नागौर. पानी की किल्लत देश ही नहीं दुनिया की एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि दुनिया की तीसरी बड़ी लड़ाई पानी के लिए ही होगी. नागौर के बुजुर्गों को शायद इस बात का बहुत पहले इल्म हो गया था, इसीलिए सार्वजनिक तालाब बनवाना उनकी प्राथमिकता रही. यही नहीं इन तालाबों के माध्यम से पानी बचाने और बारिश के पानी को सहेजने की नागौर के कई ग्रामीण इलाकों में पुरानी परंपरा रही है.
इसी समृद्ध परंपरा का गवाह है डेह गांव का यह नौसर तालाब. यहां बारिश का पानी सालभर पीने के काम लिया जाता है. इस तालाब का पानी न केवल डेह बल्कि आसपास के 10-12 गांवों के बाशिंदों की प्यास बुझाता है. खास बात यह है कि तालाब के पानी को साफ रखने के लिए कई नियम कायदे तक बने हुए हैं. इन नियमों को तोड़ने पर गांव की तरफ से दंड का भी प्रावधान है. पश्चिमी राजस्थान के कम बारिश वाले इलाकों में शुमार नागौर जिले डेह गांव के नौसर तालाब में जून महीने में भी लबालब पानी भरा देख हर कोई आश्चर्यचकित हो सकता है, लेकिन इस सुखद तस्वीर के पीछे का एक बड़ा कारण ग्रामीणों की मेहनत और बारिश का पानी बचाने की समृद्ध परंपरा है.
250 साल पुराना है नौसर तालाब
कई हेक्टेयर इलाके में फैला यह नौसर तालाब 250 साल पुराना बताया जाता है. इस तालाब का अंगोर करीब 1200 बीघा में फैला है. अंगोर यानि वह जगह जहां गिरने वाली बारिश के पानी की हर एक बूंद तालाब में आकर इकट्ठा होती है. इस तालाब पर सुबह शाम पनघट लगता है. दिनभर टंकियों में पानी भरकर लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए ले जाते हैं. टैंकर लगाकर पानी भरने की सख्त मनाही है.
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ऊंटगाड़ी, बैलगाड़ी या ट्रैक्टर के पीछे लोहे की टंकियां रखकर इस तालाब से लोग अपने घरों तक पानी ले जाते हैं. लेकिन शर्त यह है कि इन टंकियों को भी अपने हाथ से बाल्टियां खींचकर भरना होता है. मोटर या पंप लगाकर टंकियां भरने की मनाही है. संदेश साफ है कि पानी भरने में जितनी मेहनत लगेगी, पानी का उपयोग करने में भी आदमी उतनी ही सावधानी बरतेगा.
जानवरों को नहलाने और पानी पिलाने पर पाबंदी
इस तालाब में नहाना, कपड़े धोना, जानवरों को नहलाने और पानी पिलाने पर पाबंदी है. यही कारण है कि कांच की तरह साफ इस तालाब के पानी से न केवल डेह गांव के लोग बल्कि आसपास के 10-12 गांवों के लोग अपनी प्यास बुझाते हैं. तालाब के पानी को साफ सुथरा रखने की इस मुहिम के चलते ही ग्रामीणों ने अपने खर्चे पर एक आदमी भी रखा हुआ है. जिसका काम यह देखना ही है कि तालाब के पानी को कोई गंदा तो नहीं कर रहा है.
इतना ही नहीं अंगोर की जमीन पर भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है ताकि वहां गिरने पर बारिश का जो पानी तालाब में पहुंचता है, वह साफ-सुथरा और सुरक्षित हो. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह तालाब करीब 250 साल पुराना है. बारिश का पानी इसे लबालब भर देता है और यह साल भर तक डेह और आसपास के गांवों के लोगों की प्यास बुझाता है.
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सरपंच रणवीर सिंह का कहना है कि पहले गांव में किसी की मौत होने पर अंतिम संस्कार और अन्य क्रियाकर्म के बाद लोग यहां नहाते थे. अब इस पर भी रोक लगा दी गई है. तालाब के पानी के साथ ही अंगोर की साफ-सफाई के लिए भी ग्रामीणों ने कड़े नियम बना रखे हैं और उनका उल्लंघन करने पर गांव की ओर से दंडित भी किया जाता है. इस तालाब के पास स्थित मंदिर की खाली जमीन पर पेड़-पौधे लगाकर तैयार किया जा रहा है, ताकि ग्रामीण सुबह-शाम यहां सुकून से थोड़ा वक्त बिता सके. डेह की तर्ज पर यदि जिले, प्रदेश और देश-दुनिया के लोग पानी का मोल समझे और बारिश के पानी को सहेजने की दिशा में अपना योगदान दें तो शायद पीने के पानी की किल्लत का सामना कर रही एक बड़ी आबादी को राहत मिल सकती है.