सिरोही. राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट फैसला दे दिया गया है. फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निर्माण को लेकर 3 महीने में केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिए. लेकिन सिरोही जिले में राम मंदिर बनाने की तैयारियां साल 1995 से ही शुरू हो गई थी.
बता दें कि दो मंजिला राम मंदिर जिन पिलरों और दीवारों पर खड़ा होगा. उसे तराशने का काम जिले के पिंडवाड़ा में किया गया है. करीब 10 साल तक यहां के पत्थर को मूर्त रूप देने वाले कारीगरों ने पत्थर तराशने का काम किया. पिंडवाडा में बयाना, बंसी, पहाड़पुर और राजसमंद से लाए गए पत्थरों को तराशने का कार्य जिले में शुरू हो गया था.
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करीब 25 साल पहले सिरोही जिले के पिंडवाडा में राम मंदिर के निर्माण को लेकर पत्थर को तराशने का निर्णय लिया गया. उस समय काम जल्द पूरा करने के लिए विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल, चंपत रॉय और रामबाबूजी ने जनवरी 1995 में पूजन कर यहां तीन कार्यशालाओं में कार्य शुरू करवाया था. पत्थर को तराशने का यह कार्य करीब 10 साल तक चला. जानकारों की मानें तो दो मंजिला राम मंदिर पिलर पर खड़ा होगा. प्रथम मंजिल पर ऐसे करीब 96 पिलर हैं और 96 पिलर ही दूसरी मंजिल पर हैं. इन सभी को अयोध्या के कारसेवकपुरम में रखा गया है. पिंडवाड़ा और जिले के लिए गौरव की बात है कि यहां तराशे गए पत्थर अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर की शोभा बढ़ाएंगे.
इस तरह से तराशे गए हैं पिलर
अयोध्या में राम मंदिर के लिए पत्थर तराशने के लिए साल 1995 में तीन कार्यशाला शुरू हुई. जिनमें 9 साल तक 300 से अधिक कारीगरों ने पत्थर तराशे है. हर पिलर को विशेष कोड देकर तराशा गया. ताकि उस पिलर की पहचान हो सके. साथ ही पिलरों को ऐसे बनाया गया है कि उन्हें मंदिर निर्माण के दौरान नक्शे के अनुसार सीधे ही निर्धारित स्थान पर खड़े किया जा सके. पिंडवाड़ा में तीनों कार्यशाला में जिन पिलरों को तराशा गया था. पिलरों को दिए गए कोड बारिश या धूप की वजह से ना मिटे इसलिए इन्हें भी तराशा गया था.
कार्यशाला के संचालक ने बताया कि सभी पत्थरों को कोड दे रखे हैं. ऐसे में अब इन पिलर को केवल खड़ा ही करना होगा. यह पिलर कहां और कैसे लगेंगे यह पहले से तय है. यहां तक कि रंग मंडप और गर्भगृह की दीवारों को भी यहीं तराशा गया है. मंदिर के गर्भगृह, भूतल के सिंहद्वार, नृत्य मंडप, रंग मंडप और कोली गर्भगृह मंडप, रंग मंडप और कोली गर्भगृह के पत्थरों को तराशने का काम भी यहीं हुआ है.