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होली विशेष :  ठाकुर जी को भाती है भक्तों की गालियां...

राजसमंद के नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में होली का अनूठा और अलग अंदाज देखने को मिलता है. जहां ठाकुर जी को सिर्फ रंगों से नहीं बल्कि गालियों से रिझाया जाता है. जी हां, यहां मान्यता है कि ठाकुर जी सभी के मित्र हैं और उनको गालियां पंसद है. गालियों का दौर बंसत पंचमी से शुरु होता है और 1 माह बाद होली के डोल उत्सव पर खत्म होता है.

राजसमंद न्यूज, rajsamand news
मेवाड़ में श्रीनाथजी में गालियों की होली
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Published : Mar 7, 2020, 11:42 PM IST

Updated : Mar 8, 2020, 6:04 PM IST

राजसमंद. प्रदेश में बंसत पंचमी से ही फाग उत्सव की धूम शुरू हो जाती है, जो होली पर खत्म हो जाती है. 1 माह तक चलने वाले फाग में श्रद्धालु मंदिरों में रोज अबीर और गुलाल से होली खेलते हैं और चंग, ढप, झांझ की ताल पर रसिया गाये जाते हैं. लेकिन राजस्थान में एक ऐसी जगह है जहां भगवान को रिझाने के लिए रसिया के साथ गालियों का प्रयोग किया जाता है. हम बात कर रहे हैं राजसमंद में स्थित श्रीनाथद्वारा की, जिसमें गालियों से प्रभु को प्रसन्न किया जाता है.

श्रीनाथजी में गालियों की होली

होली पर खत्म होता है फागोत्सव

नाथद्वार में आने वाले हर दर्शानर्थी के साथ फागोत्सव खेला जाता है, जो होली पर डोल उत्सव के साथ संपन्न जाता है. फागोत्सव से डोल उत्सव तक सभी एक दूसरे को गुलाल लगाकर गालियां देकर अभिवादन करते हैं. इस अनूठी होली में स्थानीय निवासी बढ़चढ़कर भाग लेते हैं.

ठाकुर जी को देते हैं गालियां

मंदिर में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि के दिन से होलकाष्टक लगने के साथ ही रसिया गान में गलियों का प्रयोग शुरु हो जाता है. कीर्तनकार और ग्वालबाल प्रेम पुर्वक भगवान के समक्ष भगवान को और मंदिर के मुखिया को और तिलकायत महाराज श्री को भी गालिया देते हैं.

ठाकुर जी को भाती हैं गालियां

रसिया गीत में दी जाने वाली गालियों में घृणा नहीं बल्कि प्रेम भाव होता है, यही वजह है कि ये ठाकुर जी को बहुत भाती है. रसिया में प्रेम भाव और छेड़छाड़ के गीत गाये जाते है. स्थानीय लोगों में मान्यता है कि सभी ग्वालबाल भगवान के मित्र हैं इसी वजह से प्रमभरी गालियों देकर वे अपने प्रेम का दर्शाते हैं.

श्रीनाथजी में खास तैयारियां

(होली) डोल उत्सव के दौरान खास तैयारियां की जाती है, जिसमें प्रभु श्रीनाथजी को चार राजभोग धराये जाते हैं और शाम को चौथे राजभोग की आरती के दर्शन के साथ एक माह से चल रहे फाग उत्सव का समापन हो जाता है.

पढ़ें-झालावाड़: 'हाड़ौती के नाथद्वारा' द्वारिकाधीश मन्दिर में फागोत्सव की धूम, भक्तों ने जमकर खेली होली

इसके बाद मंदिर को धोकर साफ कर दिया जाता है. चौथे और अंतिम राजभोग में इतना अबीर ओर गुलाल उड़ाया जाता है कि पूरा मंदिर गगन गौर हो जाता है और श्रीजी की केवल आरती की लो ही दिखाई देती है. इसके ठीक बाद वाले दर्शनों से पहले मंदिर को साफ कर दिया जाता है और फिर गुलाल का प्रयोग नहीं किया जाता है.

चिर-परिचित से अनजान तक को दे सकते हैं गाली

नाथद्वारा में रंगों के त्योहार का अलग ही अंदाज है. श्रीजी ठाकुर जी को भी गालियां देना अच्छा लगता है. इस पूरी परंपरा को कई वर्षों से निभाया जा रहा है, जिसमें नगर के लोग एक दूसरे को होली के दिन गालियां देते हैं.

पढ़ें- होली के रंग: 300 साल पुरानी है शिव-पार्वती के मिलन की प्रतीक नागौर की 'फक्कड़ गैर' परंपरा

होलिका दहन के बाद से ही लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो वो परिचित हो या फिर अनजान सभी का अभिवादन गालियां दे कर करते हैं और कोई भी बुरा नहीं मानता है.

सिर्फ सूखे रंगों का प्रयोग

खास बात ये है कि यहां कि होली में सिर्फ सूखे रंगों का ही प्रयोग करते हैं. बाहर से आने वाले पर्यटक हो या स्थानीय निवासी, पुरुष हो या महिलाएं सभी एक दूसरे को रंग लगते हैं और गलियों से एक दूसरे का अभिवादन करते हैं.

