सीकर. जिले में साल 2006 में एक सड़क हादसे में एक मौत के मामले में पीड़ित परिवार को मुआवजा नहीं देने पर पिपराली सरपंच संतोष मूंड की 16 बीघा जमीन को तहसील कार्यालय ने नीलाम कर दिया. न्यायालय मोटर वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण अजमेर के आदेश पर हुई नीलामी में जमीन की बोली 35.50 लाख रुपए में लगी. इससे पहले कोर्ट के आदेश पर सरपंच मूंड की अलग-अलग जमीन को 2013 में कुर्क कर लिया गया था.
जमीन की नीलामी को मूंड ने 1 महीने में मुआवजा राशि चुकाने का शपथ पत्र देकर रुकवा ली थी, लेकिन इसके बाद भी जब पीड़ित परिवार को राशि नहीं मिली तो एसडीएम के आदेश पर सोमवार को जमीन को नीलाम कर दिया गया. तहसीलदार अमीलाल मीणा की मौजूदगी में हुई नीलामी में हरदयालपुरा निवासी प्यारेलाल पुत्र रामस्वरूप मंगवा ने सबसे ऊंची बोली लगाई.
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ऐसे हुआ था हादसा- सीकर के पिपराली रोड पर 25 जून 2006 को हरदयालपुरा स्टैंड के पास जीप पलटने से अजमेर निवासी फाइनेंस कर्मचारी अमरचंद की मौत हो गई थी. अमरचंद के परिजनों ने पुलिस में रिपोर्ट दी थी कि मृतक अमरचंद जीप में जा रहा था. जीप को संतोष तेज गति से लापरवाही से चला रहा था. इसी दौरान हरदयालपुरा स्टैंड के पास जीप अनियंत्रित होकर पलट गई, जिसमें गंभीर चोट आने पर अमरचंद की मौत हो गई. इस पर अमरचंद की पत्नी रीना देवी शर्मा ने मोटर दुर्घटना क्लेम अजमेर कोर्ट में पेश किया. कोर्ट ने 19 अगस्त 2008 को जीप चालक संतोष मूंड को 13.63 लाख मुआवजा मृतक की पत्नी रीना देवी को देने का फैसला सुनाया था. राशि नहीं देने पर 7. 5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर भी लगाया गया. कोर्ट ने 2009 में जिला न्यायाधीश को कुर्की का वारंट भेजा.
2013 में कुर्क हुई थी जमीन- कोर्ट के फैसले के अनुसार जिला प्रशासन ने 4 मार्च 2013 में भूमि कुर्क करने के आदेश जारी किए थे, जिसकी नीलामी 11 मार्च 2013 को तय की गई. लेकिन सरपंच ने वसूली राशि चुकाने के लिए 1 महीने का समय और मांगा. जिसे तत्कालीन एसडीएम ने स्वीकार कर नीलामी प्रक्रिया को रुकवा दिया था. लेकिन मांगे गए 1 महीने में वह राशि नहीं चुकाई गई. इसके बाद फिर चली प्रक्रिया में आखिरकार सीकर एसडीएम ने सरपंच को सोमवार दोपहर 12:00 बजे तक समय वसूली राशि चुकाने का दिया. तय समय में रुपए नहीं देने पर दोपहर बाद मूंड की जमीन को नीलाम कर दिया गया.
दो बेटियों की मां है पीड़िता
जानकारी के अनुसार पीड़िता रीना देवी शर्मा दो बेटियों की मां हैं. दुर्घटना में पति की मौत से उसके परिवार को आर्थिक संकट गहरा गया था. बड़ी मुश्किल से परिवार पालते हुए हुए न्याय के लिए संघर्ष कर रही थी. आखिर 16 साल बाद उसे मुआवजा की राह खुली.