सवाईमाधोपुर. रणथम्भौर नेशनल पार्क में वन कर्मचारियों को कुछ दिनों से बाघिन T-84 की चिंता सता रही थी. दरअसल बाघिन के गले में सेही का कांटा लग गया था जिस कारण उसे काफी परेशानी हो रही थी. कांटे निकालने के लिए विभाग के कर्मचारी बाघिन को ट्रेंकुलाइज करने की तैयारी कर रहे थे लेकिन रविवार को उनकी चिंता दूर हो गई. बाघिन के गले से खुद ही कांटा निकल गया.
वनाधिकारियों ने बताया कि तीन-चार दिनों से बाघिन के गले में कांटा लगा हुआ था. बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर कांटा निकालने के लिए डब्ल्यूआईआई के विशेषज्ञ डॉ. पराग भी रणथम्भौर पहुंचे थे, लेकिन तबतक कांटा खुद ही निकल गया.
रणथम्भौर की बाघिन टी-84 ऐरोहेड के गले के नीचे 14 जुलाई को सेही का कांटा लग गया था. रणथम्भौर के पशु चिकित्सकों की टीम ने बाघिन के स्वास्थ्य की जांच के बाद ऑपरेशन कर कांटा निकालने का सुझाव दिया था. हालांकि बाघिन पूरी तरह स्वस्थ्य थी और पानी भी पी रही थी और आराम से लेट भी रही थी. अक्सर शारीरिक गतिविधि के दौरान बाघ पंजे से कांटा निकाल लेता है, लेकिन 14 जुलाई से बाघिन के गले के पास सेही का कांटा लगा था जिसे वह निकाल नहीं पा रही थी जिससे वनकर्मी भी परेशान थे.
रणथम्भौर के पशु चिकित्सकों ने बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर बाघिन के गले से कांटा निकलने का सुझाव दिया था. इस पर रणथम्भौर के वनाधिकारियों ने उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट पेश की. इस पर बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर कांटा निकालने के लिए 16 जुलाई को अनुमति दी गई थी. इसके चलते डब्ल्यूआईआई के डॉ. पराग भी रविवार को रणथम्भौर पहुंचे थे. वन अधिकारियों की एक टीम का गठन भी किया गया. इसी बीच बाघिन की मॉनिटरिंग के दौरान पाया कि उसके गले से सेही का कांटा स्वत: ही निकल गया है. इससे कर्मचारियों ने राहत की सांस ली.
पढ़ें: T-65 की मौत : Poisoning भी हो सकता है मौत का कारण, रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगी असल वजह
विशेषज्ञों के अनुसार बाघिन को ट्रेंकुलाइज करना चुनौती पूर्ण रहता है. ऐरोहेड के तीन शावक हैं. ऐसे में ट्रेकुलाइज कर कांटा निकालने के बाद बाघिन को जल्द होश में लाने के लिए एंटी डोज भी देना पड़ता ताकि बाघिन ऐरोहेड अपने नवजात शावकों से ज्यादा देर दूर न रह सके. बाघिन के गले से स्वत: ही सेही का कांटा निकलने से उसे ट्रेंकुलाइज करने की नौबत ही नहीं आई.