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ताजमहल से लेकर देश-दुनिया की कई प्रसिद्ध इमारतों की शान बढ़ा रहा मकराना मार्बल, जानें क्यों है खास

देश और दुनिया में मकराना का मार्बल किसी परिचय का मोहताज नहीं है. क्योंकि देश और दुनिया के कई प्रमुख धार्मिक और दर्शनीय स्थलों के निर्माण में यहां के संगमरमर का उपयोग हुआ है. इतना ही नहीं अपने घरों में भी मकराना का मार्बल लोगों की पहली पसंद रहती है.

देश और दुनिया में मकराना मार्बल की है अपनी अलग पहचान
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Published : Jun 10, 2019, 7:21 PM IST

नागौर. देश और दुनिया की किसी भी चमचमाती सफेद इमारत को देखकर हर किसी के दिमाग में जो नाम आता है, वह है संगमरमर यानी मार्बल. नागौर जिले के मकराना और आसपास के इलाकों में निकलने वाला यह पत्थर देश और दुनिया में अपनी अलग ही पहचान रखता है.

देश और दुनिया में मकराना मार्बल की है अपनी अलग पहचान

आगरा के ताजमहल, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल, देहरादून का रायजादा मंदिर, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, मथुरा में बाबा गुरुदेव का आश्रम, बिड़ला मंदिर, जैन मंदिर, अजमेर और सरवाड़ की दरगाह शरीफ और देशनोक का करणी माता मंदिर सहित देश के कई ऐसे धार्मिक व दर्शनीय स्थल हैं, जहां मकराना का ही मार्बल लगा है. अबू धाबी में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद के तौर पर शुमार शेख जायद मस्जिद में भी मकराना का ही मार्बल लगा है.

जानकार बताते हैं कि मकराना का मार्बल कई सौ साल तक खराब नहीं होता है. इसकी चमक समय के साथ बढ़ती जाती है. यह न कभी काला पड़ता है और न ही इसकी पपड़ियां उतरती हैं. वास्तुकारों का कहना है कि इसका स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है. वहीं, ज्योतिषि इसे सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक भी मानते हैं. आचार्य पंडित विमल पारीक का कहना है कि मकराना के मार्बल से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा मन-मस्तिष्क पर असर करती है. इसीलिए अधिकांश धार्मिक स्थानों पर यहीं के मार्बल का उपयोग किया जाता है.

मार्बल विक्रेता अजीज गहलोत का कहना है कि यहां के मार्बल के रासायनिक घटक ऐसे हैं कि यह पीला या काला नहीं पड़ता है. यही कारण है कि शेख जायद मस्जिद में लगाने के लिए कई देशों के पत्थरों को कड़ी कसौटी पर परखा गया. अन्ततः वहां मकराना का पत्थर ही लगाया गया है. एक अन्य मार्बल व्यापारी नीतेश जैन का कहना है कि अब तो वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि मकराना के सफेद पत्थर की चमक समय के साथ कम नहीं होती, बल्कि उसमें ज्यादा निखार आता है.

नागौर. देश और दुनिया की किसी भी चमचमाती सफेद इमारत को देखकर हर किसी के दिमाग में जो नाम आता है, वह है संगमरमर यानी मार्बल. नागौर जिले के मकराना और आसपास के इलाकों में निकलने वाला यह पत्थर देश और दुनिया में अपनी अलग ही पहचान रखता है.

देश और दुनिया में मकराना मार्बल की है अपनी अलग पहचान

आगरा के ताजमहल, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल, देहरादून का रायजादा मंदिर, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, मथुरा में बाबा गुरुदेव का आश्रम, बिड़ला मंदिर, जैन मंदिर, अजमेर और सरवाड़ की दरगाह शरीफ और देशनोक का करणी माता मंदिर सहित देश के कई ऐसे धार्मिक व दर्शनीय स्थल हैं, जहां मकराना का ही मार्बल लगा है. अबू धाबी में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद के तौर पर शुमार शेख जायद मस्जिद में भी मकराना का ही मार्बल लगा है.

