नागौर. जिले के कुचामन निवासी अब्दुल हकीम और उनके परिवार के लिए कुचामन राजकीय चिकित्सालय (exchange transfusion technique) के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ईशाक देवड़ा मसीहा साबित हुए हैं. दरअसल अब्दुल हकीम की पत्नी ईदी ने एक ऐसे शिशु को जन्म दिया, जिसके शरीर में जन्म के समय से ही पीलिया बहुत ज्यादा मात्रा में था. जिससे शिशु की जान को खतरा था. ऐसे में अस्पताल के विशेषज्ञ डॉक्टर ईशाक देवड़ा ने फोटो थेरेपी के जरिए पीलिया को कंट्रोल करने की कोशिश की. कामयाबी नहीं मिलने पर उन्होंने एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन यानी नवजात के शरीर का रक्त बदलने का फैसला (Dr Ishaq Deora use exchange transfusion) किया. इस फैसले की बदौलत नवजात बच्चे समेत करीब 50 बच्चों का जीवन (50 children saved by using exchange transfusion) अब तक बचाया जा चुका है. एक कस्बे के सरकारी अस्पताल में डॉक्टर की कोशिशों की तारीफ अब चारों ओर हो रही है.
आसान नहीं था परिजनों से मंजूरी लेनाः आम तौर पर बड़े इलाज के लिए लोग बड़े शहरों का रुख करते हैं. ऐसे में सरकारी अस्पतालों की छवि का जाहिर होना भी खून बदलने यानी ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन जैसे मसले में और चिंताओं को बढ़ा देता है. लिहाजा मां ईदी और पिता अब्दुल हकीम के लिए फैसला लेना आसान नहीं था. लेकिन स्थानीय डॉक्टरों के मशविरे के आधार पर परिजनों ने एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की मंजूरी दी. जिसके बाद ईदी-हकीम के बच्चे की सेहत में तुरंत सुधार देखा गया. जाहिर है कि तय मियाद में इलाज के लिए अगर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है , तो खून से जुड़ी बीमारी खास तौर पर पीलिया जैसे रोगों में जान बचाई जा सकती है.
हो चुके हैं 50 के करीब एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजनः कुचामन सरकारी अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ईशाक देवड़ा और उनकी टीम तकरीबन 50 से ज्यादा बच्चों की जान अब तक एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन करके बचा चुकी है. बता दें कि कुचामन के डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजकीय चिकित्सालय के न्यू बोर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट (NBSU) वार्ड की विशिष्ट सुविधाओं के चलते प्रदेश भर में अस्पताल की पहचान बन चुकी है. SDM मुख्यालय के इस चिकित्सालय में मिल रही यह सुविधा फिलहाल प्रदेश के जिला स्तरीय अस्पतालों में भी उपलब्ध नहीं है. यहां के डॉक्टर ईशाक ने बताया कि पीलिया के कारण ही इससे पहले अब्दुल हकीम के 4 बच्चों की मौत जन्म के बाद हो गई थी. ऐसे में इस बार की कोशिशों के दम पर बच्चे की जान को बचाया जा सका. उधर, अब्दुल हकीम ने बताया कि उसने कई जगह कोशिश की, कई अस्पतालों के चक्कर लगाए, लेकिन हर जगह से निराशा ही हाथ लगी. आखिरकार कुचामन के राजकीय चिकित्सालय में उन्हें उम्मीद की किरण नजर आई.
अधिक पीलिया होने पर किया जाता है एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजनः डॉक्टरों के मुताबिक जब नवजात बच्चों में पीलिया ज्यादा बढ़ जाता है, तो एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन ही मेडिकल साइंस के सामने एक मात्र विकल्प होता है. इस दौरान शरीर में फ्रेश ब्लड यानी किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से प्राप्त खून को डाला जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान न्यू ब्लड इंजेक्ट करने के साथ ही पीलिया ग्रस्त खून को बाहर निकाला जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में करीब तीन घंटे लगते हैं. चिकित्सकों के मुताबिक यह प्रक्रिया जटिल जरूर है, मगर जीवन रक्षक तकनीक के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
सरकारी अस्पताल में बड़े हॉस्पिटल्स जैसी सुविधाः कुचामन के सरकारी अस्पताल में नवजात बच्चों को लेकर सुविधाओं में काफी विस्तार भी किया गया है. जिसके कारण यह सरकारी अस्पताल महंगे इलाज वाले हॉस्पिटल्स को चुनौती देता है. अस्पताल के NBSU वार्ड की एक और खासियत यह है कि यहां CPAP एवं HFNC मशीने हैं ,जो सांस में तकलीफ वाले बच्चों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही हैं. बड़े शहरों में मिलने वाली फ्ल्यूड थेरेपी भी वार्ड की सुविधाओं में से एक है. वहीं इंफ्यूजन पम्प के जरिए फल्यूड थैरेपी की इस पद्धति में डिजिटल मशीनों से निश्चित मात्रा में ग्लूकोज नवजात के शरीर में चढ़ाए जाते है. कुचामन के इस अस्पताल में अत्यधिक कम वजन के बच्चों (ELBW) का इलाज विशेषज्ञ कर रहे हैं. यही नहीं समय से पहले जन्मे बच्चों के फेफड़े बनाने के इंजेक्शन की सुविधा भी कुचामन के इस चिकित्सालय में उपलब्ध है.