कुचामनसिटी. राजस्थान में अगले माह के आखिर में विधानसभा चुनाव होना है, जिसकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. इसी बीच कुचामन में मीडियाकर्मियों से मुखातिब हुए अयोध्या पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री श्रीधराचार्य ने एक बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि केवल साधु-संत ही राष्ट्र व राज्य को चला सकते हैं और संतों का सियासत में आना अपने आप में परम सौभाग्य की बात है. महाराज ने कहा कि संत केवल वेशभूषा से नहीं, बल्कि कोई व्यक्ति अपने विचारों से बनता है. हम आज भी राम राज्य को सर्वोत्तम मानते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय भी महाराजा दशरथ के परमपद गुरु वशिष्ठ ने संपूर्ण राज्य को अपने हाथ में लेकर संभाला था. दशरथ के दस मंत्री भी संत भावना से जुड़े थे.
सियासत में संतों की सख्त जरूरत : महाराज ने कहा कि परोपकार की भावना रखने वाला ही संत होता है. संत सियासी पद पर आसीन होकर त्याग की भावना के साथ राष्ट्र का निर्माण कर सकता है. संत सबका कल्याण करने वाला होता है. लिहाजा संतों का सियासत में प्रवेश जरूरी है. इधर, संतों के उनके नाम के आगे जगद्गुरु शब्द का प्रयोग किए जाने संबंधित एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जगद्गुरु का तात्पर्य विशिष्ट आचार्य है. जगद्गुरु अपने संप्रदाय का प्रमुख होता है. आगे समाज में फैल रही नशे की प्रवृति को अत्यंत खतरनाक बताते हुए महाराज ने कहा कि मनुष्य का आहार शुद्ध होगा तो वो अपने लक्ष्य को पूर्ण कर सकेगा. शरीर स्वस्थ रहने पर ही मन स्वस्थ रह सकता है. महाराज ने कहा कि आज तो विदेशी भी हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं. मंत्र जाप कर रहे हैं.
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धन से नहीं ज्ञान से होता है संत का मूल्यांकन : वहीं, संत समाज में महंत व महामंडलेश्वर जैसी उपाधियों के लिए रुपए खर्च करने संबंधित एक सवाल के जवाब में महाराज ने कहा कि यह सर्वथा गलत है. संत का मूल्यांकन धन के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता, ज्ञान, तप व त्याग के आधार पर होना चाहिए. आगे उन्होंने आमजनों से मृत्युपरांत अंगदान करने का संकल्प लेने का भी आह्वान किया.
मतदान के लिए किया प्रेरित : महाराज ने कहा कि राष्ट्र वंदना ईश्वर वंदना से कम नहीं है. ऐसे में हर शख्स को चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि योग्य व श्रेष्ठ प्रतिनिधि का चुनाव हो सके.