भरतपुर: आजादी के बाद से ही भरतपुर की कुटैमा खस्ता गजक का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है. आज यह गजक भरतपुर ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया, दुबई और फ्रांस तक के लोगों का जायका बढ़ा रही है. तिल और गुड़ से खास विधि से तैयार की जाने वाली यह गजक अपने स्वाद, शुद्धता और इतिहास के लिए खासी जानी जाती है. भरतपुर की जानी मानी कुटैमा खस्ता गजक का काम 69 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था और 1955 में यह महज 1 रुपए किलो में बिकती थी. इतने साल बाद भी इसका स्वाद और शुद्धता वही है. आइए जानते हैं भरतपुर की इस गजक की क्या विशेषता है और इसे कैसे तैयार किया जाता है.
69 साल पहले शुरू किया गजक निर्माण: गजक व्यवसायी मुकेश चंद ने बताया कि वर्ष 1955 में उनके पिता ने गजक बनाने का काम शुरू किया. उस समय एक ही प्रकार की कुटैमा खस्ता गजक बना करती थी. पूरे भरतपुर और आसपास के जिलों में उस समय कुटैमा गजक की बहुत मांग हुआ करती थी. उस समय यह सिर्फ 1 रुपए किलो में बिका करती थी. आज इस गजक की कीमत 400 रुपए प्रति किलो है.
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मुकेश चंद ने बताया कि तिल और गुड़ से तैयार की जाने वाली कुटैमा खस्ता गजक बहुत ही शुद्ध गजक है. मुंह में रखते ही गजक घुल जाती है और इसका स्वाद लाजवाब है. यही वजह है कि आज यह गजक भरतपुर और देश के अन्य राज्यों में ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और दुबई तक के लोगों के मुंह का स्वाद बढ़ा रही है. स्थानीय लोगों के माध्यम से विदेश में रहने वाले लोग इस गजक को मंगाते हैं. यहां तक कि सर्दियों में लोग अपने अतिथियों को गिफ्ट में मिठाई के बजाय गजक देना पसंद करते हैं.
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ऐसे की जाती है तैयार: मुकेश चंद ने बताया कि कुटैमा खस्ता गजक को शुद्धता के साथ विशेष विधि से तैयार किया जाता है. इसके लिए सबसे पहले तिल को भूना जाता है. फिर इसे गुड़ की चासनी में मिलाकर छोटे-छोटे लड्डू बनाए जाते हैं. इसके बाद इन लड्डुओं की अच्छी तरह से कुटाई की जाती है. उसके बाद 50-50 ग्राम के पीस बना कर गजक तैयार की जाती है.
25 तरह की गजक: मुकेश चंद ने बताया कि हमारे यहां कुटैमा खस्ता गजक के साथ ही 25 तरह की गजक तैयार की जाती है. इसमें तिल, मूंगफली, ड्राई फ्रूट्स आदि की अलग-अलग स्वाद और प्रकार की गजक तैयार की जाती है. मुकेश चंद ने बताया कि हमारे यहां वर्षभर गजक उपलब्ध रहती है, लेकिन खास डिमांड नवंबर, दिसंबर और जनवरी में रहती है.