ETV Bharat / state

पक्के मकान को तरस रहे गाड़िया लोहार

सरकार आती है और चली जाती है पर समाज की मुख्यधारा में एक समूह ऐसा भी है जिसे आज तक आशियाने नसीब नहीं हुए हैं. आजादी के बाद से आज तक गाड़िया लोहार अपनी गाड़ियों में घर बनाकर रहते आये हैं, यही सिलसिला लगातार आज भी जारी है.

कच्चे मकानों में रह रहे गाड़िया लोहार
author img

By

Published : May 11, 2019, 5:52 PM IST

टोंक. शहर में आज भी गाड़िया लोहारों को कोई सी भी सरकारी मदद नहीं मिली है. यह लोग लोहे के समान बेचकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करते हैं. कभी अपनी तकदीर पर आंसु बहाते हैं कभी सरकारी दफ्तरों पर अर्जी लगाते हैं, कभी प्रशासन से मकानों की गुहार लगाते हैं पर उनकी जिंदगी का सफर गाड़ी में बने घर से शुरू होता है और इसी घर में उनके सपने भी दफन होकर रहे जाते हैं.

सरकार भी इनके पुर्नवास के प्रति गंभीर नजर नहीं आती. यही वजह है कि गाड़िया लोहार आज भी कड़ी मेहनत कर लोहा के समान बनाकर बेचते हैं और अपने परिवार का पेट पालते हैं. आजादी के सालों बाद भी राजस्थान के गाड़िया लोहार एक अदद मकान के लिये भटकते नज़र आते हैं.

पक्के मकान को तरस रहे गाड़ूिया लोहार

वहीं वह कहते हैं कि आज दिन तक हमे कोई भी मदद नहीं मिली है. गर्मी हो या बारिश, हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कहते हैं कि महाराणा प्रताप ने जब चित्तौड़ को छोड़ जंगलों का रुख किया तो उन्हीं के साथ गाड़िया लुहारों के पूर्वजों ने भी अपने घर छोड़कर सोगन्ध खाई थी कि बिना चित्तौड़ को आजाद कराए वो कभी घर बनाकर नहीं रहेंगे. देश आजाद हुआ और कई सरकारें आकर चली गई. ऐसा नहीं है कि कोई योजनाएं इनके लिए नहीं दी गई लेकिन उन योजनाओं का आज तक इन गाड़िया लोहारों को कोई फायदा नहीं मिल सका है, यही कारण है कि इन्हें आज तक कोई घर की छत नसीब नहीं है.

टोंक. शहर में आज भी गाड़िया लोहारों को कोई सी भी सरकारी मदद नहीं मिली है. यह लोग लोहे के समान बेचकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करते हैं. कभी अपनी तकदीर पर आंसु बहाते हैं कभी सरकारी दफ्तरों पर अर्जी लगाते हैं, कभी प्रशासन से मकानों की गुहार लगाते हैं पर उनकी जिंदगी का सफर गाड़ी में बने घर से शुरू होता है और इसी घर में उनके सपने भी दफन होकर रहे जाते हैं.

सरकार भी इनके पुर्नवास के प्रति गंभीर नजर नहीं आती. यही वजह है कि गाड़िया लोहार आज भी कड़ी मेहनत कर लोहा के समान बनाकर बेचते हैं और अपने परिवार का पेट पालते हैं. आजादी के सालों बाद भी राजस्थान के गाड़िया लोहार एक अदद मकान के लिये भटकते नज़र आते हैं.

पक्के मकान को तरस रहे गाड़ूिया लोहार

वहीं वह कहते हैं कि आज दिन तक हमे कोई भी मदद नहीं मिली है. गर्मी हो या बारिश, हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कहते हैं कि महाराणा प्रताप ने जब चित्तौड़ को छोड़ जंगलों का रुख किया तो उन्हीं के साथ गाड़िया लुहारों के पूर्वजों ने भी अपने घर छोड़कर सोगन्ध खाई थी कि बिना चित्तौड़ को आजाद कराए वो कभी घर बनाकर नहीं रहेंगे. देश आजाद हुआ और कई सरकारें आकर चली गई. ऐसा नहीं है कि कोई योजनाएं इनके लिए नहीं दी गई लेकिन उन योजनाओं का आज तक इन गाड़िया लोहारों को कोई फायदा नहीं मिल सका है, यही कारण है कि इन्हें आज तक कोई घर की छत नसीब नहीं है.

Intro:दर-दर भटकते गाड़िया लुहारू...

एंकर- सरकार आती है ओर चली जाती है पर समाज की मुख्यधारा में एक समूह ऐसा भी है जिसे आज तक आशियाने तक नसीब नही है, ओर आजादी के बाद से आज तक गाड़िया लुहारू अपनी गाड़ियों में घर बनाकर रहते आये हैं, ओर यह सिलसिला लगातार जारी है। टोंक के गाड़िया लुहारू को आज तक कोई सी भी सरकार से मदद नही मिली है और लोहे के समान बेचकर अपना ओर अपने परिवार का गुजारा करते हैं।


Body:वीओ-02- कभी अपनी तकदीर पर आंसु बहाते है कभी सरकार के कारिंदों के दर पर अर्जी लगाते हैं, कभी प्रशासन से मकानों की गुहार लगाते हैं पर उनकी जिंदगी का सफर गाड़ी में बने घर से शुरू होता है और इसी गाड़ी में बने घर मे उनके सपने दफन होकर रहे जाते हैं, ना करने को कोई काम है ना ही सरकार इनके पुर्नवास के प्रति गंभीर है, ओर यह महज लोहा के समान बनाकर यह अपना ओर अपने परिवार का पेट पालते हैं, ओर प्रतिदिन मजदूरी करके परिवार का पेट भरते हैं,यही कारण है कि आजादी के सालो बाद भी राजस्थान के गाड़िया लुहारू एक अदद मकान के लिये भटकते नज़र आते हैं। वही वह कहते हैं कि आज दिन तक हमे कोई भी मदद नही मिली है,गर्मी और बारिश के दिनों में हमे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

बाईट-01- बाबू लाल-गाड़िया लुहार
बाईट-02-जगदीश -गाड़िया लुहार
बाईट-03-मनोज कुमार-सहायक निर्देशक- सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग टोंक


Conclusion:फाइनल वीओ- कहते हैं कि महाराणा प्रताप ने जब चितौड़ को छोड़ जंगलो का रुख किया तो उन्हीं के साथ इन्ही गाड़िया लुहारों के पूर्वजों ने भी अपने घर छोड़कर सोगन्ध खाई थी कि बिना चितौड़ को आजाद कराए वो कभी घर बनाकर नही रहेगे, देश आजाद हुआ और सरकारे आई और चली गई तो कई योजनाए आयी पर उन योजनाओं को आज तक इन गाड़िया लुहारों को कोई फायदा नही मिला है, यही कारण है कि इन्हें आज तक कोई घर की छत नसीब नही है।

रविश टेलर

टोंक
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.