जोधपुर : भारत को साल 2025 तक टीबी (तपेदिक) से मुक्त करने के लिए सरकार ने 2018 में एक बड़ा अभियान शुरू किया था, लेकिन यह लक्ष्य अभी तक पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. इसका कारण यह है कि टीबी के नए रोगी लगातार सामने आ रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि टीबी से मुक्ति पाना है तो देशवासियों को उसी तरह एकजुट होकर इस महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी, जैसे कोरोना महामारी के दौरान लड़ी गई थी, क्योंकि वर्तमान में दुनिया का एक तिहाई टीबी रोगी भारत में है, जो देश की करीब दस फीसदी आबादी के बराबर है.
जोधपुर की स्थिति की बात करें तो 2024 में यहां 6,682 नए टीबी रोगी सामने आए, जो 2023 से 235 अधिक हैं. आंकड़े यह दर्शाते हैं कि प्रतिदिन औसतन एक दर्जन से अधिक नए रोगी सामने आ रहे हैं. हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई टीबी रिपोर्ट 2024 में बताया गया है कि देशभर में 25 लाख से अधिक नए टीबी रोगी चिह्नित हुए हैं. ऐसे में इस बीमारी से मुक्ति पाना इतना आसान नहीं है. जोधपुर के कमला नेहरू टीबी एंड चेस्ट अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सीआर चौधरी का कहना है कि नए रोगियों का आना अभी भी जारी है. हालांकि, इसमें थोड़ी कमी आई है, लेकिन यह पूरी तरह से रुकना आसान नहीं है, चूंकि यह एक संक्रामक रोग है, इसलिए इसके उन्मूलन के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा, तभी हम इसे खत्म कर सकते हैं.
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मानव संसाधन की कमी : डॉ. सीआर चौधरी का कहना है कि टीबी नियंत्रण में चिकित्साकर्मियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन देश में इस काम के लिए आवश्यक मानव संसाधन की कमी है. राज्य स्तर पर 1,056 पदों में से 737 पदों पर नियुक्तियां हुई हैं, जबकि जिला स्तर पर 34,829 पदों में से 28,602 पर ही नियुक्तियां हो पाई हैं. राजस्थान में राज्य स्तर पर 47 और जिला स्तर पर 31 पद खाली हैं. जोधपुर में स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित टीबी अस्पताल में केवल एक डॉक्टर हैं, जो पूरे जिले के कार्यों को देख रहे हैं, यदि वह किसी सरकारी मीटिंग में जाते हैं या छुट्टी पर होते हैं, तो मरीजों को परामर्श और उपचार नहीं मिल पाता है.
टीबी का वायरस शरीर में पहले से मौजूद : जिला टीबी अधिकारी चंद्रकांत तंवर का कहना है कि धीरे-धीरे टीबी के मामलों में कमी आ रही है, लेकिन इस पर पूरी तरह काबू पाना अभी भी चुनौतीपूर्ण है. भारत की 40 प्रतिशत आबादी के शरीर में टीबी का वायरस पहले से मौजूद है, जिसके कारण बच्चों को जन्म के समय टीबी का टीका लगाया जाता है. यह एक संक्रामक रोग है, इसका उन्मूलन आसान नहीं है. सामान्य टीबी से ग्रसित मरीज अगर 6 महीने तक नियमित रूप से दवाइयां लेते हैं तो वे इससे मुक्त हो सकते हैं, लेकिन यदि इस दौरान वे कोरोना जैसे प्रोटोकॉल का पालन करते हैं, तो उनका इलाज अधिक प्रभावी हो सकता है, जो कि अभी तक संभव नहीं हो पाया है.
जागरूकता की कमी : डॉ. सीआर चौधरी का कहना है कि टीबी के नियंत्रण में सबसे बड़ी समस्या जागरूकता की कमी है. इसके कारण कई लोग उपचार के दौरान बीच में ही दवा छोड़ देते हैं, जिससे रोग एमडीआर टीबी (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी) में बदलकर और अधिक जटिल हो जाता है. टीबी के उन्मूलन के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर जागरूकता फैलाने और उपचार को सुनिश्चित करने के प्रयास तेज करने होंगे.