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SPECIAL: मिट्टी के दीये बनाने वालों का छलका दर्द! कहा- चाइनीज नहीं, हमारे दीये खरीदें

सीकर शहर में कुम्हार समाज के ज्यादातर घरों में लोग दीपक बनाने का काम करते थे, लेकिन अब बहुत कम लोग हैं जो यह काम कर रहे हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि मिट्टी के दीयों की बिक्री ही कम हो गई है. केवल दीपावली तक इसकी बिक्री सीमित रह गई. दीपक बनाने और बेचने वाली महिलाओं का कहना है कि मिट्टी से जो अन्य बर्तन बनाते थे उनका काम तो पहले से ठप है और दीपावली पर उम्मीद रहती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से लोग चाइनीज दीयों की तरफ ही भागने लगे हैं.

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चाइनीज नहीं हमारे दीये खरीदे
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Published : Oct 31, 2020, 9:40 PM IST

सीकर. दीपावली का त्यौहार नजदीक आते ही हर किसी के मन में घर को रोशनी से सजाने का ख्याल आने लगता है. आधुनिकता के इस दौर में बिजली की लाइटिंग की कमी नहीं रहती है, लेकिन इसके बाद भी दीपक की रोशनी का एक अलग महत्व माना जाता है. दीपावली के पर्व पर दीया जलाने की परंपरा पुरानी है और यह आस्था से जुड़ा विषय भी है. ऐसे में पर्व पर दीयों की रोशनी से लोग घरों को रोशन करते हैं. लेकिन दीया बनाने वाले इन कुम्हारों की जिंदगी से उजाला जैसे गुम होता जा रहा है.

चाइनीज नहीं हमारे दीये खरीदे

पर्व पर अब लोग डिजाइनर और सस्ते के चक्कर में चाइनीज दीयो खरीद लेते हैं. इस वजह से कुम्भार समाज के सामने बड़ा संकट खड़ा हो रहा है और दिन प्रतिदिन उनका कारोबार ठप होता जा रहा है. समाज की दीपक बनाने वाली और बेचने वाली महिलाओं की अपील है कि आमजन चाइनीज माल से दूर रहें तो उनके घरों में भी रोशनी होगी.

पढ़ेंः Special: इस दिवाली गोबर से बने इकोफ्रेंडली दीये करेंगे घरों को रोशन, जानें 'आस लैंप' की खूबियां

एक वक्त था जब सीकर शहर में कुम्हार समाज के लोग हर घर में दीपक बनाने का काम करते थे, लेकिन अब बहुत ही कम लोग हैं जो यह काम कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि दीपक की बिक्री कम हो गई और केवल दीपावली तक इसकी बिक्री सीमित रह गई. इसके अलावा पूजा पाठ में भी लोग चाइनीज दीपक काम में लेने लगे. हालात यह है कि दीपावली के सीजन में भी इन लोगों के दीपक कम दिखते हैं और इससे इनका रोजगार छिनता जा रहा है. दीपक बनाने और बेचने वाली महिलाओं का कहना है कि मिट्टी से जो अन्य बर्तन बनाते थे उनका काम तो पहले से ही ठप है और दीपावली पर उम्मीद रहती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से लोग चाइनीज दीयों की तरफ भागने लगे हैं.

रेफ्रिजरेटर छीन लिया मटका बनाने का काम

कुम्हार समाज के लोग पहले सबसे ज्यादा घड़े और मटके बनाने का काम करते थे उनका यह काम बहुत अच्छा चलता था. लेकिन जब से घर-घर में रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल होने लगा, उसके बाद घरों में मटके गायब होने लगे. अब हालात यह है कि घड़े और मटका बनाने का काम तो बहुत कम चलने लगा है.

सब कुछ मिट्टी के बर्तनों में होता था

समाज की बुजुर्ग महिलाएं बताती है कि पहले घर के हर काम में मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल होते थे. लेकिन धीरे-धीरे उनका चलन कम हो गया. जबकि स्वास्थ्य के लिए भी मिट्टी के बर्तन बहुत फायदेमंद होते हैं. महिलाओं का कहना है कि दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने का ही प्रचलन था और आस्था भी से जुड़ी हुई थी. इसलिए लोग पूजा पाठ में और दीपावली पर रोशनी करने में मिट्टी के दिए ही उपयोग में लें.

सीकर. दीपावली का त्यौहार नजदीक आते ही हर किसी के मन में घर को रोशनी से सजाने का ख्याल आने लगता है. आधुनिकता के इस दौर में बिजली की लाइटिंग की कमी नहीं रहती है, लेकिन इसके बाद भी दीपक की रोशनी का एक अलग महत्व माना जाता है. दीपावली के पर्व पर दीया जलाने की परंपरा पुरानी है और यह आस्था से जुड़ा विषय भी है. ऐसे में पर्व पर दीयों की रोशनी से लोग घरों को रोशन करते हैं. लेकिन दीया बनाने वाले इन कुम्हारों की जिंदगी से उजाला जैसे गुम होता जा रहा है.

चाइनीज नहीं हमारे दीये खरीदे

पर्व पर अब लोग डिजाइनर और सस्ते के चक्कर में चाइनीज दीयो खरीद लेते हैं. इस वजह से कुम्भार समाज के सामने बड़ा संकट खड़ा हो रहा है और दिन प्रतिदिन उनका कारोबार ठप होता जा रहा है. समाज की दीपक बनाने वाली और बेचने वाली महिलाओं की अपील है कि आमजन चाइनीज माल से दूर रहें तो उनके घरों में भी रोशनी होगी.

पढ़ेंः Special: इस दिवाली गोबर से बने इकोफ्रेंडली दीये करेंगे घरों को रोशन, जानें 'आस लैंप' की खूबियां

एक वक्त था जब सीकर शहर में कुम्हार समाज के लोग हर घर में दीपक बनाने का काम करते थे, लेकिन अब बहुत ही कम लोग हैं जो यह काम कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि दीपक की बिक्री कम हो गई और केवल दीपावली तक इसकी बिक्री सीमित रह गई. इसके अलावा पूजा पाठ में भी लोग चाइनीज दीपक काम में लेने लगे. हालात यह है कि दीपावली के सीजन में भी इन लोगों के दीपक कम दिखते हैं और इससे इनका रोजगार छिनता जा रहा है. दीपक बनाने और बेचने वाली महिलाओं का कहना है कि मिट्टी से जो अन्य बर्तन बनाते थे उनका काम तो पहले से ही ठप है और दीपावली पर उम्मीद रहती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से लोग चाइनीज दीयों की तरफ भागने लगे हैं.

रेफ्रिजरेटर छीन लिया मटका बनाने का काम

कुम्हार समाज के लोग पहले सबसे ज्यादा घड़े और मटके बनाने का काम करते थे उनका यह काम बहुत अच्छा चलता था. लेकिन जब से घर-घर में रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल होने लगा, उसके बाद घरों में मटके गायब होने लगे. अब हालात यह है कि घड़े और मटका बनाने का काम तो बहुत कम चलने लगा है.

सब कुछ मिट्टी के बर्तनों में होता था

समाज की बुजुर्ग महिलाएं बताती है कि पहले घर के हर काम में मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल होते थे. लेकिन धीरे-धीरे उनका चलन कम हो गया. जबकि स्वास्थ्य के लिए भी मिट्टी के बर्तन बहुत फायदेमंद होते हैं. महिलाओं का कहना है कि दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने का ही प्रचलन था और आस्था भी से जुड़ी हुई थी. इसलिए लोग पूजा पाठ में और दीपावली पर रोशनी करने में मिट्टी के दिए ही उपयोग में लें.

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