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नाथी का बाड़ा और बवाल, पूरे रियासत में मदद के लिए जानी जाती थी 'नाथी मां'...जानिये पूरी कहानी

राजस्थान के शिक्षा मंत्री एवं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के शिक्षकों से कहे गए 'नाथी का बाडा' शब्द को लेकर प्रदेश में काफी सुर्खियां हैं. शिक्षकों को लताड़ लगाते हुए उन्होंने कहा था कि 'मेरे घर को नाथी का बाड़ा समझ रखा है'. शिक्षा मंत्री के इस बयान के बाद 11 अप्रैल से गूगल पर सबसे ज्यादा इस शब्द को सर्च किया गया है.

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Published : Apr 14, 2021, 2:25 PM IST

story about real happening
नाथी का बाड़ा और बवाल

पाली. डोटासरा के 'नाथी का बाड़ा' बयान के खिलाफ कर्मचारियों ने रजस्थान में प्रदर्शन किया. कर्मचारियों ने डोटासरा का पुतला फूंका और जमकर नारेबाजी भी की थी. ईटीवी भारत आपको बताना चाहता है कि शिक्षा मंत्री ने जिस नाथी के बाड़े की बात की है, वह पाली जिले के रोहट उपखंड क्षेत्र के भांगेसर गांव में है. जिस प्रकार से इस शब्द की उपमा बनाई गई है, वैसे इस शब्द का अर्थ नहीं है. असल में नाथी का बाड़ा जोधपुर रियासत काल से दानदाताओं के लिए माना जाता है. बताया जाता है कि यहां नाथी मां के रूप में प्रसिद्ध हुई महिला ने अपने घर आए हर व्यक्ति की मदद करती थी.

nathi ka bada in pali
अब पक्का मकान बन गया है...

स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार नाथी बाई के जन्म का इतिहास 150 से 200 साल पुराना है. उनका पैतृक गांव और रोहट तहसील का भांगेसर गांव है. उनका परिवार आज भी इस गांव में रहता है. रियासत काल में बना नाथी का बाड़ा यानी मकान के जीर्ण-शीर्ण होने के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने अब उसे नया रूप देकर निखार दिया है. मकान के प्रवेश द्वार पर ही पत्थर पर उनका नाम लिखा हुआ है.

पढ़ें : जयपुर: शिक्षा मंत्री के 'नाथी का बाड़ा' बयान को लेकर कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन

जिस गली में मकान है गली के शुरूआत होते ही नाथी मां द्वारा पुत्री की शादी में व्रत पालन के दौरान निर्मित कराया गया चबूतरा आज भी विद्यमान है. उनका हाल ही में परिजनों द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया है. कहा जाता है कि नाथी बाई ने पुत्री के विवाह के दौरान अपने आसपास के साथ गांव को आमंत्रित किया था. जिसमें स्नेह भोज में घी की नदियां बहती थी. इतना उपयोग में लिया गया कि गांव के मुख्य द्वार तक जी की नाली गई थी.

ruckus over nathi ka bada comment
बाड़े में स्थित कुआं...

कहावत अपमान की नहीं, बल्कि उनकी दरियादिली की थी...

'नाती का बाड़ा' जैसी कहावत को लोगों ने गलत उपमा दे दी, लेकिन नाथी मां का जीवन जरूरतमंदों की मदद व समाज सेवा से जुड़ा हुआ था. घर से नाथी मां पैसा या अनाज ले जाने व वापस जमा कराने वालों पर ना तो हाथ लगाती थीं, ना ही गिनने का ध्यान देती थीं. सब कुछ जरूरतमंदों की ईमानदारी पर ही हिसाब लिखा था. इसी कारण यह कहावत प्रचलित हुई कि यह क्या नाथी का बाड़ा है या इसे क्या नाथी का बाड़ा समझ रखा है. यह नाथी मां के जीवन चरित्र को चरितार्थ करती थी. नाथी मां के निधन को 100 साल से अधिक का समय हो गया है. उनकी समाधि आज भी स्थित है. साथ ही उनके पढ़े पोते उनके घर में आज भी रहते हैं.

story about real happening
नाथी मां के पोते...

क्या था मामला...

