राजसमंद. जिले की भाटोली पंचायत के नाकली गांव के प्रगतिशील किसान राधेश्याम कीर परंपरागत खेती से हटकर औषधीय फसलों की बुवाई कर रहे हैं. उन्होंने अपने खेत में अमेरिका और मैक्सिको में पैदा होने वाली विदेशी फसलों चिया और किनोवा की बुवाई की है. यह मैक्सिकन ड्राई फूड है. जो कई प्रकार की बीमारियों में औषधी के तौर पर काम आता है. देखिये यह खास रिपोर्ट...
किसान राधेश्याम कीर ने काले गेहूं की बुवाई भी की है. जो शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद बताया जाता है. उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के निर्देशन में जिले में पहली बार इन फसलों की बुवाई हुई है. तीनों फसलें विभिन्न औषधियों रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काम आती है. इनमें विभिन्न विटामिन पाए जाते हैं. इनकी बिक्री भी कृषि विश्वविद्यालय के निर्देशन में ही की जाएगी.
राधेश्याम ने बताया कि परंपरागत खेती में ज्यादा मुनाफा नहीं मिलता. ऐसे में उन्होंने परंपरागत खेती से हटकर नवाचार करने की योजना बनाई. इसके लिए उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के डॉ विश्वभूषण से मिले. उन्होंने चिया, किनोवा, काले गेहूं की बुवाई की सलाह दी. उन्होंने बुवाई, फसल पकने तक की प्रक्रिया जानकर खेत में एक बीघा में चिया, एक बीघा में किनोवा और एक बीघा में काले गेहूं की बुवाई की.
चिया की फसल अब एक पखवाड़े के बाद पक कर तैयार हो जाएगी. इसके बाद कटाई कर बीज निकाले जाएंगे. किनोवा की फसल भी 25 दिन में पकने की उम्मीद जताई जा रही है. राधेश्याम ने एक बीघा में 25 किलो काले गेहूं की बुवाई पहली बार की है इसका बीज उन्होंने बाजार से करीब 60 रुपए किलो में खरीदा.
जिले में पहली बार चिया, किनोवा फसल की खेती
चिया का सबसे अधिक उत्पादन अमेरिका में होता है. यह बीज मध्य अमेरिका में पाया जाता है. इसके बीज की उत्पत्ति सबसे पहले मैक्सिको, ग्वाटेमाला में हुई थी. वर्तमान में इसकी खेती अमेरिका के अलावा मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी की जाती है. भारत में चिया बीजों का आयात मैक्सिको से होता है.
तिल की तरह होती है चिया की फसल
राधेश्याम को चिया और किनोवा के बीज खरीदने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ी. कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारी ने उदयपुर से 300 रुपए किलो के भाव से उसको बीज दिलवाए गए. चिया की बुवाई का समय अक्टूबर के अंत में होता है. जब की फसल पकने का समय 5 महीने का होता है. फसल के लिए 6 से 12 डिग्री तक का तापमान जरूरी होता है. यह फसल तिल की तरह होती है. इसके पौधे पर तिल की तरह की ही फलियां आती हैं. फलियों को पत्थर पर पटक-पटक कर चिया के बीज निकाले जाएंगे. चिया एक बहुपयोगी औषधि है. इससे मोटापा कम होता है. शरीर को ओमेगा 3 और ओमेगा 6 जैसे पोषक तत्व मिलते हैं.
कैसे होगी चिया की बिक्री
राधेश्याम ने बताया कि फिलहाल यहां चिया का कोई बाजार उपलब्ध नहीं है. ऐसे में वह महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के जरिए ही फसल को बेचेंगे.
कितना लाभकारी है चिया
चिया में सबसे अधिक ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है. पोटेशियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, जिंक, कॉपर, ओमेगा 6, वसा, सोडियम, फास्फोरस, जस्ता, तांबा, कैल्शियम, मैगनीज आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें एंटीसेप्टिक, एंटीफंगल और एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं.
जानिए किनोवा की फसल के बारे में
किनोवा एक बीजीय फसल है. इसकी बुवाई का समय अक्टूबर अंत में होता है. जबकि इसको पकने में 5 महीने का समय लगता है. वह कभी बीच राजसमंद जिले में नहीं मिलते हैं इसे भी राधेश्याम ने उदयपुर के कृषि विश्वविद्यालय के जरिए ही मंगवाए. इसमें काफी पोषक तत्व होते हैं. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता में काम आती है. इसे उपमा की तरह नाश्ता बना कर खाया जाता है.
काले गेहूं के बारे में जानिए
काले गेहूं की बुवाई का उपयुक्त समय नवंबर में होता है. इसे पकने में करीब 5 महीने का समय लगता है. यह फसल मार्च तक सकती है. मुख्य रूप से यह शुगर में और मोटापा कम करने में काम आता है. क्योंकि इसमें कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है. इसका बीज भी राधेश्याम ने उदयपुर से ही खरीदा था और इसकी बिक्री भी वह उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के जरिए करेंगे.
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दिल के रोगों को दूर करता है काला गेहूं
काले गेहूं में ट्राइग्लिसराइड तत्व और मैग्नीशियम काफी मात्रा में पाया जाता है. काला गेहूं शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है. इससे कब्ज दूर होती है. वहीं पेट के कैंसर में भी यह फायदा करता है. इसमें फाइबर अधिक होने से यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है. हाई ब्लड प्रेशर डायबिटीज में काला गेहूं काफी असरदार होता है. आंतों के इन्फेक्शन को खत्म करने में भी काला गेहूं कारगर है. इसमें फास्फोरस शरीर में नए उत्तकों को बनाने में कारगर होता है. आयरन भरपूर होने से यह एनीमिया की बीमारी को भी दूर करता है और शरीर में ऑक्सीजन का स्तर सही रहता है.
विदेशों में ज्यादा होती है काले गेहूं की खेती
काला गेहूं सबसे ज्यादा रूस, कजाकिस्तान, चीन के अलावा मध्य और पूर्वी यूरोप में उत्तरी गोलार्ध में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है. इसका उपयोग अनाज चाय में किया जाता है. इसे ग्रेटस, आटा और नूडल्स के रूप में प्रयोग किया जाता है. कई यूरोपीय और एशियाई देशों में पारंपरिक व्यंजनों में चावल के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
राजसमंद कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर पी सी रैगर ने बताया कि प्रगतिशील किसान राधेश्याम ने जिले में पहली बार इन फसलों की बुवाई की है. चिया, किनोवा और काला गेहूं तीनों की औषधि महत्व की फसलें हैं. राधेश्याम ने परंपरागत खेती से हटकर औषधि खेती में रुझान दिखाया है. आगामी समय में यह खेती काफी लाभदायक सिद्ध होगी. उन्होंने बताया कि जिले का मौसम भी इन फसलों के लिए काफी अनुकूल है. ऐसे में आगामी दिनों में अन्य किसान भी इस फसल को अपनाकर आर्थिक उन्नति कर सकते हैं.