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बांडी नदी में प्रदूषण मामले पर कृषि विशेषज्ञों की रिपोर्ट पेश...कहा- रासायनिक पानी के कारण 30 गांवों में कृषि उत्पादन प्रभावित

जिले की बांडी नदी में प्रदूषण मामले पर एनजीटी कोर्ट में कृषि विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. जिसमें उनका मानना है कि फैक्ट्रियों से निकले रासायनिक पानी के कारण नदी किनारे बसे कई गांवों में जमीनों की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है.

बांडी नदी में प्रदूषण मामले में रिपोर्ट पेश
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Published : Apr 12, 2019, 4:44 PM IST

पाली. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर राज्य सरकार की तरफ से पेश रिपोर्ट में कृषि विभाग की टीम ने साफ तौर पर माना है कि फैक्ट्रियों से निकलने वाले रसायन युक्त पानी ने बांडी नदी के किनारे पर मौजूद कई खेतों में जमीन की उर्वरा शक्ति को खत्म कर दिया है. कुओं में पानी की गुणवत्ता भी खत्म हो गई है. बांडी नदी के दोनों तरफ ढाई किलोमीटर परिधि में खराबा स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है.

सरकार के आदेश पर गठित कृषि विशेषज्ञों की टीम ने पूरे क्षेत्र का दौरा कर यह रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट के अनुसार बांडी नदी के किनारे बसने वाले 30 गांव में कृषि उत्पादन क्षमता पर काफी प्रभाव पड़ा है. हालांकि यह प्रारंभिक रिपोर्ट है. विस्तृत जानकारी तथा वास्तविक नुकसान के आकलन के लिए कम से कम 6 महीने का समय लग सकता है.

जानकारी के अनुसार एनजीटी ने गत 31 जनवरी को 11 विभागों से प्रदूषण पर वर्तमान स्थिति तथा अब तक हुए नुकसान को लेकर रिपोर्ट मांगी थी. इन विभागों की तरफ से टीम बनाकर प्रभावित क्षेत्रों में भेजी गई. कृषि विभाग ने जोधपुर के संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार को नोडल अधिकारी बनाते हुए रिपोर्ट तैयार करवाई. जिसे सरकार ने अपने जवाब में पेश किया था.

बांडी नदी में प्रदूषण मामले पर कृषि विशेषज्ञों की रिपोर्ट पेश

इस रिपोर्ट के अनुसार कपड़ा उद्योग द्वारा बांडी नदी में बहाए गए रासायनिक पानी के कारण नदी के किनारे बसे मंडिया, पुनायता, गुलाबपुरा, गिरदडा जागीर, गिरादड़ा खालसा, मूलियावास, जोबरिया, बल्दों की ढाणी, केरला, चाटेलाव, गड़वाड़ा, जेतपुर, भजनपुरा, धोलेरिया जागीर, मुरलिया, दिवानदि, खुटानी, राजपुरा, छापरिया समेत कई गांव में खेतों की जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो गई है. वहीं पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है.

आपको बता दें कि कृषि विशेषज्ञों की टीम में सुमेरपुर कृषि कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एचपी बैरवा, सहायक प्रोफेसर डॉ. पी सी मीणा, कृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. मनोज अग्रवाल तथा कृषि अनुसंधान केंद्र के प्रभारी सुनील कुमार देवड़ा को शामिल किया था।. कमेटी की मॉनिटरिंग के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक तथा मुख्य अधिकारी को तैनात किया गया था.

पाली. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर राज्य सरकार की तरफ से पेश रिपोर्ट में कृषि विभाग की टीम ने साफ तौर पर माना है कि फैक्ट्रियों से निकलने वाले रसायन युक्त पानी ने बांडी नदी के किनारे पर मौजूद कई खेतों में जमीन की उर्वरा शक्ति को खत्म कर दिया है. कुओं में पानी की गुणवत्ता भी खत्म हो गई है. बांडी नदी के दोनों तरफ ढाई किलोमीटर परिधि में खराबा स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है.

सरकार के आदेश पर गठित कृषि विशेषज्ञों की टीम ने पूरे क्षेत्र का दौरा कर यह रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट के अनुसार बांडी नदी के किनारे बसने वाले 30 गांव में कृषि उत्पादन क्षमता पर काफी प्रभाव पड़ा है. हालांकि यह प्रारंभिक रिपोर्ट है. विस्तृत जानकारी तथा वास्तविक नुकसान के आकलन के लिए कम से कम 6 महीने का समय लग सकता है.

