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20 साल कारगिल: गोलियों से छलनी सीना लिए दुश्मनों को खदेड़ रहे थे शहीद भंवर सिंह - जयपुर

भंवर सिंह एक-एक कर दुश्मनों को अपनी गोलियों से निशाना बना रहे थे. इसी बीच दुश्मन की एक गोली उनके सीने में आकर लगी. वो आगे बढ़ते रहे सीना गोलियों से छलनी हो गया था. उनके इस शौर्य को देख दुश्मन भाग खड़े हुए.

20 साल कारगिल: गोलियों से छलनी सीना लिए दुश्मनों को खदेड़ रहे थे शहीद भंवर सिंह
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Published : Jul 24, 2019, 6:10 PM IST

Updated : Jul 24, 2019, 9:05 PM IST

पाली. 26 जुलाई 1999 की तारीख भारत के इतिहास से कभी मिटाई नहीं जा सकेगी. यह वो दिन था जब मातृभूमि के लिए इस मिट्टी के सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. इन सपूतों का जब भी नाम लिया जाता हैं, तब भारत के हर बाशिंन्दे में देशभक्ति का जुनून भर जाता है. कारगिल युद्ध के समय मातृभूमि के लिए सीने पर गोली खाने वाले वीर सपूतों में पाली का भी एक लाल था जिसे याद कर सीना फर्क से ऊंचा हो जाता है. जिसने कारगिल में दुश्मनों को खदेड़ते समय सामने से आ रही गोलियों को सीने में लेता रहा. छलनी सीने के साथ आखिरी दम तक दुश्मनों से समाना करते रहे.

20 साल कारगिल: गोलियों से छलनी सीना लिए दुश्मनों को खदेड़ रहे थे शहीद भंवर सिंह

पाली जिला मुख्यालय से 60 कि.मी दूर सोजत विधानसभा का भैसाण गांव. इस गांव के निवासी शहीद भंवरसिंह जैतावत कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे. उस समय शहीद जैतावत लाइट रेजिमेंट तोप खाने में कार्यरत थे. 20 जून को उनका पार्थिव देह राजकीय सम्मान के साथ उनके गांव लाया गया था. उस समय इस सपूत की एक झलक पाने के लिए पूरा पाली जोधपुर से लेकर भेसाना गांव की सड़कों पर पलक पावड़े बिछाए इंतजार कर रहा था.

उनके पुत्र भवानी सिंह जैतावत ने बताया कि उनके पिता शहीद हुए जब उनकी उम्र 21 साल थी. वह जवानी की दहलीज पर पहुंचे ही थे. और सिर से पिता का साया उठ गया, लेकिन उन्हें अपने पिता पर गर्व था. वह बताते हैं कि आज भी उनके पिता की रेजिमेंट और उनके साथी उनके परिवार के सलामती के बारे में पूछते रहते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उनका पूरा परिवार ही देश सेवा को न्योछावर हैं. उनके दादा भी भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं, और उनके परिवार के कई सदस्य आज भी देश की सीमा पर तैनात हैं.

शहीद भंवर सिंह जैतावत का जन्म 25 दिसंबर 1950 को भैसाना गांव में हुआ था. उन्होंने भारतीय फौज 27 अगस्त 1971 को आर्टिलरी आर्मी इलाहाबाद में ज्वाइन की थी. जैतावत 10वीं पास थे. उन्होंने सेना में सेवा देते हुए 12 जनवरी 1979 को ऑपरेशन अवरोध, 12 अप्रैल 1986 को ऑपरेशन ट्रिडेंट, 22 अगस्त 1991 को ऑपरेशन रक्षस में दुश्मनों से लोहा लिया था. भंवर सिंह जैतावत के शहीद होने के बाद उनके सम्मान में भैसाना गांव में उनके नाम पर स्कूल बनाया गया था. वही गांव के मुख्य चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगाकर सर्कल बनाया गया है. उनके शहीद दिवस पर उनके पैतृक गांव में आज भी कई कार्यक्रमों का आयोजन होता है,और उनकी वीरता की मिसाल है आने वाली भावी पीढ़ी और युवाओं को दी जाती है.

पाली. 26 जुलाई 1999 की तारीख भारत के इतिहास से कभी मिटाई नहीं जा सकेगी. यह वो दिन था जब मातृभूमि के लिए इस मिट्टी के सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. इन सपूतों का जब भी नाम लिया जाता हैं, तब भारत के हर बाशिंन्दे में देशभक्ति का जुनून भर जाता है. कारगिल युद्ध के समय मातृभूमि के लिए सीने पर गोली खाने वाले वीर सपूतों में पाली का भी एक लाल था जिसे याद कर सीना फर्क से ऊंचा हो जाता है. जिसने कारगिल में दुश्मनों को खदेड़ते समय सामने से आ रही गोलियों को सीने में लेता रहा. छलनी सीने के साथ आखिरी दम तक दुश्मनों से समाना करते रहे.

20 साल कारगिल: गोलियों से छलनी सीना लिए दुश्मनों को खदेड़ रहे थे शहीद भंवर सिंह

पाली जिला मुख्यालय से 60 कि.मी दूर सोजत विधानसभा का भैसाण गांव. इस गांव के निवासी शहीद भंवरसिंह जैतावत कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे. उस समय शहीद जैतावत लाइट रेजिमेंट तोप खाने में कार्यरत थे. 20 जून को उनका पार्थिव देह राजकीय सम्मान के साथ उनके गांव लाया गया था. उस समय इस सपूत की एक झलक पाने के लिए पूरा पाली जोधपुर से लेकर भेसाना गांव की सड़कों पर पलक पावड़े बिछाए इंतजार कर रहा था.

