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Special: 'सेम' से उपजाऊ जमीन दलदल में तब्दील, खारा पानी खेतों को बना रहा बंजर...किसान परेशान

फसलों के लिए पानी जीवनदायी होता है लेकिन यही पानी फसलों को तबाह भी करता है, कभी बारिश तो कभी बाढ़ के रूप में. अब श्रीगंगानगर में किसान इसी पानी के कारण परेशान है. किसानों की खेती की जमीन दलदली हो रही है, सेम के चपेट में आने से किसानों की उपजाऊ जमीन बेकार होने के कगार पर है, जिससे किसान परेशान हैं.

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Published : Dec 2, 2020, 7:43 PM IST

farmer of Sriganganagar worried,  Rajasthan news
सेम की चपेट में श्रीगंगानगर

श्रीगंगानगर. पानी तो जीवन देती है. जीवों की प्यास बुझाती है. ये पानी जब धरती के सूखे कंठ को तर करती है तो बीजे अंकुरित होती है. फसलें लहलहा उठती है पर यही पानी विकराल रूप धरे तो विनाश का कारण भी बन सकती है. ऐसा हुआ है श्रीगंगानगर में. श्रीगंगानगर में किसानों के सामने 'सेम' नाम की नई परेशानी आ गई है, जिससे किसानों की सोना उगलनेवाली धरती बंजर होने के कगार पर है.

सेम की चपेट में श्रीगंगानगर

किसान कभी बारिश, कभी ओले तो कभी वृष्टि की मार झेलते रहते हैं. वहीं अब श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के किसानों के सामने नहीं परेशानी आ गई है. परेशानी का नाम है सेम.

आइए जानते क्या है सेम ?

सेम क्षेत्र की जमीन दलदली हो जाती है. भूजल स्तर भी बढ़ जाता है. सेम असल में इसी दलदल और रिसाव का ही नतीजा है. जिसमें खारा पानी खेती वाली जमीन को बंजर बना देता है. जिससे फसलों से लहराते खेत लवणीय पानी से भर जाते हैं.

हजारों बीघा जमीन सेम प्रभावित

श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के कुछ क्षेत्र सेम प्रभावित हैं. यहां किसानों की हजारों बीघा हेक्टेयर जमीन सेम से तबाह हो रही है. टिब्बी तहसील के आधा दर्जन गांव की हजारों बीघा कृषि भूमि सेम की चपेट में है. वहीं पीलीबंगा रावतसर और जाखडावाली के आसपास 32 किलोमीटर एरिया भी सेम से घिरा हुआ है. गांव और ढाणियों में सेम आ चुकी है.

farmer of Sriganganagar worried,  Rajasthan news
उपजाऊ जमीन दलदल में तब्दील

हनुमानगढ़ जिले के रावतसर, पीलीबंगा, टीबी के अलावा श्रीगंगानगर जिले में भी अब सेम ने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. सूरतगढ़ तहसील का कुछ क्षेत्र सेम समस्या से परेशान है तो वहीं सूरतगढ़ के बड़ोपल को सेम ने अपनी जकड़न में ले लिया है. गंगनहर बेल्ट के नीचे आने वाले कुछ गांव भी में सेम की समस्या सामने आई है.

क्यों हुई ये स्थिति ?

जानकारों का कहना है कि इंदिरा गांधी नहर परियोजना के तहत सिंचाई के लिए हनुमानगढ़ जिले में कई नहरों का निर्माण किया गया है. इन्हीं नहरों के आसपास की जमीन दलदली हो गई है. खेती वाली जमीन अब बेकार होती जा रही है. नहर से रिसाव को ही इसके पीछे मुख्य वजह बताया जाता है.

यह भी पढ़ें. Special : क्रॉप इंप्रूवमेंट, प्रोडक्शन और प्रोटेक्शन की नई तकनीकें सीख रहे कृषि विद्यार्थी...किसानों की बढ़ेगी आय

सेम के कारण अब श्रीगंगानगर के किसान अपनी ही जमीन पर खेती नहीं कर सकते क्योंकि उनकी जमीन अब खेती करने लायक नहीं रही है. रावतसर कस्बे का में स्थित और बुरी है. यहां के किसानों का कहना है कि यही हाल रहा तो पलायन करना पड़ेगा.

तीन दशक से जस की तस बनी है समस्या

इस तीन दशक पुरानी समस्या को लेकर हनुमानगढ़ जिले में 1971 से 1995 तक की सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की ओर से 11 वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराए जा चुके थे. पिछले सालों में भी यहां कई सर्वे हुए लेकिन सेम की परेशानी से छुटकारा दिला सके, ऐसा किसी सर्वे रिपोर्ट के बाद काम नहीं हुआ.

सेम प्रभावित क्षेत्र से पानी निकासी के लिए राज्य सरकार ने 1999 में एक योजना के तहत गांव के सेम के पानी को पाइप के माध्यम से इंदिरा गांधी नहर में डाला गया था. इससे कुछ समय तक सेम का प्रभाव कम हो गया लेकिन उसके बाद सेम की स्थिति फिर से भयानक होती गई. इसके बाद किसी ने भी इस क्षेत्र में सेम की समस्या को दूर करने की रुचि नहीं दिखाई.

