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हाईकोर्ट ने कहा- किशोर को अतीत के बोझ से मुक्त कर नई शुरुआत का अवसर देना उचित, बर्खास्तगी आदेश निरस्त - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाईकोर्ट ने 16 साल पुराने सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है.

COURT CANCELLED THE DISMISSAL ORDER,  DISMISSAL ORDER OF CONSTABLE
राजस्थान हाईकोर्ट. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 18, 2025, 9:22 PM IST

जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने किशोरावस्था में किए अपराध की जानकारी नहीं देने पर कांस्टेबल को सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने 6 मई, 2008 को जारी बर्खास्तगी आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभों के साथ पुन: सेवा में लेने के आदेश दिए हैं. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश सुरेश कुमार की ओर से 16 साल पहले दायर याचिका का निस्तारण करते हुए दिए. अदालत ने राज्य सरकार को कहा कि अदालती आदेश की पालना में समस्त कार्रवाई तीन माह में पूरी की जाए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किशोर न्याय अधिकरण के तहत किशोर को किसी मामले में दोषी ठहराया जाता है तो अपील का समय समाप्त होने के बाद उसका समस्त रिकॉर्ड हटा दिया जाता है. ऐसे में किसी किशोर को उसके अतीत में किए अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि अतीत के अपराध के कारण उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता और उसे एक नई शुरुआत का अवसर दिया जाना चाहिए.

पढ़ेंः जीवन भर की पेंशन रोकने का आदेश रद्द, पूर्व आरएएस को मिलेगी 24 साल की बकाया पेंशन - Rajasthan High Court

याचिका में अधिवक्ता सार्थक रस्तोगी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता का साल 2008 में कांस्टेबल पद पर चयन हुआ था. वहीं, विभाग ने 6 मई, 2008 को उसे यह कहते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया कि उसने नियुक्ति के समय किशोरावस्था में किए अपराध और मामले में किशोर बोर्ड की ओर से उसे दी गई सजा को छिपाया था. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को 16 नवंबर, 2004 को किशोर बोर्ड ने दोषी ठहराया था और चेतावनी देकर छोड़ दिया था. वहीं, चार साल बाद उसका कांस्टेबल पद पर चयन हो गया. याचिका में बताया गया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 19 के तहत किशोर अवस्था में किया गया अपराध किसी निर्योग्यता का कारण नहीं हो सकता.

इसके अलावा यदि उसे सजा मिलती है तो अपील का समय बीतने के बाद उस प्रकरण के पूरी रिकॉर्ड को हटा दिया जाता है. याचिकाकर्ता से जुडे़ मामले का रिकॉर्ड भी हटने के कारण उसे नियुक्ति के समय इसकी जानकारी नहीं दी थी. ऐसे में उसे सेवा में बहाल किया जाए. इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 436, 457 और धारा 380 के तहत दोषी माना गया था. याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को छिपाया जो उसके चरित्र को दर्शाता है. ऐसे में कदाचार के कारण याचिकाकर्ता को सेवा से हटाया गया. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभ सहित सेवा में पुन: बहाल करने के आदेश दिए हैं.

जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने किशोरावस्था में किए अपराध की जानकारी नहीं देने पर कांस्टेबल को सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने 6 मई, 2008 को जारी बर्खास्तगी आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभों के साथ पुन: सेवा में लेने के आदेश दिए हैं. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश सुरेश कुमार की ओर से 16 साल पहले दायर याचिका का निस्तारण करते हुए दिए. अदालत ने राज्य सरकार को कहा कि अदालती आदेश की पालना में समस्त कार्रवाई तीन माह में पूरी की जाए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किशोर न्याय अधिकरण के तहत किशोर को किसी मामले में दोषी ठहराया जाता है तो अपील का समय समाप्त होने के बाद उसका समस्त रिकॉर्ड हटा दिया जाता है. ऐसे में किसी किशोर को उसके अतीत में किए अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि अतीत के अपराध के कारण उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता और उसे एक नई शुरुआत का अवसर दिया जाना चाहिए.

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याचिका में अधिवक्ता सार्थक रस्तोगी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता का साल 2008 में कांस्टेबल पद पर चयन हुआ था. वहीं, विभाग ने 6 मई, 2008 को उसे यह कहते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया कि उसने नियुक्ति के समय किशोरावस्था में किए अपराध और मामले में किशोर बोर्ड की ओर से उसे दी गई सजा को छिपाया था. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को 16 नवंबर, 2004 को किशोर बोर्ड ने दोषी ठहराया था और चेतावनी देकर छोड़ दिया था. वहीं, चार साल बाद उसका कांस्टेबल पद पर चयन हो गया. याचिका में बताया गया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 19 के तहत किशोर अवस्था में किया गया अपराध किसी निर्योग्यता का कारण नहीं हो सकता.

इसके अलावा यदि उसे सजा मिलती है तो अपील का समय बीतने के बाद उस प्रकरण के पूरी रिकॉर्ड को हटा दिया जाता है. याचिकाकर्ता से जुडे़ मामले का रिकॉर्ड भी हटने के कारण उसे नियुक्ति के समय इसकी जानकारी नहीं दी थी. ऐसे में उसे सेवा में बहाल किया जाए. इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 436, 457 और धारा 380 के तहत दोषी माना गया था. याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को छिपाया जो उसके चरित्र को दर्शाता है. ऐसे में कदाचार के कारण याचिकाकर्ता को सेवा से हटाया गया. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभ सहित सेवा में पुन: बहाल करने के आदेश दिए हैं.

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