उनके पुत्र भवानी सिंह जैतावत ने बताया कि उनके पिता शहीद हुए जब उनकी उम्र 21 साल थी. वह जवानी की दहलीज पर पहुंचे ही थे. और सिर से पिता का साया उठ गया, लेकिन उन्हें अपने पिता पर गर्व था. वह बताते हैं कि आज भी उनके पिता की रेजिमेंट और उनके साथी उनके परिवार के सलामती के बारे में पूछते रहते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उनका पूरा परिवार ही देश सेवा को न्योछावर हैं. उनके दादा भी भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं, और उनके परिवार के कई सदस्य आज भी देश की सीमा पर तैनात हैं.

शहीद भंवर सिंह जैतावत का जन्म 25 दिसंबर 1950 को भैसाना गांव में हुआ था. उन्होंने भारतीय फौज 27 अगस्त 1971 को आर्टिलरी आर्मी इलाहाबाद में ज्वाइन की थी. जैतावत 10वीं पास थे. उन्होंने सेना में सेवा देते हुए 12 जनवरी 1979 को ऑपरेशन अवरोध, 12 अप्रैल 1986 को ऑपरेशन ट्रिडेंट, 22 अगस्त 1991 को ऑपरेशन रक्षस में दुश्मनों से लोहा लिया था. भंवर सिंह जैतावत के शहीद होने के बाद उनके सम्मान में भैसाना गांव में उनके नाम पर स्कूल बनाया गया था. वही गांव के मुख्य चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगाकर सर्कल बनाया गया है. उनके शहीद दिवस पर उनके पैतृक गांव में आज भी कई कार्यक्रमों का आयोजन होता है,और उनकी वीरता की मिसाल है आने वाली भावी पीढ़ी और युवाओं को दी जाती है.

Intro:पाली. 26 जुलाई भारत के इतिहास से कभी मिटाई नही जा सकेगी। यह वो दिन जब मातृभूमि के लिए इस मिट्टी के सपूतों के अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन सपूतों का जब भी नाम लिया जाता हैं। तब भारत के हर बाशिन्दे में देशभक्ति का जुनून भर जाता हूं। कारगिल युद्ध के समय मातृभूमि के लिए साइन पर गोली खाने वाले वीर सपूतों में पाली का भी एक लाल था। जिसने कारगिल में दुश्मनों को खदेड़ते समय उनकी गोलियों का साइन पर सामना किया। जब इस सपूत के शहीद होने की सूचना पाली को मिली तो हर पाली वासी का सीना गर्व से छोड़ा हो गया। हर युवा के मन मे देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा हो गया। इस शहीद के साथियों में भी यहीं चर्चा थी कि में इसकी जगह मातृभूमि के काम क्यों नही आया।


Body:पाली जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर सोजत विधानसभा का भैसाण गांव। इस गांव के निवासी शहीद भंवरसिंह जैतावत कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। उस समय शहीद जैतावत लाइट रेजिमेंट तोपखाने में कार्यरत थे। 20 जून को उनका पार्थिव देह राजकीय सम्मान के साथ उनके गांव लाया गया था। उस समय इस सपूत की एक झलक पाने के लिए पूरा पाली जोधपुर से लेकर भेसाना गांव की सड़कों पर पलक पावड़े बिछाए इंतजार कर रहा था। उनके पुत्र भवानीसिंह जैतावत ने बताया कि उनके पिता शहीद हुए जब उनकी उम्र 21 साल थी। वह जवानी की दहलीज पर पहुंचे ही थे। और सिर से पिता का साया उठ जाने से दुखी तो थे। लेकिन उन्हें अपने पिता पर गर्व था। वह बताते हैं कि आज भी उनके पिता की रेजिमेंट ओर उनके साथी उनके परिवार के सलामती के बारे में पूछते रहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उनका पूरा परिवार ही देश सेवा को न्योछावर हैं। उनके दादा भी भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। और उनके परिवार के की सदस्य आज भी देश की सीमा पर तैनात हैं


Conclusion: शहीद भंवर सिंह जैतावत का जन्म 25 दिसंबर 1950 को भैसाना गांव में हुआ था। उन्होंने भारतीय फौज 27 अगस्त 1971 को आर्टिलरी आर्मी इलाहाबाद में ज्वाइन की थी। जैतावत 10वीं पास थे। उन्होंने सेना में सेवा देते हुए 12 जनवरी 1979 को ऑपरेशन अवरोध, 12 अप्रैल 1986 को ऑपरेशन ट्रिडेंट, 22 अगस्त 1991 को ऑपरेशन रक्षस में दुश्मनों से लोहा लिया था। भंवर सिंह जैतावत के शहीद होने के बाद उनके सम्मान में भैसाना गांव में उनके नाम पर स्कूले बनाई गई थी। वही गांव के मुख्य चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगाकर सर्कल बनाया गया है। और आज भी उनके शहीद होने के दिवस पर उनके पैतृक गांव में कई कार्यक्रमों का आयोजन होता है। और उनकी वीरता की मिसाल है आने वाली भावी पीढ़ी और युवाओं को दी जाती है।
Last Updated : Jul 24, 2019, 9:05 PM IST
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