जानकारी के अनुसार एनजीटी ने गत 31 जनवरी को 11 विभागों से प्रदूषण पर वर्तमान स्थिति तथा अब तक हुए नुकसान को लेकर रिपोर्ट मांगी थी. इन विभागों की तरफ से टीम बनाकर प्रभावित क्षेत्रों में भेजी गई. कृषि विभाग ने जोधपुर के संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार को नोडल अधिकारी बनाते हुए रिपोर्ट तैयार करवाई. जिसे सरकार ने अपने जवाब में पेश किया था.

बांडी नदी में प्रदूषण मामले पर कृषि विशेषज्ञों की रिपोर्ट पेश

इस रिपोर्ट के अनुसार कपड़ा उद्योग द्वारा बांडी नदी में बहाए गए रासायनिक पानी के कारण नदी के किनारे बसे मंडिया, पुनायता, गुलाबपुरा, गिरदडा जागीर, गिरादड़ा खालसा, मूलियावास, जोबरिया, बल्दों की ढाणी, केरला, चाटेलाव, गड़वाड़ा, जेतपुर, भजनपुरा, धोलेरिया जागीर, मुरलिया, दिवानदि, खुटानी, राजपुरा, छापरिया समेत कई गांव में खेतों की जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो गई है. वहीं पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है.

आपको बता दें कि कृषि विशेषज्ञों की टीम में सुमेरपुर कृषि कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एचपी बैरवा, सहायक प्रोफेसर डॉ. पी सी मीणा, कृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. मनोज अग्रवाल तथा कृषि अनुसंधान केंद्र के प्रभारी सुनील कुमार देवड़ा को शामिल किया था।. कमेटी की मॉनिटरिंग के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक तथा मुख्य अधिकारी को तैनात किया गया था.

Intro:पाली. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट में कृषि विभाग की टीम ने साफ तौर पर माना है कि फैक्ट्रियों से निकलने वाले रसायन युक्त पानी ने पाली के खेतों की उर्वरा शक्ति को खत्म कर दिया है। कुआं में पानी की गुणवत्ता खत्म हो गई है। जबकि मिट्टी की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ा है। बांडी नदी के दोनों तरफ ढाई किलोमीटर परिधि में खराबा स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। यह ज्यादा भी हो सकता है। सरकार के आदेश पर घटित कृषि विशेषज्ञों की टीम ने पूरे क्षेत्र का दौरा कर यह रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के अनुसार बांडी नदी के किनारे बसने वाले 30 गांव में कृषि उत्पादन क्षमता पर काफी प्रभाव पड़ा है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है यह प्रारंभिक रिपोर्ट है विस्तृत जानकारी तथा वास्तविक नुकसान के आकलन के लिए कम से कम 6 महीने का समय लग सकता है। एनजीटी में प्रदूषण मामले की सुनवाई शुक्रवार को दिल्ली में हो रही है। किसानों की तरफ से इस रिपोर्ट पर चर्चा करने का आग्रह किया जाएगा।


Body: जानकारी के अनुसार एनजीटी ने गत 31 जनवरी को 11 विभागों से प्रदूषण पर वर्तमान स्थिति तथा अब तक हुए नुकसान को लेकर रिपोर्ट मांगी थी। इन विभागों की तरफ से टीम बनाकर प्रभावित क्षेत्रों में भेजी गई। कृषि विभाग ने जोधपुर के संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार को नोडल अधिकारी बनाते हुए रिपोर्ट तैयार करवाई। जिसे सरकार ने अपने जवाब में पेश की थी। इसमें सुमेरपुर कृषि कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एचपी बैरवा, इसी कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. पी सी मीणा, कृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. मनोज अग्रवाल तथा कृषि अनुसंधान केंद्र के प्रभारी सुनील कुमार देवड़ा को शामिल किया था। इस कमेटी की मॉनिटरिंग के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक तथा मुख्य अधिकारी को तैनात किया गया था।


Conclusion: इस रिपोर्ट के अनुसार बांडी नदी का नदी के किनारे बसे मंडिया, पुनायता, गुलाबपुरा, गिरदडा जागीर, गिरादड़ा खालसा, मूलियावास, जोबरिया, बल्दों की ढाणी, केरला, चाटेलाव, गड़वाड़ा, जेतपुर, भजनपुरा, धोलेरिया जागीर, मुरलिया, दिवानदि, खुटानी, राजपुरा, छापरिया समेत अन्य गांव में खेतों की जमीन तथा अधिकांश स्कूलों में पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए इस को सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है।
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