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विनती सुनो सरकार: 15 साल के दिव्यांग को मदद की दरकार, दर-दर ठोकर खा रहा परिवार

श्रीगंगानगर में सरकारी सिस्टम के सुस्त रवैये से 15 साल के दिव्यांग के परिवार को दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है. दिव्यांग को पेंशन से लेकर कोई भी सुविधा नहीं मिल रही है. जिससे परिवार चक्कर काटने को मजबूर है. देखिए श्रीगंगानगर से स्पेशल रिपोर्ट...

Sriganganagar news,  Divyang waiting of pension
दिव्यांग पेंशन के लिए भटक रहा परिवार
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Published : Dec 25, 2019, 6:16 PM IST

सादुलशहर (श्रीगंगानगर). सरकारी सिस्टम की नाकामी सादुलशहर में देखने को मिल रही है. जिससे साफ हो रहा है, कि सरकार ने सिर्फ कागजों में दिव्यांग का दर्जा देकर अपनी जिम्मेदारी निभा दी है. क्योंकि कागजों में विकलांग को दिव्यांग बना देने से उनको कोई लाभ नहीं मिल रहा है. यह दावे धरातल पर कितने सच साबित होते हैं, इसका अंदाजा सादुलशहर के गांव दूदा खिचड़ के 15 साल के किशोर की बेबसी को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. दिव्यांग अपनी बीमारी के कारण पिछले 5 सालों से चारपाई पर बैठा है और सरकार से मूलभूत सुविधाएं और इलाज की आस लगाए बैठा है.

श्रीगंगानगर में सरकारी सिस्टम का सुस्त रवैया

पिछले 5 सालों से चारपाई पर गुरप्रीत
सादुलशहर पंचायत समिति के गांव दूदा खीचड़ का 15 साल का गुरप्रीत जन्म से बेबस नहीं था. करीब 5 साल पहले इस किशोर को बीमारी ने जकड़ लिया, जिसकी वजह से गुरप्रीत के शरीर के अंगों ने काम करना छोड़ दिया, हाथ-पैर मुड़ गए और तभी से वह चारपाई पर बैठा है. गुरप्रीत की मां गीता देवी के मुताबिक कई जगह डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन सफतला नहीं मिली, परिवार की आर्थिक हालत काफी खराब है, जिससे अब इलाज के लिए जगह-जगह जाना भी मुमकिन नहीं है. अब गुरप्रीत पिछले 5 सालों से चारपाई पर है, जिसे नहाने और शौच के लिए भी उठाकर ले जाना पड़ता है.

पढ़ें- दिव्यांग खिलाड़ियों ने जीते कई नेशनल मेडल...लेकिन सरकार ने नहीं दी स्कॉलरशिप

सरकारी योजना का लाभ नहीं
गुरप्रीत के पिता और मां का कहना है, कि चुनावों के समय जनप्रतिनिधियों के बड़े-बड़े वायदे रहते हैं, लेकिन चुनावों के बाद अनदेखी के चलते अब तक किसी सरकारी योजना का रत्ती भर लाभ भी नहीं मिल पाया है. उसका परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है. पिछले 5 वर्षों से गुरप्रीत की मां, बेटे को मिलने वाली सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहीं हैं. दिव्यांगों की पेंशन के लिए कभी अधिकारी फिंगर प्रिंट नहीं आने का हवाला देते हैं, कभी ये कहते हैं, कि इनका नाम भामाशाह में नहीं जुड़ा. कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते दिव्यांग को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित है. चिकित्सा विभाग ने बेटे के दिव्यांग होने का प्रमाणपत्र तो जारी कर दिया लेकिन कोई सुविधा नहीं मिली.

परिवार सुविधाओं का पात्र, लेकिन सुविधाएं नहीं
2 साल पहले सादुलशहर के पूर्व तहसीलदार मान सिंह प्रजापत ने रिपोर्ट दी. जिसमें स्पष्ट लिखा है, कि यह परिवार सुविधाओं का पात्र है, इनको लाभ दिया जाए, लेकिन अधिकारी-कर्मचारी इतने लापरवाह हो गए हैं, कि मानवीयता को भी भूल बैठे हैं. गुरप्रीत कुमार के पिता राजेश ने बताया, कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. उनके 4 बच्चे हैं, जो अभी छोटे हैं. अपने बेटे के इलाज पर उसने काफी रुपये खर्च कर दिया. वह दिन में दिहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण मुश्किल से कर पाता है, जबकि पीड़ित की मां नरेगा में मजदूरी करने जाती है. इनको अब भी अपने बेटे के इलाज के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकार से आस है.

पढ़ें- मिसाल : तिरुपति बालाजी के पुजारी ने दिव्यांग लड़की संग लिए सात फेरे

रोशनी की एक किरण
वहीं इस पीड़ित परिवार का पता लगने पर क्षेत्र के समाजसेवी डॉक्टर राज मेहरा उनके घर पहुंचे और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया है.

