पाली. करीब 250 साल पहले रानी उपखंड में आने वाले सिवास गांव को बसाया गया था. पुरानी परम्परा थी कि गांव में देवता की स्थापना कर लोग अपने घरों की नींव रखते थे. उस समय भी ग्रामीणों ने गांव के तालाब भी चामुंडा माता का मंदिर बनाया.
बताया जाता है कि भारत में मंदिरों के मुख्य द्वार पर कभी झरोखा नहीं बनाया जाता लेकिन उस समय क्या परिस्थिति रही कि इस मंदिर के मुख्यद्वार पर झरोखा बन गया. ऐसे में ग्रामीणों ने भी उस समय इसे देवताओं का आदेश मान लिया और अपने घरों की छत पर आगे की तरफ दूसरी मंजिल नहीं बनाने का फैसला कर लिया.
बुजुर्गों ने इस परम्परा को किसी आधार पर बनाया था, यह तो आज तक कोई पता नहीं लगा पाया. आज भी इस गांव में 700 से ज्यादा घर हैं. यह सभी घर एक मंजिल के ही हैं. इनके दूसरी मंजिल पर आगे की तरफ कही भी कमरा नहीं बना हुआ है.
मान सकते है कि जिस समय यह गांव बसा था इस दौरान अंधविश्वास और अशिक्षा का प्रभाव काफी ज्यादा था. आज समय बदल चुका है, परिस्थितियां भी बदल चुकी है, लोगों को जागरूकता भी आई है. इस गांव में 40 से ज्यादा मुस्लिम परिवार रहते है. जो हिंदू परिवार से ज्यादा इस गांव के चामुंडा माता मंदिर से जुड़ी इस किवदंत कथा की परंपरा को मानते हैं.
इतना ही इस गांव के ग्रामीण बताते हैं कि यह सभी मुस्लिम परिवार नवरात्रा के नौ दिन मंदिर को अपना समय देते हैं. वहीं ग्रामीणों का मानना है कि जैसे -जैसे शिक्षा का विस्तार हो रहा है. यहां के लोग प्रवासी होने के बाद गांव में अपने घरों को मार्डन लुक देने की कोशिश कर रहे हैं.
गांव की परम्परा से परे कुछ लोगों ने दो मंजिला इमारत बनाई. जिनमें से कुछ मकान की एक ही दिवार बनवा पाए थे, तो कुछ ने पूरा मकान बनावा लिया, लेकिन उनका पुरा परिवार आज तक उस मकान में नहीं रह पाया है.बरसों से वह मकान बंद पड़ा है.