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पाली के इस गांव में छत पर आगे की तरफ नहीं बनती दूसरी मंजिल...ये है वजह

पाली जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर सिवास कस्बा है .इस गांव में ज्यादातर प्रवासी हैं. सभी आर्थिक रूप से काफी उन्नत हैं लेकिन इसके बाद भी इनके घरों की तरफ नजर डालेंगे तो कुछ अजीब ही लगेगा.

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Published : May 11, 2019, 1:52 PM IST

Updated : May 11, 2019, 11:26 PM IST

पीढ़ियों से इस गांव के लोगों ने नहीं बनाई घर की दूसरी मंजिल

पाली. करीब 250 साल पहले रानी उपखंड में आने वाले सिवास गांव को बसाया गया था. पुरानी परम्परा थी कि गांव में देवता की स्थापना कर लोग अपने घरों की नींव रखते थे. उस समय भी ग्रामीणों ने गांव के तालाब भी चामुंडा माता का मंदिर बनाया.

बताया जाता है कि भारत में मंदिरों के मुख्य द्वार पर कभी झरोखा नहीं बनाया जाता लेकिन उस समय क्या परिस्थिति रही कि इस मंदिर के मुख्यद्वार पर झरोखा बन गया. ऐसे में ग्रामीणों ने भी उस समय इसे देवताओं का आदेश मान लिया और अपने घरों की छत पर आगे की तरफ दूसरी मंजिल नहीं बनाने का फैसला कर लिया.

बुजुर्गों ने इस परम्परा को किसी आधार पर बनाया था, यह तो आज तक कोई पता नहीं लगा पाया. आज भी इस गांव में 700 से ज्यादा घर हैं. यह सभी घर एक मंजिल के ही हैं. इनके दूसरी मंजिल पर आगे की तरफ कही भी कमरा नहीं बना हुआ है.

इस गांव में नहीं बनाते दो मंजिला मकान, देखिए

मान सकते है कि जिस समय यह गांव बसा था इस दौरान अंधविश्वास और अशिक्षा का प्रभाव काफी ज्यादा था. आज समय बदल चुका है, परिस्थितियां भी बदल चुकी है, लोगों को जागरूकता भी आई है. इस गांव में 40 से ज्यादा मुस्लिम परिवार रहते है. जो हिंदू परिवार से ज्यादा इस गांव के चामुंडा माता मंदिर से जुड़ी इस किवदंत कथा की परंपरा को मानते हैं.

इतना ही इस गांव के ग्रामीण बताते हैं कि यह सभी मुस्लिम परिवार नवरात्रा के नौ दिन मंदिर को अपना समय देते हैं. वहीं ग्रामीणों का मानना है कि जैसे -जैसे शिक्षा का विस्तार हो रहा है. यहां के लोग प्रवासी होने के बाद गांव में अपने घरों को मार्डन लुक देने की कोशिश कर रहे हैं.

गांव की परम्परा से परे कुछ लोगों ने दो मंजिला इमारत बनाई. जिनमें से कुछ मकान की एक ही दिवार बनवा पाए थे, तो कुछ ने पूरा मकान बनावा लिया, लेकिन उनका पुरा परिवार आज तक उस मकान में नहीं रह पाया है.बरसों से वह मकान बंद पड़ा है.

पाली. करीब 250 साल पहले रानी उपखंड में आने वाले सिवास गांव को बसाया गया था. पुरानी परम्परा थी कि गांव में देवता की स्थापना कर लोग अपने घरों की नींव रखते थे. उस समय भी ग्रामीणों ने गांव के तालाब भी चामुंडा माता का मंदिर बनाया.

बताया जाता है कि भारत में मंदिरों के मुख्य द्वार पर कभी झरोखा नहीं बनाया जाता लेकिन उस समय क्या परिस्थिति रही कि इस मंदिर के मुख्यद्वार पर झरोखा बन गया. ऐसे में ग्रामीणों ने भी उस समय इसे देवताओं का आदेश मान लिया और अपने घरों की छत पर आगे की तरफ दूसरी मंजिल नहीं बनाने का फैसला कर लिया.

बुजुर्गों ने इस परम्परा को किसी आधार पर बनाया था, यह तो आज तक कोई पता नहीं लगा पाया. आज भी इस गांव में 700 से ज्यादा घर हैं. यह सभी घर एक मंजिल के ही हैं. इनके दूसरी मंजिल पर आगे की तरफ कही भी कमरा नहीं बना हुआ है.

इस गांव में नहीं बनाते दो मंजिला मकान, देखिए

मान सकते है कि जिस समय यह गांव बसा था इस दौरान अंधविश्वास और अशिक्षा का प्रभाव काफी ज्यादा था. आज समय बदल चुका है, परिस्थितियां भी बदल चुकी है, लोगों को जागरूकता भी आई है. इस गांव में 40 से ज्यादा मुस्लिम परिवार रहते है. जो हिंदू परिवार से ज्यादा इस गांव के चामुंडा माता मंदिर से जुड़ी इस किवदंत कथा की परंपरा को मानते हैं.

इतना ही इस गांव के ग्रामीण बताते हैं कि यह सभी मुस्लिम परिवार नवरात्रा के नौ दिन मंदिर को अपना समय देते हैं. वहीं ग्रामीणों का मानना है कि जैसे -जैसे शिक्षा का विस्तार हो रहा है. यहां के लोग प्रवासी होने के बाद गांव में अपने घरों को मार्डन लुक देने की कोशिश कर रहे हैं.

