राजसमंद. एक जमाना था जब राजा और रानियों का राज हिंदुस्तान पर हुआ करता था. और उनके बाद अंग्रेज आए और हम पर हुकूमत की. लेकिन आज ना तो रानी है और ना ही राजा है. ना ही अंग्रेज है. लेकिन इस लोकतंत्र को पाने के लिए हमने कई कुर्बानियां दी है. सबसे ज्यादा किसी ने देश के नागरिकों को दमन किया तो वो काल अंग्रेजों का था. राजसमंद के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लीलाधर गुर्जर उस समय को याद कर हमें बताते हैं कि कितनी मुश्किलों से हमने आजादी पाई है.
लीलाधर गुर्जर कहते हैं कि इसके बारे में तो वो भूल ही नहीं सकते हैं. उस वक्त इतनी आजादी नहीं थी. और लोग शिक्षित में नहीं थे और ना ही उस समय इतने अखबार थे. कुछ भी नहीं था. राजा रईसों का जमाना था. अंग्रेजों की जो मर्जी पड़ी वह कर दे. कोई उनके खिलाफ बोलता तो उसको अत्याचार करके जेल में डाल देते. आजादी मिलने के बाद लोगों में कुछ शांति आई और लोग कुछ जानने लगे. शिक्षित होने लगे. आज ऐसा माहौल उस वक्त था ही नहीं.
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लीलाधर गुर्जर बताते हैं कि महात्मा गांधी जी ने जो आंदोलन चलाया उससे हमें भी प्रेरणा मिली और हम लोगों ने भी अत्याचार के खिलाफ जेलों में गए और अपने भारत को आजाद कराने के लिए कई जेल यात्रा तक कि हमारा देश आजाद हो हम सब को बोलने की आजादी मिले आदमी पढ़े लिखे शिक्षित हो यही सोच थी. आजादी के समय पाकिस्तान का मसला सामने आया लड़ाई झगड़ा कम हो इसलिए एक हिस्सा इनको दें और एक हिस्सा यह रखें ताकि सुख शांति हो. लेकिन आज तो उसका दुरुपयोग हो रहा है. आज पाकिस्तान हमारी आजादी को छीनने की कोशिश कर रहा है.
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लीलाधर गुर्जर गांधी को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला किया और जेलों में गए हजारों लोगों ने बलिदान दिया तब जाकर आजादी मिली. उन्होंने बताया कि उन्होंने महात्मा गांधी को प्रार्थना सभा में सत्संग करते हुए देखा. पंडित नेहरू को यहां नाथद्वारा की एक स्कूल का उद्घाटन करने थे, तब देखने का मौका मिला. तभी से वे उनके साथ आजादी की इस जंग में जुड़ गए और अंग्रेजों के भारत से खदेड़ने का काम शुरू किया. जिसका हमें 1947 में सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मदद से आजादी मिल पाई.