्ना, मुकेश, गिरधर सहित कई मजदूर यहां पर आने रोजाना काम की तलाश में रोजाना आ रहे हैं, लेकिन उन्हें हर बार मायूस होकर घर लौटना पड़ता है. जब इन्हीं मजदूरों से मजदूर दिवस और उनके अधिकारों की बात पूछी गई तो उन्होंने बताया कि साहब सिर्फ कागजों में मिलता है. इन्हीं में से कई को तो मजदूर दिवस का मतलब तक पता नहीं. वहीं जिले की विभिन्न मंडियों में काम बंद होने से पल्लेदारी करने वाले मजदूर भी परेशान हैं.
काम नहीं घर कैसे चलाएं
कोरोना संक्रमण पर सुभाष बाजार निवासी गोपीलाल रैगर का कहना है कि सालभर से परेशान हैं, पिछले 10 दिनों से लॉकडाउन के कारण काम नहीं मिला. मोदी के चौकी निवासी गिरधर सिंह कहते हैं कि दो महिने में एक-दो दिन ही काम मिल पाया है. पंचकुइयां दरवाजा के रहने रामलाल कुम्हार कहते हैं कि मजदूर दिवस मनाने का कोई औचित्य नही है, जब तक सरकार और प्रशासन मजदूरों का भला नहीं कर सके. कागजों में मजदूरों के लिए कई योजनाए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है. जन अनुशासन पखवाड़े के नाम पर काम नहीं करने दिया जा रहा है. काम नहीं करेंगे तो परिवार कैसे चलाएंगे.
कई प्रवासी मजदूर वापस लौटे
पिछले साल लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की तस्वीर दुनियाभर में सोशल मीडिया के जरिए वायरल होने के साथ ही टीवी और न्यूज पेपर सुर्खियां बनी. बहीर निवासी सलमान ने बताया कि बढ़ते संक्रमण की वजह से 15 दिन पहले घर लौट आए, लेकिन परिवार चलाने के लिए कुछ नहीं है. प्रशासन और भामाशाह भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे. वहीं ईद माेहम्मद कहते हैं कि संक्रमण से बचने और सरकारी गाइडलाइन की पालन के लिए एक महीने से काम-धंधा बंद कर वापस घर आए गए. एक महीने से काम नही है. आस-पड़ोस से उधार लेकर या ब्याज पर पैसा लेकर काम चला रहे हैं.