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नीमकाथाना के बालेश्वर धाम में पूरे देश के लोग दर्शन करने आते हैं, जानें इस धाम का महत्व

अरावली की वादियों में बसा सीकर का बालेश्वर धाम तीर्थ स्थल प्राकृतिक के साथ-साथ धार्मिक महत्व लिए भी विख्यात है. यहां राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के अलावा देशभर के श्रद्धालु आते हैं. सावन महीने में तो करीब दो लाख भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं. नीचे जानें तीर्थ स्थल का इतिहास और महत्व.

Neemkathana news, Baleshwar Dham
नीमकाथाना के बालेश्वर धाम में पूरे देश के लोग दर्शन करने आते हैं
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Published : Mar 12, 2021, 8:20 AM IST

नीमकाथाना (सीकर). जिले का प्रसिद्ध बालेश्वर धाम नीमकाथाना से 15 किमी दूर स्थित है. पूर्वी दिशा में अरावली पर्वतमाला की गहन उपत्यकाओं में पुरातात्त्विक महत्त्व के साथ आध्यात्मिक आस्था का अद्भुत महान तीर्थक्षेत्र है, जो स्वयंभू बालेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है. यहां प्राचीनकाल से ही आदिदेव स्वयंभू भगवान शिव के बालरूप की विशाल शिवलिंग के रूप मान्यता रही है. वर्ष भर आस्थावान शिवभक्तों को बरबस ही बालरूप शिव का विशाल शिवलिंग अपनी ओर आकृष्ट कर उनकी हर मनोकामनाओं को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखता है. लोकमान्यता है कि बालेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग है अर्थात् स्वयं धरती का सीना चीरकर प्रकट हुए हैं. सावन महीने में पहाड़ियां हरियाली से आच्छादित रहती हैं. तीर्थधाम बालेश्वर का प्रसिद्ध महादेव मंदिर पहाड़ी तलहटी में स्थित है. यहां राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के अलावा देशभर के श्रद्धालु आते है. सावन महीने में तो करीब दो लाख भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं.

नीमकाथाना के बालेश्वर धाम में पूरे देश के लोग दर्शन करने आते हैं

मन्दिर परिसर की उत्तरी भित्ती पर गणेश प्रतिमा के नीचे प्राकृत भाषा में लिखा एक शिलालेख प्राप्त होता है, जो इस स्थान की प्राचीनता और भव्यता का गुणगान करता है. चारों ओर जलश्रोतों से घिरी शस्यश्यामला प्रस्थर पुण्यभूमि पर सूर्यवंशी राजाओं ने हजारों साल पहले इस स्वयंभू लिंग की सुरक्षा के लिए बहुत ही विशाल शिव मन्दिर बनवाया था, जिसकी मान्यता एक तीर्थक्षेत्र के रूप पूरे भारतवर्ष में थी. कालान्तर में प्राकृतिक आपदाओं और आतताइयों की ज्यादतियों की भेंट चढ़ गया यह आस्था का केन्द्र. फिर भी प्रतिमा को आज तक कोई क्षति नहीं हुई. पाटन राज परिवार के साथ कई आदिवासी जातियों के तो ये कुलदेवता रहे हैं. अभी तक भी पाटन राज दरबार के साथ क्षेत्र के सभी वर्गों की इस स्थान के प्रति लौकिक आस्था की अलौकिक छवी देखने को मिलती है. समूहों में वैदिक ब्राह्मणों के श्रीमुख से रुद्र सूक्त और महामृत्युंजय मंत्र की सुरभित बयार तो बारह महीने अनुभव की जा सकती है.

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इससे पहले की एक ओर जनश्रुति है कि आदिवासी चरवाहों के बिना दूहे गायें स्वयं बालरूप शिव का दुग्धाभिषेक किया करती थीं. पर्णशालाओं से छोटी कुटिया और साठ साल पहले छोटी कुटिया से पुनः मन्दिर परिसर बना‌. दस साल पहले दिल्ली प्रवासी शिवभक्त परिवार ने पुनः मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था, उस समय पंद्रह-बीस फिट गहराई तक नींव खोदने पर इस स्वयंभू लिंग की अनन्त लम्बाई-ऊंचाई देखने का सुअवसर और सौभाग्य प्राप्त हुआ था, बालेश्वर बालरूप और आकार बृहत्तम बृहद्रूप. हरि अनन्त हरि कथा अनंता. यहां ॐ नमः शिवाय, हर-हर महादेव, जय भोलेनाथ, बम-बम, जय बालेश्वर नाथ, जय बालेश्वर बाबा आदि जयकारों के साथ नित्य स्वयं-भू शिवलिंग पर जलधाराओं से जलाभिषेक मन को मोह लेते हैं और भक्तों को भक्तिगंगा से सरोवार कर देते हैं.

