राजसमंद. जिले के नगर परिषद प्रांगण में बुधवार को जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ. इस कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर सीपी जोशी, राज्य सरकार के यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा, सहकारिता मंत्री और जिला प्रभारी मंत्री उदयलाल आंजना, राज्य बीज निगम आयोग के पूर्व अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौड़ समेत कई नेताओं ने इस कार्यक्रम में शिरकत की. इस कार्यक्रम में नेताओं ने घोषणाओं की बौछार कर दी.
माना जा रहा है कि अब तक जितनी सौगातें जिला बनने के बाद से अभी तक नहीं मिली, उतनी महज एक कार्यक्रम में घोषणा कर दी गई. हालांकि इस कार्यक्रम पर उपचुनाव की छाया पूरी तरह से नजर आई, लेकिन कार्यक्रम को सफल बनाने और नेताओं को उत्साहित करने के लिए यहां आयोजकों ने अच्छी खासी भीड़ जुटाई. इस कार्यक्रम के लिए अलग-अलग ग्राम पंचायतों से मनरेगा श्रमिकों को बुलाकर श्रोताओं के बीच में बैठा दिया गया. यहां मनरेगा श्रमिक अपने खाने का टिफिन भी साथ लाए थे. हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं हुआ कि किसी राजनीतिक कार्यक्रम में मनरेगा श्रमिकों की भीड़ जुटाई गई हो. नेताओं की सभाओं में श्रमिकों को लाकर बैठाना इन दिनों आम बात होती जा रही है.
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राजसमंद विकास संवाद कार्यक्रम में भी राजसमंद विधानसभा क्षेत्र की विभिन्न पंचायतों के मनरेगा श्रमिकों को लाया गया था. यहां उनको लाने और ले जाने की व्यवस्था स्थानीय नेताओं और सरपंच के जिम्मे थी. सूत्रों की मानें तो राजसमंद विधानसभा क्षेत्र के सभी सरपंचों को इस कार्यक्रम में भीड़ जुटाने का टास्क दिया गया था, जिससे मंत्रियों और अतिथियों को खुश किया जा सके. इस कार्यक्रम में भीड़ को देखकर वक्ता भी काफी उत्साहित नजर आए.
जब ईटीवी भारत संवाददाता ने कुछ मजदूरों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह मनरेगा के श्रमिक हैं और उन्हें यहां गाड़ी में बैठाकर लाया गया है. श्रमिकों को तो कार्यक्रम के बारे में भी पता नहीं था कि उन्हें किस वजह से यहां लाया गया है. उन्हें तो बस स्थानीय नेताओं ने गाड़ियों में बिठाया और कार्यक्रम स्थल पर लाकर छोड़ दिया. कई श्रमिकों को शहर घुमाने की बात कहकर कार्यक्रम में लाया गया. इस दौरान मनरेगा श्रमिकों की हाजिरी मस्टररोल में अंकित कर दी गई, लेकिन उन्हें कार्य करने की जगह नेताजी के भाषणों को ही सुनना था.
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कार्यक्रम के बाद फिर से श्रमिकों को वाहनों के माध्यम से अपने अपने गंतव्य की ओर छोड़ दिया गया. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि नेताओं को खुश करने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई पर आखिर जश्न का ये तमाशा कब तक चलता रहेगा.