कोटा. राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय (RTU) के निलंबित एसोसिएट प्रोफेसर गिरीश परमार की काली करतूत के चलते पूरा विश्वविद्यालय शर्मिंदा हो गया है. गिरीश परमार और उनके बिचौलिए छात्र अर्पित अग्रवाल के बीच बातचीत के चार ऑडियो पहले सामने आए थे, लेकिन पुलिस की पड़ताल में अब इन ऑडियो की संख्या बढ़कर 50 से ज्यादा हो गई है. पुलिस को इसमें अंदेशा है कि इन ऑडियो में कई अन्य लोगों या छात्राओं के नाम भी सामने आ सकते हैं.
अर्पित और प्रोफेसर के चार ऑडियो पहले बाहर आए थे. जिनमें दोनों ने करीब 25 मिनट 15 सेकंड से ज्यादा बातचीत की है. इस आधार पर माना जा रहा है कि करीब 3 से 4 घंटे की रिकॉर्डिंग दोनों के बीच इन 50 से ज्यादा ऑडियो में हो सकती है. स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम में जांच कर रहे पुलिस उप अधीक्षक प्रथम अमर सिंह राठौड़ का कहना है कि सभी ऑडियो की जांच की जा रही है और उनकी ट्रांसक्रिप्ट बनाई जा रही है. जिनके आधार पर जिन भी लोगों के नाम इसमें सामने आएंगे, उनसे भी पूछताछ की जाएगी. अन्य लोगों की संलिप्तता भी सामने इससे आ सकती है.
आपको बता दें कि राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक्स डिपार्टमेंट के निलंबित एसोसिएट प्रोफेसर गिरीश परमार और छात्र अर्पित अग्रवाल के खिलाफ दादाबाड़ी थाने में नंबर बढ़ाने की एवज में अस्मत मांगने का मामला छात्रा ने दर्ज करवाया था. जिसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों ही पुलिस रिमांड में चल रहे हैं और उनसे पूछताछ की जा रही है. वहीं दोनों के खिलाफ मुकदमों की संख्या भी बढ़कर 3 हो गई है.
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अर्पित को शक था फंस सकते हैं: बिचौलिया छात्र अर्पित अग्रवाल को पहले से ही अंदेशा था कि गिरीश परमार के साथ मिल वे गलत काम कर रहे हैं, जिसमें वे फंस सकते हैं. इसीलिए अर्पित अग्रवाल सभी कॉल रिकॉर्ड कर रहा था. इसमें अर्पित को यह भी आशंका था कि गिरीश परमार कभी भी उस से पल्ला झटक सकता है और कह सकता है कि यह पूरा काम अर्पित खुद ही कर रहा था. इसीलिए अर्पित ने प्रोफेसर की पूरी रिकॉर्डिंग की थी. जिसके 50 से ज्यादा ऑडियो उसके मोबाइल में मिले हैं.
ये ऑडियो रिकॉर्डिंग भी नवंबर व दिसंबर महीने की है. इन सभी ऑडियो की ट्रांसक्रिप्ट पुलिस बना रही है. जिन्हें बतौर एविडेंस अर्पित अग्रवाल और गिरीश परमार के खिलाफ उपयोग लिया जाएगा. हालांकि अब यह ऑडियो ही दोनों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं और इन डर्टी ऑडियो को पुलिस बतौर सबूत के तौर पर इनका उपयोग करेगी. जिनसे इन दोनों की काली करतूत भी सामने आएगी.
परमार को नहीं था कोई डर, रिकॉर्डिंग भी नहीं: गिरीश परमार किसी भी तरह की कोई ऑडियो रिकॉर्डिंग या कॉल रिकॉर्डिंग नहीं करता था. सेकंड व थर्ड ईयर के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले परमार को किसी तरह का कोई डर भी नहीं था, लेकिन यह भी अंदेशा जताया जा रहा है कि कुछ छात्राओं से परमार ने बात की हो. उनके पास भी रिकॉर्डिंग हो सकती है. ऐसे में अर्पित और परमार के बीच हुई बातचीत के ऑडियो की ट्रांसक्रिप्ट बनाकर अन्य स्टूडेंट्स, फैकल्टी और स्टाफ की संलिप्तता की भी जांच की जाएगी. साथ ही पुलिस को उम्मीद है कि गिरीश परमार और अर्पित अग्रवाल के बीच कोविड-19 के खत्म होने के बाद ही इस तरह की बातचीत होना शुरू हो गया था, लेकिन रिकॉर्डिंग नवंबर-दिसंबर महीने की ही है. हो सकता है कोविड-19 से पहले परमार अन्य छात्रों के जरिए इस तरह के काम को कर रहा था.