सिरोही. प्रदेश के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में पेयजल की समस्या को लेकर स्थाई समाधान के लिए करीब 44 साल पूर्व सालगांव बांध परियोजना बनाई गई थी, लेकिन 44 साल बाद भी यह परियोजना अब तक अटकी पड़ी है. 44 साल पूर्व यह योजना 27 लाख रुपए की थी, जो अब बढ़कर 250 करोड़ की हो गई है. राजनीतिक और विभागीय दांवपेंच के बीच यह परियोजना अब तक अधरझूल में है.
वर्ष 1977 में माउंट आबू में पेयजल की समस्या को लेकर सालगांव बांध परियोजना का निर्माण किया गया था. उस समय यह परियोजना 27 लाख की थी. बांध का निर्माण के लिए जगह प्रस्तावित थी, पर 1979 में तकनीकी बिंदुओं की टिप्पणी पर इसे निरस्त कर दिया गया. 1 साल बाद 1980 में फिर से यह परियोजना शुरू हुई, लेकिन फिर से राजनीतिक और विभागीय दांवपेंच के बीच लगातार फाइल अटकती रही और 16 साल तक योजना शुरू नहीं हो पाई.
1996 में करीब 11 करोड़ डीपीआर बनाकर इस योजना को फिर से शुरू किया गया. जलदाय विभाग ने योजना को लेकर दस्तावेज वन विभाग को सौंपा. विभाग ने कुछ कारणों को बताते हुए फिर से निरस्त कर दिया गया. 2006 में जलदाय विभाग की ओर से फिर से संशोधित योजना की वन विभाग को एक फाइल सौंपी गई. अभ्यारण क्षेत्र होने के चलते यह फाइल केंद्र को भेजी गई. केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय ने प्रथम दृष्टया स्वीकृत कर स्टैंडिंग कमेटी का निर्माण स्थल के निरीक्षण के निर्देश दिए.
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2008 में अधिकारी निरीक्षण को आए केचमेंट एरिया पर बांध की मूल लागत से कई गुना अधिक व्यय होने से अव्यावहारिक बताते हुए योजना को निरस्त कर दिया गया. 2012 को केंद्र की संसदीय समिति की ओर से मौका निरक्षण किया गया और योजना का प्रारूप बना. जुलाई 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री के समक्ष परियोजना का मुद्दा उठा. अगस्त 2016 में राज्य वाइल्डलाइफ बोर्ड की ओर से आंशिक संसोधन कर स्वीकृति दी गई. उसके बाद वन विभाग की ओर से केंद्र सरकार को फाइल भेजी गई. 15 मई 2017 को नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड की ओर से परियोजना को स्वीकृति दी गई है. कुछ समय पूर्व ही 250 करोड़ डीपीआर संबंधित विभाग की ओर से सचिव मंडल को भेजी गई है, जिसकी प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति का इंतजार है.
सालगांव बांध की परियोजना के बनने से माउंट आबू की पेयजल समस्या का समाधान हो पाएगा. योजना के तहत 155.56 मिलियन घन फीट भराव क्षमता का बांध बनेगा. जिससे माउंट वासियों के लिए पेयजल की समस्या का समाधान होगा. इसके साथ-साथ बांध से रिसने वाले पानी से काशतकार भूमि की सिंचाई कर पाएंगे. वहीं वन्यजीव अभ्यारण में रहने वाले वन्यजीवों लिए भी यह बांध कारगर साबित होगा.