पाली. संस्कृति और शिक्षा के लिए इतिहासकार डॉक्टर अर्जुन सिंह शेखावत को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जाएगा. उन्हें यह सम्मान राजस्थानी मायड़ भाषा को पहचान दिलाने और इसी भाषा में अपनी रचनाओं को लिखने के लिए दिया जा रहा है. ईटीवी भारत ने डॉक्टर शेखावत से इस मुद्दे पर खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए अभी लंबा संघर्ष होने की बात कही है.
डॉ. अर्जुन सिंह शेखावत ने कहा जिस राजस्थानी भाषा के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जा रहा है उसको आगे ले जाने के लिए अभी लंबा संघर्ष करना है. उन्होंने कहा कि उनके 7 साल के संघर्ष को अभी सरकार पहचान नहीं पाई है. अभी हमारी मायड़ सुनी है और उनके सपूतों को सम्मान दिया जा रहा है, यह समान तब पूरी तरह से फलीभूत होगा, जब राजस्थानी भाषा को भारतीय संविधान के 8वें अनुच्छेद में शामिल कर दिया जाएगा. यह सम्मान तब चरितार्थ होगा, जब राजस्थान में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा को भी शामिल कर उसे सम्मान दिया जाएगा.
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डॉक्टर शेखावत ने बताया कि उन्होंने मायड़ भाषा के संघर्ष की शुरुआत पाली जिले के आदिवासी क्षेत्र से की थी. उन्होंने पाली जिले के बाली क्षेत्र में फैले गोरिया भीमाना क्षेत्र में बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दी थी. क्षेत्र ऐसा था जहां 5 बजे के बाद लोग निकल नहीं सकते थे. उनकी भाषा को समझना किसी के लिए संभव नहीं था. वहां से उन्होंने बतौर इतिहासकार के रूप में अपनी शुरुआत की और अपनी रचनाएं लिखना शुरू की, उसके बाद उन्होंने राजस्थानी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष शुरू किया.
उन्होंने बताया कि वो राजस्थानी भाषा में करीब 50 से ज्यादा रचनाएं लिखी हैं. कई रचनाओं के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुका है. उन्होंने कहा कि राजस्थान में हर कोस पर बोली बदल रही है, लेकिन वह सब बोली है और राजस्थानी भाषा एक है. राजस्थानी भाषा को सम्मान दिलाना ही उनका प्राथमिक लक्ष्य है. उन्होंने यह भी कहा कि यह सम्मान लेते समय वह राष्ट्रपति से भी मायड़ भाषा को संविधान की 8वीं सूची में शामिल करने की मांग करेंगे.