नागौर. वीर चक्र विजेता नायब रिसालदार नूर मोहम्मद का आज इंतकाल हो गया. 1971 की जंग में घायल होने के बाद भी उन्होंने दुश्मनों से जमकर मुकाबला किया था. डेढ़ साल तक नूर मोहम्मद पाकिस्तान की जेल में बंदी भी रहे. 1971 भारत-पाक युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेना के अदम्य साहस और युद्ध पराक्रम से देश को ऐतिहासिक विजय मिली. इस युद्ध में साहस का प्रदर्शन कर पूरे देश को गौरवान्वित करने वाले वीर चक्र से सम्मानित नायब रिसालदार नूर मोहम्मद का शनिवार को 90 साल की आयु में इंतकाल हो गया.
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नागौर जिले की रियां बड़ी उपखण्ड के संथाना गांव में पूरे राजकीय सम्मान के साथ गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए सुपुर्दे खाक किया गया. राज्य सरकार की ओर से पुलिस जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया. रियांबडी उपखण्ड अधिकारी सुरेश कुमार सहित तहसील प्रशासन के अधिकारियों ने पुष्पचक्र अर्पित किए. पूर्व नायब रिसालदार नूर मोहम्मद 1971 के युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेना की 16 केवल रेजिमेंट के एक-एक दल में ट्रूप लीडर थे. 3 दिसंबर 1971 की रात को उन्हें अपने उच्च अधिकारियों से दल के साथ पश्चिमी क्षेत्र में युद्ध के लिए जाने का आदेश मिला. वहां पहुंचे तो देखा कि उनके सेना कमांडर का टैंक विस्फोट में फट गया.
दुश्मन के सैनिक उस टैंक पर गोलियां बरसा रहे थे. उन्होंने अपने टैंक को घायल कमांडर को दे, उस क्षतिग्रस्त टैंक पर खुद बैठ कर दुश्मनों की गोलियां का जवाब भारी गोलीबारी से दिया था. इस दौरान गोलियां खत्म होने से दुश्मनों ने उन्हे बंदी बना लिया. युद्ध में घायल नूर मोहम्मद को पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़कर लॉयलपुर जेल में भेज दिया था. जहां उन्हें तरह-तरह की यातना दी गई. इस दौरान इस जेल में उन्हें 1000 अन्य भारतीय सैनिकों के साथ रखा गया था. आखिर डेढ़ साल बाद उन्हें देश के युद्ध बंदियों को आजाद करने के समझौते के तहत आजादी मिली. 1971 के भारत-पाक युद्ध में नूर मोहम्मद के अदम्य साहस व युद्ध परक्रम के लिए उन्हें 20 मई 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने अपने हाथों से वीर चक्र से सम्मानित किया था.
1971 के भारत-पाक युद्ध में नूर मोहम्मद के सगे भाई व भारतीय सशस्त्र सेना की 18 केवलरी चलते रेजिमेंट में दफेदार पद पर तैनात इनायत अली खां शहीद हो गए थे. उनकी वीरांगना बानू को वीर चक्र, कीर्ति चक्र सहित कई अन्य सैन्य सम्मान दिए गए.