गांव की परम्परा से परे कुछ लोगों ने दो मंजिला इमारत बनाई. जिनमें से कुछ मकान की एक ही दिवार बनवा पाए थे, तो कुछ ने पूरा मकान बनावा लिया, लेकिन उनका पुरा परिवार आज तक उस मकान में नहीं रह पाया है.बरसों से वह मकान बंद पड़ा है.

Intro:पैकेज स्टोरी..............


एक मंजिला इमारतों का कस्बा


- पीढियों से इस गांव के लोगों ने नहीं बनाई घर की दूसरी मंजिल


- हिंदू ही नहीं मुस्लिम भी अपने पुर्वजों से मानते आए है इस परम्परा को 


- जिसने भी कोशिश की दूसरी मंजिल बनाने की उसे भुगतना पडा प्रकोप



एंकर - धर्म ओर आस्था इसका दूसरा नाम भारत है। हमारे देश के हर घर में कोई न कोई देवता लोगों के लिए अराध्य है। अब जब राजस्थान की बात की जाए तो यहां यहां तो सबसे ज्यादा धर्म देखने को मिलता है। ऐसे में पाली जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर एक कस्बा है सिवास। इसकी कहानी भी बहूत रोचक है। इस गांव में ज्यादातर प्रवासी है। सभी आर्थिक रूप से काफी उन्नत है। लेकिन, इसके बाद भी इनके घरों की तरफ नजर डालेंगे तो कुछ अजीब ही लगेगा। फलेट और मल्टीप्लेक्स घरों के इस दौर में यहां रहने वाले उधमी भी एक मंजिल का ही घर बना रहे है। कहानी बडी रौचक है, इसमें लोगों की आस्था है, अंधविश्वास का डर है, रूढीवादी परम्परा भी है, और बुर्जुगों के सम्मान को जीवित रखने एक उदाहरण भी नजर आता है।






Body:विओ 1 - दरअसल, करीब 250 साल पहले रानी उपखंड में आने वाले सिवास गांव को बसाया गया था। पुरानी परम्परा थी की गांव में देवता की स्थापना कर लोग अपने घरों की नींव देते थे। उस समय भी ग्रामीणों ने गांव के तालाब भी चामुंडा माता का मंदिर बनाया। बताया जाता है कि भारत में मंदिरों के मुख्य द्वार पर कभी झरोखा नहीं बनाया जाता, लेकिन, उस समय क्या परिस्थिति रही कि इस मंदिर के मुख्यद्वार पर झरोखा बन गया। ऐसे में ग्रामीणों ने भी उस समय इसे देवताओं का आदेश मान लिया। और अपने घरों की छत पर आगे की तरफ दूसरी मंजिल नहीं बनाने का फैसला कर लिया। 



विओ 2 - बुजुगों ने इस पंरम्परा को किसी आधार पर बनाया था। यह तो आज तक कोई पता नहीं लगा पाया। आज भी इस गांव में 700 से ज्यादा घर है। यह सभी घर एक मंजिल के ही हैं। इनके दूसरी मंजिल पर आगे की तरफ कही भी कमरा नहीं बना हुआ है। मान सकते है कि जिस समय यह गांव बसा था इस दौरान अंधविश्वास और अशिक्षा का प्रभाव काफी ज्यादा था। आज समय बदल चुका है, परिस्थितियां भी बदल चुकी है, लोगों को जागरूकता भी आई है, गांव का का विकास भी हुआ है, गांव के युवा अब दिल्ली जैसे बडे शहरों में रिर्सच भी कर रहे। लेकिन, इस गांव के बुजुर्गो द्वारा बनाई परम्परा को आज की पीढि और ज्यादा निर्वहन कर रही है।


विओ 3 - भले ही देश में साम्प्रदायिकता का माहौल चल रहा है। लेकिन, इस गांव में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता। इस गांव में 40 से ज्यादा मुुस्लिम परिवार रहते है। और हिंदू परिवार से ज्यादा यह परिवार इस गांव के चामुंडा माता मंदिर से जुडी इस किदवंत कथा की परंपरा को मानते है। इतना ही इस गांव के ग्र्रामीण भी बताते है। यह सभी मुस्लिम परिवार कसमें में माता के नाम की खाते है और नवरात्रा के नो दिन मंदिर को अपना समय भी देते है। इनके घर भी पुर्वजों के समय से एक मंजिल के ही बनाते आ रहे है।

 

विओ 4 - यहां के ग्रामीणों की माने तो जैसे जैसे शिक्षा का विस्तार हो रहा है। यहां के लोग प्रवासी होने के बाद गांव में अपने घरों को मार्डन लूक देने की कोशिश कर रहे हे। गांव की परम्परा से परे कुछ लोगों ने लोगों ने दो मंजिला इमारत बनाई। लेकिन, ग्रामीण बताते है कि एक उसकी दीवार ही बनावा पाया। और एक ने पूरा मकान तो बना दिया। लेकिन, उसका पुरा परिवार आज तक उस मकान में नहीं रह पाया है। और बरसों से वह मकान बंद ही पडा है। गांव के 700 घरों में से मात्र इस तरह की कोशिश 2 जनों ने ही आज तक की है।





Conclusion:
Last Updated : May 11, 2019, 11:26 PM IST
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