लोग यह भी कहते है कि बालेश्वर के महादेव मंदिर में भक्त भगवान के बाल रूप के दर्शन करते हैं. मंदिर के पिछे ही एक गुलर का पेड़ हैं. वह उसी समय का बताते हैं. जब शिवलिंग की पूजा करने लगे. गुलर के पेड़ के नीचे जड़ो में पहाड़ी से पानी रिसाव होकर गड्ढे में जमा होता है. बुजुर्ग कहते हैं कि गुलर के पेड़ नीचे एकत्रित होने वाले पानी से स्नान करने पर बीमारी दूर होती है. दिलचस्प यह भी है कि पेड़ के नीचे डेढ फीट पानी ही एकत्रित होता है, उससे न कम होता है नही ज्यादा, जबकी पूरे दिन श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं. यहां एक कुंड भी बना हुआ है, उसमें पहले पानी रहता था, लेकिन वो क्षतिग्रस्त हो गया.

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ऐसे में लोग गुलर के नीचे एकत्रित होने वाले पानी से बाहर ही स्नान करते हैं. महिलाएं पेड़ की पूजा भी करती हैं. मन्नत का धागा भी बांधते हैं. इसी पानी से महादेव का अभिषेक किया जाता है. शिव के अभिषेक पूजा अर्चना के साथ लोग सवा मणि चढाने भी यहां आते हैं. सवा मणि का मतलब सवा मन अनाज से बना प्रसाद. सवा मणि में ज्यादातर राजस्थान की प्रसिद्ध डिश दाल चूरमा बनाया जाता है. राजस्थान में अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए सवा मणि प्रसाद चढाने का अच्छा खासा प्रचालन है. राजस्थान के किसान हर वर्ष बालाजी (हनुमान जी) के प्रसाद के तौर पर सवा मणि का आयोजन करते हैं. भक्तों के लिए बालेश्वर धाम पर कई धर्मशालाएं बनी हैं, जहां श्रद्धालु ठहर सकते हैं. बालेश्वर आने के लिए नीमकाथाना आना पड़ता हैं. कोटपूतली से आने वाले पाटन होकर सीधे बालेश्वर धाम पहुंच सकते हैं. बालेश्वर के पास ही तीर्थधाम टपकेश्व एवं गणेश्वर है. गणेश्वर में गर्म पानी का झरना बहता है, जो सदैव बहता रहता है. यहां के गालव कुंड पर भक्त डुबकी लगाने आते हैं.

नीमकाथाना (सीकर). जिले का प्रसिद्ध बालेश्वर धाम नीमकाथाना से 15 किमी दूर स्थित है. पूर्वी दिशा में अरावली पर्वतमाला की गहन उपत्यकाओं में पुरातात्त्विक महत्त्व के साथ आध्यात्मिक आस्था का अद्भुत महान तीर्थक्षेत्र है, जो स्वयंभू बालेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है. यहां प्राचीनकाल से ही आदिदेव स्वयंभू भगवान शिव के बालरूप की विशाल शिवलिंग के रूप मान्यता रही है. वर्ष भर आस्थावान शिवभक्तों को बरबस ही बालरूप शिव का विशाल शिवलिंग अपनी ओर आकृष्ट कर उनकी हर मनोकामनाओं को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखता है. लोकमान्यता है कि बालेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग है अर्थात् स्वयं धरती का सीना चीरकर प्रकट हुए हैं. सावन महीने में पहाड़ियां हरियाली से आच्छादित रहती हैं. तीर्थधाम बालेश्वर का प्रसिद्ध महादेव मंदिर पहाड़ी तलहटी में स्थित है. यहां राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के अलावा देशभर के श्रद्धालु आते है. सावन महीने में तो करीब दो लाख भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं.