जानकार बताते हैं कि मकराना का मार्बल कई सौ साल तक खराब नहीं होता है. इसकी चमक समय के साथ बढ़ती जाती है. यह न कभी काला पड़ता है और न ही इसकी पपड़ियां उतरती हैं. वास्तुकारों का कहना है कि इसका स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है. वहीं, ज्योतिषि इसे सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक भी मानते हैं. आचार्य पंडित विमल पारीक का कहना है कि मकराना के मार्बल से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा मन-मस्तिष्क पर असर करती है. इसीलिए अधिकांश धार्मिक स्थानों पर यहीं के मार्बल का उपयोग किया जाता है.

मार्बल विक्रेता अजीज गहलोत का कहना है कि यहां के मार्बल के रासायनिक घटक ऐसे हैं कि यह पीला या काला नहीं पड़ता है. यही कारण है कि शेख जायद मस्जिद में लगाने के लिए कई देशों के पत्थरों को कड़ी कसौटी पर परखा गया. अन्ततः वहां मकराना का पत्थर ही लगाया गया है. एक अन्य मार्बल व्यापारी नीतेश जैन का कहना है कि अब तो वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि मकराना के सफेद पत्थर की चमक समय के साथ कम नहीं होती, बल्कि उसमें ज्यादा निखार आता है.

Intro:नागौर. देश और दुनिया की किसी भी चमचमाती सफेद इमारत को देखकर हर किसी के दिमाग में जो नाम आता है। वह है संगमरमर यानि मार्बल। नागौर जिले के मकराना और आसपास के इलाकों में निकलने वाला यह पत्थर देश और दुनिया में अपनी अलग ही पहचान रखता है। आगरा के ताजमहल, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल, देहरादून का रायजादा मंदिर, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, मथुरा में बाबा गुरुदेव का आश्रम, बिड़ला मंदिर, जैन मंदिर, अजमेर और सरवाड़ की दरगाह शरीफ और देशनोक का करणी माता मंदिर सहित देश के कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं। जहां मकराना का ही मार्बल लगा है। अबू धाबी में दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद के तौर पर शुमार शेख जायेद मस्जिद में भी मकराना का ही मार्बल लगा है।


Body:जानकार बताते हैं कि मकराना का मार्बल कई सौ साल तक खराब नहीं होता है। इसकी चमक समय के साथ बढ़ती जाती है। यह न कभी काला पड़ता है और न ही इसकी पपड़ियां उतरती हैं। वास्तुकारों का कहना है कि इसका स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। वहीं, ज्योतिषि इसे सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक भी मानते हैं। आचार्य पंडित विमल पारीक का कहना है कि मकराना के मार्बल से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा मन-मस्तिष्क पर असर करती है। इसीलिए अधिकांश धार्मिक स्थानों पर यहीं के मार्बल का प्रयोग किया जाता है।
मार्बल विक्रेता अजीज गहलोत का कहना है कि यहां के मार्बल के रासायनिक घटक ऐसे हैं कि यह पीला या काला नहीं पड़ता है। यही कारण है कि शेख जायेद मस्जिद में लगाने के लिए कई देशों के पत्थरों को कड़ी कसौटी पर परखा गया। अन्ततः वहां मकराना का पत्थर ही लगाया गया है। एक अन्य मार्बल व्यापारी नितेश जैन का कहना है कि अब तो वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि मकराना के सफेद पत्थर की चमक समय के थपेडों से कम नहीं होती। बल्कि उसमें ज्यादा निखार आता है।
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बाइट 1 - अब्दुल अजीज, मार्बल व्यापारी, मकराना।
बाइट 2 - आचार्य पंडित विमल पारीक, ज्योतिषी।
बाइट 3 - नितेश जैन, मार्बल व्यापारी, मकराना।


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