राजसमंद. देशभर में गुरुवार को रक्षाबंधन का पावन पर्व (Raksha Bandhan 2022) धूमधाम से मनाया जाएगा. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधेगी और दीर्घायु और उन्नति की कामना के साथ आशीर्वाद देंगी. लेकिन आज आपको राजस्थान के एक छोटे से गांव की अनोखी रक्षाबंधन की दास्तां से रूबरू करवाएंगे, जिसने प्रकृति को संवारने के लिए एक नया मॉडल अख्तियार किया.
यह कहानी (Story of piplantri village) आपके मन को आशाओं से भर देगी. राजस्थान के मेवाड़ इलाके के पिपलांत्री गांव (Piplantri) की यह कहानी इस कदर चर्चा का विषय बनी कि अब डेनमार्क के स्कूली पाठ्यक्रम (Denmark School Curriculum) का हिस्सा है. पिपलांत्री का यह रक्षा सूत्र बस इतना सा है कि इंसान प्रकृति से प्रेम करे, उसकी रक्षा करे तो बदले में प्रकृति भी इंसान की रक्षा करती है.
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बात है साल 2005 की. जब राजसमंद जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में श्याम सुंदर पालीवाल (Shyam Sundar Paliwal) सरपंच बने थे. तब पर्यावरण को लेकर यहां इतनी जागरुकता नहीं थी. गांव के आस-पास संगमरमर की खदानें (marble quarries) थीं, जिसकी स्लरी (marble slurry) यानी मलबे के तले दबकर पौधे पनपने की उम्मीदें दम तोड़ देती थीं. तब यह आम बात थी.
सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बिटिया बहुत कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह गई थी. यह दुख उन्हें भीतर ही भीतर कचोटता था. बेटी की याद में श्याम सुंदर ने पौधा लगाया. अब उस पौधे में उन्हें अपनी बिटिया नजर आने लगी. सरपंच होने के नाते उन्होंने पौधारोपण को एक मुहिम बना दिया. गांव में किसी के यहां भी बेटी का जन्म होता तो पूरा गांव उत्सव की तरह बिटिया के नाम का पौधा लगाता.
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111 पौधे लगाने की परंपरा- इस तरह एक बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने की परंपरा शुरू हुई, किसी की मौत होती तो उसकी याद में 11 पौधे लगाए जाते. बेटी जब बड़ी होती तो वह पौधे को राखी बांधती, बिटिया को पौधे में भाई नजर आता. आए भी क्यों नहीं, उसी बेटी के जन्म पर तो यह पौधा लगाया गया था. इस तरह इस गांव का कुदरत के साथ रिश्ता जुड़ता चला गया.
देशभर में 11 अगस्त को रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध रही है. उनके दीर्घायु और उन्नति की कामना करने के साथ उन को आशीर्वाद दे रही है. लेकिन राजसमंद के पिपलांत्री गांव में रक्षाबंधन के मायने कुछ ज्यादा और बड़े हैं. इस गांव की बालिकाएं अपने ही अंदाज में पेड़ों को राखी बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाती हैं. पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल ने बताया कि 2005 से शुरू किया गया. पेड़ों और पर्यावरण के संरक्षण को लेकर अभियान अब वट वृक्ष बन गया है. पर्यावरण संरक्षण का यह पाठ डेनमार्क में पढ़ाया जा रहा है.
पिपलांत्री गांव के कई नाम: पिपलांत्री गांव (piplantri village) को अब आदर्श ग्राम, निर्मल ग्राम, वृक्ष ग्राम, कन्या ग्राम जैसे उप नामों से जाना जाता है. पेड़ों को राखी बांधने वाले यहां के अनोखे रक्षाबंधन के पर्व की तैयारियां कई दिन पहले शुरू हो जाती है. अब सिर्फ पिपलांत्री नहीं बल्कि आसपास के गांव में से भी कन्या और महिलाएं जुड़ती हैं, जो हर्षोल्लास के साथ गीत गाते हुए ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते हुए उत्सव का उल्लास लिए पौधारोपण करती है और पेड़ों को राखियां बनती है. यहां कोई भी पौधा पानी की कमी से नहीं सूखता क्योंकि राखी बांधना और औपचारिकता नहीं बल्कि यह महिलाएं पौधे की रक्षा करने का संकल्प भी लेती है. पिछले 18 सालों से यह परंपरा इसी तरह पर्यावरण संरक्षण और पेड़ लगाने को लेकर चली आ रही है.
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डेनमार्क के सिलेबस में शामिल है यह गांव- पर्यावरण संरक्षण का यह पाठ डेनमार्क में पढ़ाया जा रहा है. पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल कहते हैं कि कोरोना काल में हमने देखा कि लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं. ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल रहे हैं. लेकिन ऑक्सीजन के भंडार इन वृक्षों की रक्षा की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. बस इन्हीं को बचाने और संवारने की यह मुहिम है.
इस दौरान पेड़ों को राखी बांधने पहुंचे बालिकाओं ने कहा कि वे इन पेड़ों को अपना भाई मानती हैं. उनके जन्म के दौरान उनके माता-पिता ने उनके नाम के साथ यह पेड़ लगाया. इसका संरक्षण करना और इसकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है. कोरोना के दौरान ऑक्सीजन की कमी और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में हमें पौधरोपण को लेकर अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए.