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कारगिल विजय दिवस: नागौर के वीर सपूत ने तोलोलिंग हाइट्स पर की थी चढ़ाई, सीने पर गोली खाने के बाद भी दुश्मनों के छुड़ा दिए थे छक्के - करगिल युद्ध को 21 साल पूरे

कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर करीब 60 दिन तक चले युद्ध में दुश्मनों ने भारतीय जवानों के जज्बे और साहस के आगे घुटने टेक दिए थे. ऐसे अनेकों वीर सपूतों की बदौलत कारगिल में विजय मिली थी, उन्हीं वीर योद्धाओं में नागौर का भी एक बेटा शामिल था, जिसने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे.

राजस्थान न्यूज, Kargil war special story
कर्नल मुकेश कुमार की मुंहजुबानी सुनिए कारगिल विजय युद्ध की गाथा
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Published : Jul 24, 2020, 11:27 AM IST

Updated : Jul 24, 2020, 5:04 PM IST

नागौर. करगिल युद्ध को 21 साल पूरे हो चुके हैं. पाकिस्तान के साथ हुई जंग में भारतीय जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा की. जवानों के शौर्य के आगे दुश्मन की एक न चली और उसे भारतीय सरजमीं से उल्टे पैर भागना पड़ा. कारगिल युद्ध में अपने अदम्य शौर्य का परिचय देने वाले ऐसे ही वीर सपूत थे नायक प्रभुराम चोटिया. पढ़िए उनकी शौर्य की गाथा कहता ये विशेष रिपोर्ट..

प्रभुराम चोटिया की कारगिल में बहादूरी की कहानी

देश सेवा और मातृभूमि की रक्षा के लिए नागौर के वीर जवानों ने अपने प्राणों तक की आहुति देने से कदम पीछे नहीं हटाए हैं. भारत माता के ऐसे ही बहादुर बेटे थे नायक प्रभुराम चोटिया. जिन्होंने करगिल युद्ध में दुश्मन की गोलाबारी की परवाह किए बिना तोलोलिंग की पहाड़ियों पर खड़ी चढ़ाई चढ़ी और सीने के दाहिने तरफ और पैर में गोली लगने के बावजूद आगे बढ़ते रहे. उन्होंने अपने हथगोले को दुश्मन के बंकर में फेंककर उसका बड़ा नुकसान किया और आगे बढ़कर दुश्मन के तीन-चार जवानों को मुठभेड़ में मार गिराया. इसी दौरान सीने पर गोली लगने के बाद अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. नायक प्रभुराम चोटिया और उनके साथियों के अदम्य साहस, वीरता और बलिदान का ही नतीजा है कि तोलोलिंग की पहाड़ियों पर एक बार फिर से तिरंगा लहराया.

यह भी पढ़ें. कारगिल युद्ध का इतिहास, भारतीय जवानों ने इस तरह लिखी थी जीत की गाथा

जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल मुकेश कुमार शर्मा बताते हैं कि नागौर जिले के इंदास गांव के प्रभुराम चोटिया 18 ग्रेनेडियर्स में नायक के पद पर तैनात थे. करगिल युद्ध के समय उनकी डेल्टा कंपनी को मेजर राजेश सिंह अधिकारी के नेतृत्व में तोतोलिंग की पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली थी.

कर्नल मुकेश कुमार की मुंहजुबानी सुनिए कारगिल विजय युद्ध की गाथा

13 जून 1999 को रात करीब 10 बजे इस मेजर अधिकारी के नेतृत्व में डेल्टा कंपनी के बहादुर जवानों ने सीधी खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ाई शुरू की. इसमें सबसे बड़ा खतरा था कि वे ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के ठीक सामने से चढ़ रहे थे और नजर पड़ते ही उन पर गोलाबारी होना तय था लेकिन उस समय दूसरा कोई रास्ता नहीं था. जैसे ही दुश्मन की नजर पहाड़ी पर चढ़ते भारतीय सेना के जवानों पर पड़ी. ऊपर से भारी गोलाबारी और गोलीबारी शुरू कर दी गई.

मात्र 31 साल में वीरगति को प्राप्त हुए नायक प्रभुराम

फिर भी देश के वीर जवानों के कदम डगमगाए नहीं. वे गोलाबारी से बचते हुए आगे बढ़ते रहे. नायक प्रभुराम चोटिया मेजर राजेश सिंह अधिकारी के बिल्कुल पीछे सावधानी से आगे बढ़ते हुए दुश्मन के बंकर के काफी नजदीक पहुंच चुके थे. तभी अचानक दुश्मन की एक गोली उनके पैर में और दूसरी सीने के साइड में लगी. ये दोनों गोलियां भी नायक प्रभुराम चोटिया का हौसला नहीं तोड़ पाई. वे आगे बढ़े और एक हैंड ग्रेनेड दुश्मन के बंकर में उछाल दिया. एक तेज धमाके की आवाज के साथ दुश्मन के कई जवान मौत के घाट उतर गए.

Kargil war, कारगिल में शहीद नायक प्रभुराम चोटिया
वीरंगना रूकी देवी और शहीद की छोटी बेटी

इसके बाद प्रभुराम चोटिया ने आगे बढ़कर हाथापाई की और इस बार भी कई दुश्मनों का खात्मा किया लेकिन इसी बीच एक गोली उनके सीने में आकर लगी. जिसके बाद नायक प्रभुराम ने महज 31 साल की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दिया.

यह भी पढ़ें. कारगिल विशेषः झुंझुनू का गौरवशाली इतिहास, अभी तक 450 से ज्यादा वीर दे चुके हैं शहादत

जब प्रभुराम चोटिया देश के लिए शहीद हुए उनकी सबसे छोटी बेटी निरमा महज दो साल की थी. बेटा दयाल चार साल का और बड़ी बेटी छह साल की थी. वीरांगना रूकी देवी ने हिम्मत का परिचय देते हुए अपने बच्चों का लालन-पालन किया. उनकी बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है. बेटा दयाल आईएएस की तैयारी कर रहा है. छोटी बेटी निरमा भी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर चुकी है और अपनी माता के साथ इंदास में ही रहती है.

पिता के साथ रहने का सुख तो नहीं पर गर्व से उठता है सिर: शहीद की बेटी

अपने पिता की शहादत को लेकर निरमा रुंधे गले से कहती हैं कि 'जब पिता नायक प्रभुराम चोटिया देश के लिए कुर्बान हुए, तब मुझे शहीद होने का मतलब भी पता नहीं था. अब फख्र महसूस होता है कि पिताजी ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर किए. उन्होंने इतने विकट हालात में भी अपने कदम पीछे नहीं हटाए.

राजस्थान न्यूज, Kargil war special story
कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे

निरमा कहती है कि कभी पिताजी के साथ रहने का सुख नसीब नहीं हुआ लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से सुनकर आज भी सिर गर्व से उठ जाता है. माना कि वह उनके साथ नहीं हैं लेकिन उनका त्याग और बलिदान हमेशा आशीर्वाद के रूप में अपने साथ वे महसूस करती हैं. देश के लिए मर मिटने का मौका कम लोगों को ही मिल पाता है. मुझे गर्व है कि मेरे पिता ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया.

गर्व की बात की वो देश के काम आए: वीरांगना

वहीं वीरांगना रूकी देवी कहती हैं कि उनके जाने के बाद बच्चों का पालन-पोषण बड़ी जिम्मेदारी थी लेकिन परिजनों ने हिम्मत बंधाई तो सब ठीक होता चला गया. आदमी के जाने का दुख तो है और हमेशा रहेगा लेकिन गर्व इस बात का है कि वे देश के काम आए. बहुत कम ही लोगों के नसीब में आता है कि वह देश के लिए अपना बलिदान दे. मेरे पति देश पर न्योछावर हुए हैं. इसमें मेरे लिए दुख से ज्यादा गौरव की बात है. आज जब पूरा देश करगिल विजय दिवस के मौके पर शहीदों को याद कर रहा है तो मन में संतोष होता है कि मेरे पति के बलिदान की बदौलत देशवासी आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं.

इंदास में बच्चों से लेकर युवाओं के प्रेरेणा हैं शहीद प्रभुराम चोटिया

इंदास गांव के मुख्य चौराहे पर एक पार्क के रूप में शहीद प्रभुराम चोटिया का स्मारक बनाया गया है. जहां उनकी खड़ी प्रतिमा लगी है. पास ही उच्च माध्यमिक स्कूल है. जिसका नाम शहीद के नाम पर किया गया है. इसमें पढ़ने आने वाले बच्चों की जुबान पर आज भी नायक प्रभुराम चोटिया की वीरता के किस्से चढ़े हैं.

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गांव में लगी नायक प्रभुराम की स्मारक

स्मारक पर लगी प्रतिमा न केवल गांव के युवाओं को बल्कि इधर से गुजरने वाले हर व्यक्ति को नायक प्रभुराम चोटिया और उन जैसे हजारों वीर सपूतों की बहादुरी की याद दिलाती है और मौका मिलने पर देश और मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा भी देती है.

नागौर. करगिल युद्ध को 21 साल पूरे हो चुके हैं. पाकिस्तान के साथ हुई जंग में भारतीय जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा की. जवानों के शौर्य के आगे दुश्मन की एक न चली और उसे भारतीय सरजमीं से उल्टे पैर भागना पड़ा. कारगिल युद्ध में अपने अदम्य शौर्य का परिचय देने वाले ऐसे ही वीर सपूत थे नायक प्रभुराम चोटिया. पढ़िए उनकी शौर्य की गाथा कहता ये विशेष रिपोर्ट..

प्रभुराम चोटिया की कारगिल में बहादूरी की कहानी

देश सेवा और मातृभूमि की रक्षा के लिए नागौर के वीर जवानों ने अपने प्राणों तक की आहुति देने से कदम पीछे नहीं हटाए हैं. भारत माता के ऐसे ही बहादुर बेटे थे नायक प्रभुराम चोटिया. जिन्होंने करगिल युद्ध में दुश्मन की गोलाबारी की परवाह किए बिना तोलोलिंग की पहाड़ियों पर खड़ी चढ़ाई चढ़ी और सीने के दाहिने तरफ और पैर में गोली लगने के बावजूद आगे बढ़ते रहे. उन्होंने अपने हथगोले को दुश्मन के बंकर में फेंककर उसका बड़ा नुकसान किया और आगे बढ़कर दुश्मन के तीन-चार जवानों को मुठभेड़ में मार गिराया. इसी दौरान सीने पर गोली लगने के बाद अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. नायक प्रभुराम चोटिया और उनके साथियों के अदम्य साहस, वीरता और बलिदान का ही नतीजा है कि तोलोलिंग की पहाड़ियों पर एक बार फिर से तिरंगा लहराया.

यह भी पढ़ें. कारगिल युद्ध का इतिहास, भारतीय जवानों ने इस तरह लिखी थी जीत की गाथा

जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल मुकेश कुमार शर्मा बताते हैं कि नागौर जिले के इंदास गांव के प्रभुराम चोटिया 18 ग्रेनेडियर्स में नायक के पद पर तैनात थे. करगिल युद्ध के समय उनकी डेल्टा कंपनी को मेजर राजेश सिंह अधिकारी के नेतृत्व में तोतोलिंग की पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली थी.

कर्नल मुकेश कुमार की मुंहजुबानी सुनिए कारगिल विजय युद्ध की गाथा

13 जून 1999 को रात करीब 10 बजे इस मेजर अधिकारी के नेतृत्व में डेल्टा कंपनी के बहादुर जवानों ने सीधी खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ाई शुरू की. इसमें सबसे बड़ा खतरा था कि वे ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के ठीक सामने से चढ़ रहे थे और नजर पड़ते ही उन पर गोलाबारी होना तय था लेकिन उस समय दूसरा कोई रास्ता नहीं था. जैसे ही दुश्मन की नजर पहाड़ी पर चढ़ते भारतीय सेना के जवानों पर पड़ी. ऊपर से भारी गोलाबारी और गोलीबारी शुरू कर दी गई.

मात्र 31 साल में वीरगति को प्राप्त हुए नायक प्रभुराम

फिर भी देश के वीर जवानों के कदम डगमगाए नहीं. वे गोलाबारी से बचते हुए आगे बढ़ते रहे. नायक प्रभुराम चोटिया मेजर राजेश सिंह अधिकारी के बिल्कुल पीछे सावधानी से आगे बढ़ते हुए दुश्मन के बंकर के काफी नजदीक पहुंच चुके थे. तभी अचानक दुश्मन की एक गोली उनके पैर में और दूसरी सीने के साइड में लगी. ये दोनों गोलियां भी नायक प्रभुराम चोटिया का हौसला नहीं तोड़ पाई. वे आगे बढ़े और एक हैंड ग्रेनेड दुश्मन के बंकर में उछाल दिया. एक तेज धमाके की आवाज के साथ दुश्मन के कई जवान मौत के घाट उतर गए.

Kargil war, कारगिल में शहीद नायक प्रभुराम चोटिया
वीरंगना रूकी देवी और शहीद की छोटी बेटी

इसके बाद प्रभुराम चोटिया ने आगे बढ़कर हाथापाई की और इस बार भी कई दुश्मनों का खात्मा किया लेकिन इसी बीच एक गोली उनके सीने में आकर लगी. जिसके बाद नायक प्रभुराम ने महज 31 साल की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दिया.

यह भी पढ़ें. कारगिल विशेषः झुंझुनू का गौरवशाली इतिहास, अभी तक 450 से ज्यादा वीर दे चुके हैं शहादत

जब प्रभुराम चोटिया देश के लिए शहीद हुए उनकी सबसे छोटी बेटी निरमा महज दो साल की थी. बेटा दयाल चार साल का और बड़ी बेटी छह साल की थी. वीरांगना रूकी देवी ने हिम्मत का परिचय देते हुए अपने बच्चों का लालन-पालन किया. उनकी बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है. बेटा दयाल आईएएस की तैयारी कर रहा है. छोटी बेटी निरमा भी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर चुकी है और अपनी माता के साथ इंदास में ही रहती है.

पिता के साथ रहने का सुख तो नहीं पर गर्व से उठता है सिर: शहीद की बेटी

अपने पिता की शहादत को लेकर निरमा रुंधे गले से कहती हैं कि 'जब पिता नायक प्रभुराम चोटिया देश के लिए कुर्बान हुए, तब मुझे शहीद होने का मतलब भी पता नहीं था. अब फख्र महसूस होता है कि पिताजी ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर किए. उन्होंने इतने विकट हालात में भी अपने कदम पीछे नहीं हटाए.

राजस्थान न्यूज, Kargil war special story
कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे

निरमा कहती है कि कभी पिताजी के साथ रहने का सुख नसीब नहीं हुआ लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से सुनकर आज भी सिर गर्व से उठ जाता है. माना कि वह उनके साथ नहीं हैं लेकिन उनका त्याग और बलिदान हमेशा आशीर्वाद के रूप में अपने साथ वे महसूस करती हैं. देश के लिए मर मिटने का मौका कम लोगों को ही मिल पाता है. मुझे गर्व है कि मेरे पिता ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया.

गर्व की बात की वो देश के काम आए: वीरांगना

वहीं वीरांगना रूकी देवी कहती हैं कि उनके जाने के बाद बच्चों का पालन-पोषण बड़ी जिम्मेदारी थी लेकिन परिजनों ने हिम्मत बंधाई तो सब ठीक होता चला गया. आदमी के जाने का दुख तो है और हमेशा रहेगा लेकिन गर्व इस बात का है कि वे देश के काम आए. बहुत कम ही लोगों के नसीब में आता है कि वह देश के लिए अपना बलिदान दे. मेरे पति देश पर न्योछावर हुए हैं. इसमें मेरे लिए दुख से ज्यादा गौरव की बात है. आज जब पूरा देश करगिल विजय दिवस के मौके पर शहीदों को याद कर रहा है तो मन में संतोष होता है कि मेरे पति के बलिदान की बदौलत देशवासी आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं.

इंदास में बच्चों से लेकर युवाओं के प्रेरेणा हैं शहीद प्रभुराम चोटिया

इंदास गांव के मुख्य चौराहे पर एक पार्क के रूप में शहीद प्रभुराम चोटिया का स्मारक बनाया गया है. जहां उनकी खड़ी प्रतिमा लगी है. पास ही उच्च माध्यमिक स्कूल है. जिसका नाम शहीद के नाम पर किया गया है. इसमें पढ़ने आने वाले बच्चों की जुबान पर आज भी नायक प्रभुराम चोटिया की वीरता के किस्से चढ़े हैं.

राजस्थान न्यूज, Kargil war special story
गांव में लगी नायक प्रभुराम की स्मारक

स्मारक पर लगी प्रतिमा न केवल गांव के युवाओं को बल्कि इधर से गुजरने वाले हर व्यक्ति को नायक प्रभुराम चोटिया और उन जैसे हजारों वीर सपूतों की बहादुरी की याद दिलाती है और मौका मिलने पर देश और मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा भी देती है.

Last Updated : Jul 24, 2020, 5:04 PM IST
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