राजसमंद. जिले में यह पहला ऐसा बाल विवाह का मामला था. जिसमें एक बेटी ने अपने हौसले के दम पर समाज की रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ दिया. इसके कुछ दिनों बाद जयपुर में महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से बाल विवाह पर एक कहानी प्रतियोगिता रखी गई. जिसमें महिला मंच द्वारा जसोदा की कहानी को भेजा गया. इस बेटी की हौसले की इस कहानी को देखकर महिला मंच के सदस्यों ने उन्हें प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया और ₹25000 नकद राशि और गरिमा अवार्ड से नवाजा गया था.
छोटी उम्र में जसोदा का कर दिया बाल विवाह
दरअसल जब खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र थी. तब परिवार के लोगों ने रूढ़िवादी परंपरा का सहारा लेते हुए जसोदा का बाल विवाह करवा दिया. फिर जब वो 15 साल की हुई, तो उसे उसके ससुराल भेज दिया गया. जसोदा अपने ससुराल चली गई. जहां उसके साथ हर रोज मारपीट होती थी और दूसरी यातनाएं भी झेलनी पड़ीं.
यातनाओं से तंग जसोदा ने कई बार अपने परिजनों को भी पीड़ा बताई, लेकिन समाज की बेड़ियों के कारण परिवार भी जसोदा का साथ नहीं दे सका. 1 दिन जसोदा ससुराल से अपने मायके आई और लिपटकर मां से रोने लगी, तो मां से बेटी का दर्द देखा नहीं गया. मां ने कहा कि तुझे अब दोबारा उस नर्क में नहीं भेजूंगी. मां का यह फैसला इतना आसान नहीं था. जितना आप सोच रहे हैं. इस फैसले के बाद ससुराल पक्ष और गांव के पंचों ने जसोदा के परिवार पर दबाव बनाया. फिर उन्होंने कहा कि ससुराल वालों को झगड़ा जो एक क्षतिपूर्ति प्रथा है. उसके अनुसार उन्हें पैसा देना पड़ेगा. पैसा नहीं देने पर समाज के पंचों द्वारा उसे बहिष्कृत होना पड़ेगा. इस डर से कई बार मां ने बेटी को समझा-बुझाकर पीहर भेजा, लेकिन जसोदा के साथ वहां काम करवाना, खाना नहीं देना और मारपीट जारी रही. जिससे तंग आकर 1 दिन जसोदा ससुराल को बिना बताए घर आ गई.
महिला मंच को बताई पूरी घटना
वहीं इस घटना को लेकर मां के मन में भी बार-बार सवाल उठने लगे तो मां ने महिला मंच को इस पूरी घटना से अवगत कराया. महिला मंच ने जसोदा के ससुराल वालों को समझाया, लेकिन ससुराल वाले और समाज के पंचों द्वारा तुगलकी फरमान था कि अगर जसोदा को इन से संबंध खत्म करना है तो ससुराल वालों को नियम के तहत धनराशि देनी पड़ेगी. वहीं महिला मंच द्वारा जसोदा को विवाद शून्य करण करने के कानून के बारे में पता चला. इस बीच ससुराल वालों द्वारा जसोदा और उसकी मां को नाक-कान काटने और समाज से बहिष्कृत करने की धमकियां मिलने लगीं. लेकिन मां को तनिक भर भी इन बातों का फर्क नहीं पड़ा और अपनी बेटी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही.
ससुराल वालों से मिली आजादी
वहीं महिला मंच द्वारा सख्ती के साथ ससुराल पक्ष वालों को और पंचों को समझाइश की गई. जिससे बाद सहमति बनी. लेकिन फिर भी ससुराल पक्ष वाले धन लेने के लिए आमादा दिखाई दिए तो महिला मंच ने सभी लोगों के खिलाफ केस करने की बात कही, जिससे घबराकर ससुराल पक्ष वालों ने बात मानी और बगैर लेनदेन के जसोदा स्वतंत्र हो गई.
वहीं महिला मंच द्वारा ससुराल पक्ष पर विश्वास ना करते हुए सभी बातों को वकील के द्वारा स्टांप पर लिखवा लिया गया ताकि भविष्य में यशोदा कहीं भी विवाह कर सके. जब जसोदा 18 बरस की हुई तो महिला मंच द्वारा न्यायालय में विवाह शून्य करने के लिए वाद दायर किया गया. जहां से जसोदा का विवाह शून्यकरण हो गया. जिसके तहत लड़के वालों को उसकी शादी में लगा धन वापस देना पड़ा.
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एक दिन महिला एवं बाल विकास मंत्री भी बनीं थीं जसोदा
वहीं जसोदा को 1 दिन के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्री भी बनाया गया. उस दिन हुए विभाग के कार्य पर जसोदा के हस्ताक्षर करवाए गए. जसोदा ने 18 साल पूरे होने के बाद दोबारा शादी करने का विचार किया. लेकिन उसकी शर्त थी. जो मेरी मां को साथ रखेगा, वो उसी से शादी करेंगी और नाता प्रथा के तहत शादी नहीं करेंगी. विधिवत शादी करूंगी. अब जसोदा की शादी हो चुकी है और वह अपनी मां के साथ ससुराल में रह रहीं हैं. ईटीवी भारत इस जांबाज बेटी को सलाम करता है.