नागौर. राजस्थान में होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका इंतजार हर कोई कर करता है. कुछ जगह भगवान के साथ होली खेली जाती है तो कहीं वर्षों पुरानी परंपरा आज भी दस्तूर जारी है. ऐसी ही एक परंपरा नागौर शहर में भी जीवित है, जहां बीते 500 सालों से पुष्करणा समाज के लोग अपनी परंपरानुसार रीति रिवाज से होली खेलते आ रहे हैं. शहर के लोढ़ा का चौक में बीते 500 सालों से पुष्करणा समाज के लोग परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं.
दरअसल, आज से 500 साल पहले गुलाल की जगह पुष्करणा समाज की धूल गैर शुरू हुई थी. हालांकि धूल गैर आज भी जीवित है. पुष्करणा समाज के बुजुर्गों बताते हैं कि 500 साल पहले राजा अमरसिंह राठौड़ जब नागौर आए थे, तब वो अपने साथ पुष्करणा समाज के कुछ परिवारों को यहां लेकर आए थे. इस परिवार के सदस्य राजघराने में नौकरी करते थे. कुछ राजकाज के काम देखते थे तो कुछ सेना में शामिल थे. उसी समय से यहां समाज के लोग बसने लगे और राजा अमर सिंह राठौड़ ने ही पुष्करणा समाज के लोगों को होली का पर्व मनाने का आदेश दिया था.
दो बार निकाला जाता है फक्कड़ - आपको बता दें कि नागौर में होली से पहले पुष्करणा समाज की ओर से दो बार फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पहली गैर शिवरात्रि की रात को पुष्करणा समाज की ओर से निकाली जाती है. इसके बाद रंगभरी एकादशी पर पुष्करणा समाज और श्रीमाली समाज की ओर से अलग-अलग फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पुष्करणा समाज की गैर जहां लोढ़ो के चौक से शुरू होकर शहर के प्रमुख स्थानों तक जाती है. दोनों ही गैर में भगवान शिव के प्रतीक के रूप में एक व्यक्ति को फक्कड़ का रूप धराया जाता है, जो चंग, ढोलक और मंजीरे की धुन पर मदमस्त होकर नाचता है. न केवल युवा, बल्कि बुजुर्ग भी इस धुन पर थिरकते दिखाई देते हैं.
इसे भी पढ़ें - Holi with Organic Gulal: अबकी केमिकल फ्री गोबर के गुलाल से होली खेलने की तैयारी, बनाने की प्रक्रिया जान दंग रह जाएंगे आप
36 कोम के लोग देखने आते हैं गैर - राजकुमार व्यास का कहना है कि समाज की इस गैर और फक्कड़ को देखने के लिए 36 कोम के लोग आते हैं. जो यहां ठहरकर गालियां सुनते हैं. हालांकि, यह गालियां नहीं, बल्कि प्रेम रस होता है. होली पर निकलने वाला फक्कड़ और गायन पुष्करणा समाज का प्रेम रस है और यह पूरे देश दुनिया में फैला है. कई लोग तो इसमें शामिल होने के लिए बाहर से आते हैं.
1991 में कर्फ्यू में निकाला था झगड़ा - इस होली को झगड़ा भी कहते हैं. जिसमें एक-दूसरे को गालियां दी जाती हैं. लेकिन गालियों में प्रेम रस होता है और इसमें सभी समाज के लोग शामिल होते हैं. समाज के लोगों ने बताया कि साल 1991 में नागौर में कर्फ्यू लगा था. बावजूद इसके उस दौरान भी लोगों ने बिना कर्फ्यू की परवाह किए झगड़े का आयोजन किया था. हालांकि तब समाज के लोगों ने प्रशासन को आयोजन के दौरान शांति बनाए रखने का आश्वसन दिया था.
आखिर क्या है होली पर झगड़ा - आपको बता दें कि पुष्करणा समाज होली की शाम को हीरावाड़ी से लेकर लोढ़ा चौक तक यह झगड़ा निकालता है. जिसमें समाज के युवा और बुजुर्ग के साथ-साथ दूसरे समाज के लोग भी हिस्सा लेते हैं. यह झगड़ा करीब दो घंटे तक चलता है. इस झगड़े में समाज के लोग एक-दूसरे को गालियां देते हैं. लेकिन ये गाली न होकर प्रेम रस होता है. युवा अंकित मुथा का कहना है कि पूरे विश्व में जितना जोश नागौर के युवाओं में होली को लेकर देखने को मिलता है, उतना शायद ही कहीं और देखने को मिलता हो. उन्होंने बताया कि इस होली में बुजुर्गों से ज्यादा युवा हिस्सा लेते हैं. यहा गाली गायन की पुरानी परंपरा है और यहां सब साथ बैठकर गाली गाते हैं.