कोटा. सतीश अपने परिवार के मुखिया थे. 45 साल के क्षेत्रपाल भी अपनी खुशहाल जिंदगी जी रहे थे और बुजुर्ग शारदा देवी अपने बेटों के साथ मानो दुनिया जहां की खुशियां अपने साथ लिए जिंदगी के बचे वक्त को काट रही थी. लेकिन फिर सिस्टम की लाचारी का मानो ऐसा तूफान आया जो जिंदगी से सांसे उखाड़कर ले गया. परिजन इन सब की मौत का जिम्मेदार प्रशासन को बता रहे हैं.
27 अप्रैल को सतीश अग्रवाल की मौत:
कोटा जिले के रामपुरा फतेहगड़ी निवासी सतीश अग्रवाल कि 27 अप्रैल को तबीयत बिगड़ गई. सतीश अस्थमा के पीड़ित मरीज थे. परिजनों ने एंबुलेंस को कॉल किया था लेकिन डेढ़ घंटे तक एंबुलेंस नहीं पहुंची. इसके बाद बेटा मनीष अग्रवाल अपने पिता को ठेले पर ही लेकर अस्पताल के लिए निकला पड़ा. बड़ी मशक्कत करते हुए डेढ़ किलोमीटर ठेले पर पिता को लेकर वह नयापुरा गया. जहां पर उसके अन्य रिश्तेदारों ने एक एंबुलेंस का इंतजाम किया. परिजन यहां से सतीश को लेकर महाराव भीम सिंह अस्पताल लेकर पहुंचे लेकिन काफी देर हो चुकी थी. चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. बेटे मनीष अग्रवाल का कहना है कि वे नयापुरा तक सांस ले रहे थे साथ ही बार बार बोलने की कोशिश भी कर रहे थे. अगर समय से एंबुलेंस मिल जाती तो मेरे पिता आज जिंदा होते.
चार मई को क्षेत्रपाल मीणा की मौत:
सतीश की मौत का एक सप्ताह भी नहीं बीता 3 मई को फतेहगड़ी इलाके में ही रहने वाले क्षेत्रपाल मीणा की भी तबीयत बिगड़ी. एंबुलेंस की जरूरत पड़ी परिजनों ने एंबुलेंस को कॉल करने की लेकिन नहीं आई. ऐसे में परिजन उसे ठेले पर जिसमें सतीश अग्रवाल के परिजन लेकर गए थे उसी में क्षेत्रपाल मीणा को भी लिटाया. ठेले से ही लेकर क्षेत्रपाल मीणा को रामपुरा अस्पताल पहुंचे परिजन जहां से चिकित्सकों ने एमबीएस जाने को कह दिया. परिजन जब एमबीएस अस्पताल पहुंचे तो यहां पर चिकित्सकों ने क्षेत्रपाल मीणा को मृत घोषित कर दिया.
16 मई को बुजुर्ग शारदा गोयल की मौत:
तीसरी घटना 16 मई को सामने आई जहां पर स्ट्रेचर पर तड़पती हुई मां ने बेटों के सामने ही दम तोड़ दिया. यह भी रामपुरा एरिया का ही मामला है. जहां पर रामपुरा कोतवाली के सामने रहने वाले प्रेम शंकर और पंकज गोयल की मां शारदा गोयल की तबीयत सुबह बिगड़ी. उनके परिजन एंबुलेंस का इंतजार करते रहे. जब एंबुलेंस नहीं आई तो स्कूटर पर ही मां को लेकर वह एमबीएस अस्पताल पहुंचे. जहां चिकित्सकों ने जांच करवा दी और नए अस्पताल में रेफर कर दिया.
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शारदा गोयल स्ट्रेचर पर ही लेटी हुई थी और उनके बेटे पास खड़े हुए एंबुलेंस का इंतजार करते रहे. दो घंटे बीत गए, लेकिन एमबीएस अस्पताल प्रबंधन ने एंबुलेंस उपलब्ध नहीं करवाई. आखिर में शारदा गोयल ने स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ दिया. ना तो रामपुरा में उन्हें एंबुलेंस मिली ना एमबीएस अस्पताल ने नए अस्पताल में रेफर करने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध करवाई.
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यानि की इन तीनों की मौत सिर्फ इसलिए हो गई क्योंकि समय पर एंबुलेंस नहीं पहुंची. स्ट्रेचर पर मां की उखड़ती सांसों को पास में खड़े बेबस बेटे देखते रहे. पिता की हर सांस को सुनता हुआ ये बेटा ठेला दौड़ता रहा. मजबूर परिजन बेटे की सांसे गिनते रहे. जिनसे मदद की दरकार थी वो वर्दीधारी भी मौत का तमाशा देखते रहे. ये तीनों तस्वीरे विचलित करने वाली हैं लेकिन क्या करें शायद सच्चाई यही है.
ये तस्वीरें इस बात तो बयां करती हैं की सरकार के सारे दावे खोखले हैं. गरीब और बेसहरा लोगों के लिए अब भी कुछ नहीं बदला. इस बदला है तो सिर्फ ये तस्वीरें..ये चीख...ये सूनापन...जिंदगी में अंधेरा और अपनों के खोने का दर्द....