नीमकाथाना के बालेश्वर धाम में पूरे देश के लोग दर्शन करने आते हैं

मन्दिर परिसर की उत्तरी भित्ती पर गणेश प्रतिमा के नीचे प्राकृत भाषा में लिखा एक शिलालेख प्राप्त होता है, जो इस स्थान की प्राचीनता और भव्यता का गुणगान करता है. चारों ओर जलश्रोतों से घिरी शस्यश्यामला प्रस्थर पुण्यभूमि पर सूर्यवंशी राजाओं ने हजारों साल पहले इस स्वयंभू लिंग की सुरक्षा के लिए बहुत ही विशाल शिव मन्दिर बनवाया था, जिसकी मान्यता एक तीर्थक्षेत्र के रूप पूरे भारतवर्ष में थी. कालान्तर में प्राकृतिक आपदाओं और आतताइयों की ज्यादतियों की भेंट चढ़ गया यह आस्था का केन्द्र. फिर भी प्रतिमा को आज तक कोई क्षति नहीं हुई. पाटन राज परिवार के साथ कई आदिवासी जातियों के तो ये कुलदेवता रहे हैं. अभी तक भी पाटन राज दरबार के साथ क्षेत्र के सभी वर्गों की इस स्थान के प्रति लौकिक आस्था की अलौकिक छवी देखने को मिलती है. समूहों में वैदिक ब्राह्मणों के श्रीमुख से रुद्र सूक्त और महामृत्युंजय मंत्र की सुरभित बयार तो बारह महीने अनुभव की जा सकती है.

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इससे पहले की एक ओर जनश्रुति है कि आदिवासी चरवाहों के बिना दूहे गायें स्वयं बालरूप शिव का दुग्धाभिषेक किया करती थीं. पर्णशालाओं से छोटी कुटिया और साठ साल पहले छोटी कुटिया से पुनः मन्दिर परिसर बना‌. दस साल पहले दिल्ली प्रवासी शिवभक्त परिवार ने पुनः मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था, उस समय पंद्रह-बीस फिट गहराई तक नींव खोदने पर इस स्वयंभू लिंग की अनन्त लम्बाई-ऊंचाई देखने का सुअवसर और सौभाग्य प्राप्त हुआ था, बालेश्वर बालरूप और आकार बृहत्तम बृहद्रूप. हरि अनन्त हरि कथा अनंता. यहां ॐ नमः शिवाय, हर-हर महादेव, जय भोलेनाथ, बम-बम, जय बालेश्वर नाथ, जय बालेश्वर बाबा आदि जयकारों के साथ नित्य स्वयं-भू शिवलिंग पर जलधाराओं से जलाभिषेक मन को मोह लेते हैं और भक्तों को भक्तिगंगा से सरोवार कर देते हैं.

लोग यह भी कहते है कि बालेश्वर के महादेव मंदिर में भक्त भगवान के बाल रूप के दर्शन करते हैं. मंदिर के पिछे ही एक गुलर का पेड़ हैं. वह उसी समय का बताते हैं. जब शिवलिंग की पूजा करने लगे. गुलर के पेड़ के नीचे जड़ो में पहाड़ी से पानी रिसाव होकर गड्ढे में जमा होता है. बुजुर्ग कहते हैं कि गुलर के पेड़ नीचे एकत्रित होने वाले पानी से स्नान करने पर बीमारी दूर होती है. दिलचस्प यह भी है कि पेड़ के नीचे डेढ फीट पानी ही एकत्रित होता है, उससे न कम होता है नही ज्यादा, जबकी पूरे दिन श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं. यहां एक कुंड भी बना हुआ है, उसमें पहले पानी रहता था, लेकिन वो क्षतिग्रस्त हो गया.

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ऐसे में लोग गुलर के नीचे एकत्रित होने वाले पानी से बाहर ही स्नान करते हैं. महिलाएं पेड़ की पूजा भी करती हैं. मन्नत का धागा भी बांधते हैं. इसी पानी से महादेव का अभिषेक किया जाता है. शिव के अभिषेक पूजा अर्चना के साथ लोग सवा मणि चढाने भी यहां आते हैं. सवा मणि का मतलब सवा मन अनाज से बना प्रसाद. सवा मणि में ज्यादातर राजस्थान की प्रसिद्ध डिश दाल चूरमा बनाया जाता है. राजस्थान में अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए सवा मणि प्रसाद चढाने का अच्छा खासा प्रचालन है. राजस्थान के किसान हर वर्ष बालाजी (हनुमान जी) के प्रसाद के तौर पर सवा मणि का आयोजन करते हैं. भक्तों के लिए बालेश्वर धाम पर कई धर्मशालाएं बनी हैं, जहां श्रद्धालु ठहर सकते हैं. बालेश्वर आने के लिए नीमकाथाना आना पड़ता हैं. कोटपूतली से आने वाले पाटन होकर सीधे बालेश्वर धाम पहुंच सकते हैं. बालेश्वर के पास ही तीर्थधाम टपकेश्व एवं गणेश्वर है. गणेश्वर में गर्म पानी का झरना बहता है, जो सदैव बहता रहता है. यहां के गालव कुंड पर भक्त डुबकी लगाने आते हैं.

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