सादुलशहर (श्रीगंगानगर). सरकारी सिस्टम की नाकामी सादुलशहर में देखने को मिल रही है. जिससे साफ हो रहा है, कि सरकार ने सिर्फ कागजों में दिव्यांग का दर्जा देकर अपनी जिम्मेदारी निभा दी है. क्योंकि कागजों में विकलांग को दिव्यांग बना देने से उनको कोई लाभ नहीं मिल रहा है. यह दावे धरातल पर कितने सच साबित होते हैं, इसका अंदाजा सादुलशहर के गांव दूदा खिचड़ के 15 साल के किशोर की बेबसी को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. दिव्यांग अपनी बीमारी के कारण पिछले 5 सालों से चारपाई पर बैठा है और सरकार से मूलभूत सुविधाएं और इलाज की आस लगाए बैठा है.

श्रीगंगानगर में सरकारी सिस्टम का सुस्त रवैया

पिछले 5 सालों से चारपाई पर गुरप्रीत
सादुलशहर पंचायत समिति के गांव दूदा खीचड़ का 15 साल का गुरप्रीत जन्म से बेबस नहीं था. करीब 5 साल पहले इस किशोर को बीमारी ने जकड़ लिया, जिसकी वजह से गुरप्रीत के शरीर के अंगों ने काम करना छोड़ दिया, हाथ-पैर मुड़ गए और तभी से वह चारपाई पर बैठा है. गुरप्रीत की मां गीता देवी के मुताबिक कई जगह डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन सफतला नहीं मिली, परिवार की आर्थिक हालत काफी खराब है, जिससे अब इलाज के लिए जगह-जगह जाना भी मुमकिन नहीं है. अब गुरप्रीत पिछले 5 सालों से चारपाई पर है, जिसे नहाने और शौच के लिए भी उठाकर ले जाना पड़ता है.

पढ़ें- दिव्यांग खिलाड़ियों ने जीते कई नेशनल मेडल...लेकिन सरकार ने नहीं दी स्कॉलरशिप

सरकारी योजना का लाभ नहीं
गुरप्रीत के पिता और मां का कहना है, कि चुनावों के समय जनप्रतिनिधियों के बड़े-बड़े वायदे रहते हैं, लेकिन चुनावों के बाद अनदेखी के चलते अब तक किसी सरकारी योजना का रत्ती भर लाभ भी नहीं मिल पाया है. उसका परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है. पिछले 5 वर्षों से गुरप्रीत की मां, बेटे को मिलने वाली सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहीं हैं. दिव्यांगों की पेंशन के लिए कभी अधिकारी फिंगर प्रिंट नहीं आने का हवाला देते हैं, कभी ये कहते हैं, कि इनका नाम भामाशाह में नहीं जुड़ा. कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते दिव्यांग को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित है. चिकित्सा विभाग ने बेटे के दिव्यांग होने का प्रमाणपत्र तो जारी कर दिया लेकिन कोई सुविधा नहीं मिली.

परिवार सुविधाओं का पात्र, लेकिन सुविधाएं नहीं
2 साल पहले सादुलशहर के पूर्व तहसीलदार मान सिंह प्रजापत ने रिपोर्ट दी. जिसमें स्पष्ट लिखा है, कि यह परिवार सुविधाओं का पात्र है, इनको लाभ दिया जाए, लेकिन अधिकारी-कर्मचारी इतने लापरवाह हो गए हैं, कि मानवीयता को भी भूल बैठे हैं. गुरप्रीत कुमार के पिता राजेश ने बताया, कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. उनके 4 बच्चे हैं, जो अभी छोटे हैं. अपने बेटे के इलाज पर उसने काफी रुपये खर्च कर दिया. वह दिन में दिहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण मुश्किल से कर पाता है, जबकि पीड़ित की मां नरेगा में मजदूरी करने जाती है. इनको अब भी अपने बेटे के इलाज के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकार से आस है.

पढ़ें- मिसाल : तिरुपति बालाजी के पुजारी ने दिव्यांग लड़की संग लिए सात फेरे

रोशनी की एक किरण
वहीं इस पीड़ित परिवार का पता लगने पर क्षेत्र के समाजसेवी डॉक्टर राज मेहरा उनके घर पहुंचे और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया है.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट...