सरकार से मदद की दरकार

सेम समस्या से अब किसान बेरोजगार हो रहे हैं. गरीबी के साथ कर्ज में डूबे किसान अब पलायन करने का मजबूर हैं. किसानों का कहना है कि इस परेशानी से निजात अब सरकार ही दिला सकती है. अगर सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो हमारी जमीन बेकार हो जाएगी, जमीन बेकार हुई तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.

श्रीगंगानगर. पानी तो जीवन देती है. जीवों की प्यास बुझाती है. ये पानी जब धरती के सूखे कंठ को तर करती है तो बीजे अंकुरित होती है. फसलें लहलहा उठती है पर यही पानी विकराल रूप धरे तो विनाश का कारण भी बन सकती है. ऐसा हुआ है श्रीगंगानगर में. श्रीगंगानगर में किसानों के सामने 'सेम' नाम की नई परेशानी आ गई है, जिससे किसानों की सोना उगलनेवाली धरती बंजर होने के कगार पर है.

सेम की चपेट में श्रीगंगानगर

किसान कभी बारिश, कभी ओले तो कभी वृष्टि की मार झेलते रहते हैं. वहीं अब श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के किसानों के सामने नहीं परेशानी आ गई है. परेशानी का नाम है सेम.

आइए जानते क्या है सेम ?

सेम क्षेत्र की जमीन दलदली हो जाती है. भूजल स्तर भी बढ़ जाता है. सेम असल में इसी दलदल और रिसाव का ही नतीजा है. जिसमें खारा पानी खेती वाली जमीन को बंजर बना देता है. जिससे फसलों से लहराते खेत लवणीय पानी से भर जाते हैं.

हजारों बीघा जमीन सेम प्रभावित

श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के कुछ क्षेत्र सेम प्रभावित हैं. यहां किसानों की हजारों बीघा हेक्टेयर जमीन सेम से तबाह हो रही है. टिब्बी तहसील के आधा दर्जन गांव की हजारों बीघा कृषि भूमि सेम की चपेट में है. वहीं पीलीबंगा रावतसर और जाखडावाली के आसपास 32 किलोमीटर एरिया भी सेम से घिरा हुआ है. गांव और ढाणियों में सेम आ चुकी है.

farmer of Sriganganagar worried,  Rajasthan news
उपजाऊ जमीन दलदल में तब्दील

हनुमानगढ़ जिले के रावतसर, पीलीबंगा, टीबी के अलावा श्रीगंगानगर जिले में भी अब सेम ने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. सूरतगढ़ तहसील का कुछ क्षेत्र सेम समस्या से परेशान है तो वहीं सूरतगढ़ के बड़ोपल को सेम ने अपनी जकड़न में ले लिया है. गंगनहर बेल्ट के नीचे आने वाले कुछ गांव भी में सेम की समस्या सामने आई है.

क्यों हुई ये स्थिति ?

जानकारों का कहना है कि इंदिरा गांधी नहर परियोजना के तहत सिंचाई के लिए हनुमानगढ़ जिले में कई नहरों का निर्माण किया गया है. इन्हीं नहरों के आसपास की जमीन दलदली हो गई है. खेती वाली जमीन अब बेकार होती जा रही है. नहर से रिसाव को ही इसके पीछे मुख्य वजह बताया जाता है.

यह भी पढ़ें. Special : क्रॉप इंप्रूवमेंट, प्रोडक्शन और प्रोटेक्शन की नई तकनीकें सीख रहे कृषि विद्यार्थी...किसानों की बढ़ेगी आय

सेम के कारण अब श्रीगंगानगर के किसान अपनी ही जमीन पर खेती नहीं कर सकते क्योंकि उनकी जमीन अब खेती करने लायक नहीं रही है. रावतसर कस्बे का में स्थित और बुरी है. यहां के किसानों का कहना है कि यही हाल रहा तो पलायन करना पड़ेगा.

तीन दशक से जस की तस बनी है समस्या

इस तीन दशक पुरानी समस्या को लेकर हनुमानगढ़ जिले में 1971 से 1995 तक की सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की ओर से 11 वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराए जा चुके थे. पिछले सालों में भी यहां कई सर्वे हुए लेकिन सेम की परेशानी से छुटकारा दिला सके, ऐसा किसी सर्वे रिपोर्ट के बाद काम नहीं हुआ.

सेम प्रभावित क्षेत्र से पानी निकासी के लिए राज्य सरकार ने 1999 में एक योजना के तहत गांव के सेम के पानी को पाइप के माध्यम से इंदिरा गांधी नहर में डाला गया था. इससे कुछ समय तक सेम का प्रभाव कम हो गया लेकिन उसके बाद सेम की स्थिति फिर से भयानक होती गई. इसके बाद किसी ने भी इस क्षेत्र में सेम की समस्या को दूर करने की रुचि नहीं दिखाई.

सरकार से मदद की दरकार

सेम समस्या से अब किसान बेरोजगार हो रहे हैं. गरीबी के साथ कर्ज में डूबे किसान अब पलायन करने का मजबूर हैं. किसानों का कहना है कि इस परेशानी से निजात अब सरकार ही दिला सकती है. अगर सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो हमारी जमीन बेकार हो जाएगी, जमीन बेकार हुई तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.

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