दरअसल, डोटासरा ने कहा था कि पढ़ाई-लिखाई कराने के बजाय मंत्रियों के दरवाजे पर जाकर अपनी बेवजह की मांग रखते हैं, ऐसे शिक्षक संगठन अब बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे. जिसके बाद राजस्थान में राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई थी. वहीं, अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ एकीकृत की ओर से आक्रोश जताया गया. कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री से शिक्षा मंत्री को बर्खास्त करने की मांग की और जमकर नारेबाजी की.

पाली. डोटासरा के 'नाथी का बाड़ा' बयान के खिलाफ कर्मचारियों ने रजस्थान में प्रदर्शन किया. कर्मचारियों ने डोटासरा का पुतला फूंका और जमकर नारेबाजी भी की थी. ईटीवी भारत आपको बताना चाहता है कि शिक्षा मंत्री ने जिस नाथी के बाड़े की बात की है, वह पाली जिले के रोहट उपखंड क्षेत्र के भांगेसर गांव में है. जिस प्रकार से इस शब्द की उपमा बनाई गई है, वैसे इस शब्द का अर्थ नहीं है. असल में नाथी का बाड़ा जोधपुर रियासत काल से दानदाताओं के लिए माना जाता है. बताया जाता है कि यहां नाथी मां के रूप में प्रसिद्ध हुई महिला ने अपने घर आए हर व्यक्ति की मदद करती थी.

nathi ka bada in pali
अब पक्का मकान बन गया है...

स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार नाथी बाई के जन्म का इतिहास 150 से 200 साल पुराना है. उनका पैतृक गांव और रोहट तहसील का भांगेसर गांव है. उनका परिवार आज भी इस गांव में रहता है. रियासत काल में बना नाथी का बाड़ा यानी मकान के जीर्ण-शीर्ण होने के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने अब उसे नया रूप देकर निखार दिया है. मकान के प्रवेश द्वार पर ही पत्थर पर उनका नाम लिखा हुआ है.

पढ़ें : जयपुर: शिक्षा मंत्री के 'नाथी का बाड़ा' बयान को लेकर कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन

जिस गली में मकान है गली के शुरूआत होते ही नाथी मां द्वारा पुत्री की शादी में व्रत पालन के दौरान निर्मित कराया गया चबूतरा आज भी विद्यमान है. उनका हाल ही में परिजनों द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया है. कहा जाता है कि नाथी बाई ने पुत्री के विवाह के दौरान अपने आसपास के साथ गांव को आमंत्रित किया था. जिसमें स्नेह भोज में घी की नदियां बहती थी. इतना उपयोग में लिया गया कि गांव के मुख्य द्वार तक जी की नाली गई थी.

ruckus over nathi ka bada comment
बाड़े में स्थित कुआं...

कहावत अपमान की नहीं, बल्कि उनकी दरियादिली की थी...

'नाती का बाड़ा' जैसी कहावत को लोगों ने गलत उपमा दे दी, लेकिन नाथी मां का जीवन जरूरतमंदों की मदद व समाज सेवा से जुड़ा हुआ था. घर से नाथी मां पैसा या अनाज ले जाने व वापस जमा कराने वालों पर ना तो हाथ लगाती थीं, ना ही गिनने का ध्यान देती थीं. सब कुछ जरूरतमंदों की ईमानदारी पर ही हिसाब लिखा था. इसी कारण यह कहावत प्रचलित हुई कि यह क्या नाथी का बाड़ा है या इसे क्या नाथी का बाड़ा समझ रखा है. यह नाथी मां के जीवन चरित्र को चरितार्थ करती थी. नाथी मां के निधन को 100 साल से अधिक का समय हो गया है. उनकी समाधि आज भी स्थित है. साथ ही उनके पढ़े पोते उनके घर में आज भी रहते हैं.

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नाथी मां के पोते...

क्या था मामला...

दरअसल, डोटासरा ने कहा था कि पढ़ाई-लिखाई कराने के बजाय मंत्रियों के दरवाजे पर जाकर अपनी बेवजह की मांग रखते हैं, ऐसे शिक्षक संगठन अब बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे. जिसके बाद राजस्थान में राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई थी. वहीं, अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ एकीकृत की ओर से आक्रोश जताया गया. कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री से शिक्षा मंत्री को बर्खास्त करने की मांग की और जमकर नारेबाजी की.

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