पंद्रह वर्षीय दिव्यांग को मदद की दरकार
अधिकारी इतने लापरवाह की भूल बैठे मानवीयता
स्थानीय नौकरशाही की लापरवाही के चलते सरकारी योजनाओ को लग रहा पलीता
पांच साल से दिव्यांग चारपाई पर रहने को मजबूर
दिव्यांग पेंशन के लिए माँ बाप काट रहे हैं चक्कर

सादुलशहर ( श्री गंगानगर )


ऐ मौत कब से राह तेरी तक रहा हूँ मैं…आ ज़िन्दगी के पाँव से काँटा निकाल दे..
किसी शायर ने ये शेर शायद ऐसे ही लोगों के लिए लिखा या कहा होगा जो जीवन के खेल में खुद को बेबस देखते हैं...जिन्हें सरकार ने कागजों में दिव्यांग का दर्ज़ा देकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा दी है लेकिन इन दिव्यांगों की उनके दर जाकर कभी सुध नही ली...कागज़ी दिव्यांगों को दो वक़्त की रोटी मिल रही है या नही..इनके सर पर छत है की नही..इन्हे मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं..इसकी कभी सुध नहीं ली...? क्या कागजो में विकलांग को दिव्यांग बना देने से ऐसे लोगों को कोई लाभ मिल रहा है..यह दावे धरातल पर कितने सच साबित होते है इस बात का अंदाजा सादुलशहर के गाँव दूदा खिचड़ के 15 वर्षीय किशोर की लाचारी को देखकर लगाया जा सकता है..जो अपनी बीमारी के कारण पिछले 5 वर्षों से चारपाई पर बैठा है और सरकार से मूलभूत सुविधाएं व ईलाज की आस अभी भी लगाएं बैठा है..


सादुलशहर पंचायत समिति के गाँव दूदा खीचड़ का 15 वर्षीय गुरप्रीत जन्म से अपाहिज नही था..करीब 5 साल पहले इस किशोर को बीमारी ने जकड़ लिया जिसकी वजह से गुरप्रीत के शरीर के अंगों ने काम करना छोड़ दिया और हाथ और पैर मुड़ गए..तब से वह चारपाई पर बैठा है..गुरप्रीत की माँ गीता देवी के अनुसार कई जगह डाक्टरों को दिखाया लेकिन सफतला नहीं मिली...परिवार की आर्थिक हालत काफी खराब है जिससे अब इलाज के लिए जगह जगह जाना भी मुमकिन नहीं है...अब गुरप्रीत पिछले 5 वर्षों से पीड़ित चारपाई पर पड़ा रहता है जिसे नहाने और शौच के लिए भी उठाकर ले जाना पड़ता है जिससे वह खुद भी बहुत ज्यादा परेशान है ...

बाइट : 1 . गीता देवी, माँ...

गुरप्रीत के पिता और माँ का कहना है की चुनावों के समय जनप्रतिनिधियो के बड़े बड़े वायदे रहते हैं लेकिन चुनावों की बाद अनदेखी के चलते अब तक किसी सरकारी योजना का रत्ती भर लाभ भी नही मिल पाया है..उसका परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है पिछले पाँच वर्षों से गुरप्रीत की माँ बेटे को मिलने वाली सुविधाओं के लिए दर दर की ठोकरे खा रही है...दिव्यांगों की पेंशन के लिए कभी अधिकारी फिंगरप्रिंट नही आने का हवाला देते है तो कभी कहते है की इनका नाम भामाशाह में नही जुड़ा...कर्मचारियों जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते इस दिव्यांग को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित है....चिकित्सा विभाग ने बेटे के दिव्यांग होने का प्रमाणपत्र तो जारी कर दिया लेकिन कोई सुविधा नही मिल रह..

विजुअल- माँ के नरेगा में बैठे हुए
विजुअल-घर के
विजुअल-दिव्यांग के

2 वर्ष पहले सादुलशहर के पूर्व तहसीलदार मान सिंह प्रजापत ने रिपोर्ट दी जिसमे स्पष्ट लिखा है की यह परिवार सुविधाओं का पात्र है इनको लाभ दिया जावे लेकिन अधिकारी कर्मचारी इतने लापरवाह हो गए हैं की मानवीयता को भी भूल बैठे हैं....गुरप्रीत कुमार के पिता राजेश ने बताया है की उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है उनके 4 बच्चे है जो अभी छोटे है अपने बेटे के ईलाज पर उसने काफी रुपये खर्च कर दिया वह दिन में दिहाड़ी मजदुरी करके अपने परिवार का पालन पोषण मुशिकल से करता है जबकि पीड़ित की माँ नरेगा में मजदूरी करने जाती है इनको अभी भी अपने बेटे के इलाज के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों व सरकार से आस है..

बाइट : 2 . राजेश कुमार, पिता

वही इस पीड़ित परिवार का पता लगने पर क्षेत्र के समाजसेवी डॉ राज मेहरा उनके घर पहुंचे व हरसम्भव मदत का भरोसा दिलाया
बाइट : 3 .राज मेहरा, डाक्टर
बाइट : 4 . वीरेंद्र बराड़, ग्रामीणBody:बाइट : 1 . गीता देवी ,माँ

बाइट : 2 . राजेश कुमार, पिता

बाइट : 3 . राज मेहरा, चिकित्सक

बाइट : 4 . वीरेन्द्र बराड़, स्थानीय ग्रामीणConclusion:वही इस पीड़ित परिवार का पता लगने पर क्षेत्र के समाजसेवी डॉ राज मेहरा उनके घर पहुंचे व हरसम्भव मदत का भरोसा दिलाया..
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