इस दौरान किसी भी प्रकार की जोर जबरदस्त नहीं होती, किसी तरह की उद्दंडता नहीं होती है. सभी आनन्द से प्रेम भाव से होली खेलते हैं और इसी तरह नाचते-गाते होली खेलते डोल उत्सव के साथ फाग महोत्सव का समापन हो जाता है.

राजसमंद. प्रदेश में बंसत पंचमी से ही फाग उत्सव की धूम शुरू हो जाती है, जो होली पर खत्म हो जाती है. 1 माह तक चलने वाले फाग में श्रद्धालु मंदिरों में रोज अबीर और गुलाल से होली खेलते हैं और चंग, ढप, झांझ की ताल पर रसिया गाये जाते हैं. लेकिन राजस्थान में एक ऐसी जगह है जहां भगवान को रिझाने के लिए रसिया के साथ गालियों का प्रयोग किया जाता है. हम बात कर रहे हैं राजसमंद में स्थित श्रीनाथद्वारा की, जिसमें गालियों से प्रभु को प्रसन्न किया जाता है.

श्रीनाथजी में गालियों की होली

होली पर खत्म होता है फागोत्सव

नाथद्वार में आने वाले हर दर्शानर्थी के साथ फागोत्सव खेला जाता है, जो होली पर डोल उत्सव के साथ संपन्न जाता है. फागोत्सव से डोल उत्सव तक सभी एक दूसरे को गुलाल लगाकर गालियां देकर अभिवादन करते हैं. इस अनूठी होली में स्थानीय निवासी बढ़चढ़कर भाग लेते हैं.

ठाकुर जी को देते हैं गालियां

मंदिर में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि के दिन से होलकाष्टक लगने के साथ ही रसिया गान में गलियों का प्रयोग शुरु हो जाता है. कीर्तनकार और ग्वालबाल प्रेम पुर्वक भगवान के समक्ष भगवान को और मंदिर के मुखिया को और तिलकायत महाराज श्री को भी गालिया देते हैं.

ठाकुर जी को भाती हैं गालियां

रसिया गीत में दी जाने वाली गालियों में घृणा नहीं बल्कि प्रेम भाव होता है, यही वजह है कि ये ठाकुर जी को बहुत भाती है. रसिया में प्रेम भाव और छेड़छाड़ के गीत गाये जाते है. स्थानीय लोगों में मान्यता है कि सभी ग्वालबाल भगवान के मित्र हैं इसी वजह से प्रमभरी गालियों देकर वे अपने प्रेम का दर्शाते हैं.

श्रीनाथजी में खास तैयारियां

(होली) डोल उत्सव के दौरान खास तैयारियां की जाती है, जिसमें प्रभु श्रीनाथजी को चार राजभोग धराये जाते हैं और शाम को चौथे राजभोग की आरती के दर्शन के साथ एक माह से चल रहे फाग उत्सव का समापन हो जाता है.

पढ़ें-झालावाड़: 'हाड़ौती के नाथद्वारा' द्वारिकाधीश मन्दिर में फागोत्सव की धूम, भक्तों ने जमकर खेली होली

इसके बाद मंदिर को धोकर साफ कर दिया जाता है. चौथे और अंतिम राजभोग में इतना अबीर ओर गुलाल उड़ाया जाता है कि पूरा मंदिर गगन गौर हो जाता है और श्रीजी की केवल आरती की लो ही दिखाई देती है. इसके ठीक बाद वाले दर्शनों से पहले मंदिर को साफ कर दिया जाता है और फिर गुलाल का प्रयोग नहीं किया जाता है.

चिर-परिचित से अनजान तक को दे सकते हैं गाली

नाथद्वारा में रंगों के त्योहार का अलग ही अंदाज है. श्रीजी ठाकुर जी को भी गालियां देना अच्छा लगता है. इस पूरी परंपरा को कई वर्षों से निभाया जा रहा है, जिसमें नगर के लोग एक दूसरे को होली के दिन गालियां देते हैं.

पढ़ें- होली के रंग: 300 साल पुरानी है शिव-पार्वती के मिलन की प्रतीक नागौर की 'फक्कड़ गैर' परंपरा

होलिका दहन के बाद से ही लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो वो परिचित हो या फिर अनजान सभी का अभिवादन गालियां दे कर करते हैं और कोई भी बुरा नहीं मानता है.

सिर्फ सूखे रंगों का प्रयोग

खास बात ये है कि यहां कि होली में सिर्फ सूखे रंगों का ही प्रयोग करते हैं. बाहर से आने वाले पर्यटक हो या स्थानीय निवासी, पुरुष हो या महिलाएं सभी एक दूसरे को रंग लगते हैं और गलियों से एक दूसरे का अभिवादन करते हैं.

इस दौरान किसी भी प्रकार की जोर जबरदस्त नहीं होती, किसी तरह की उद्दंडता नहीं होती है. सभी आनन्द से प्रेम भाव से होली खेलते हैं और इसी तरह नाचते-गाते होली खेलते डोल उत्सव के साथ फाग महोत्सव का समापन हो जाता है.

Last Updated : Mar 8, 2020, 6:04 PM IST
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