कोटा. राजस्थान में अगले माह विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में सियासी पार्टियों की जमीनी स्तर पर सक्रियता बढ़ गई है. सभा और रैलियों के इतर जनसंपर्क के लिए यात्राएं और अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि पार्टियां अपने पक्ष में माहौल बना सके और बनते बिगड़ते समीकरण को दुरुस्त कर सके. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे हाड़ौती के समीकरण की. यहां चार जिले हैं, जिसमें कोटा, बारां, बूंदी और झालावाड़ शामिल हैं. सियासी दृष्टि से इन चारों के पृथक समीकरण हैं.
वहीं, हाड़ौती को भाजपा का गढ़ माना जाता है, क्योंकि यहां के तीन जिलों कोटा, बूंदी और झालावाड़ में भाजपा कांग्रेस की तुलना में बेहतर स्थिति में नजर आ रही है. पिछले चुनावों में भी यहां भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा है. जबकि सीटों के लिहाज से बारां में मुकाबला बराबरी का रहा है. सीट पर जीत और मत प्रतिशत के लिहाज से कांग्रेस बूंदी में भाजपा की तुलना में बेहतर नजर आती है, बावजूद इसके वो यहां भाजपा से पीछे है. हालांकि, पूरे समीकरणों का एनालिसिस करने पर सामने आता है कि भाजपा के लिए सबसे कमजोर जिला बारां रहा है. जबकि कांग्रेस के लिए सबसे कमजोर झालावाड़ है.
भाजपा 66 व कांग्रेस 31 फीसदी सीट जीती : जिलेवार समीकरणों का एनालिसिस करने पर सामने आया है कि बारां में भाजपा का सीट जीत प्रतिशत 43.75% रहा है. यह हाड़ौती में सबसे कम है. इसके बाद बूंदी में 53.84% व कोटा जिले में 70.83% रहा है. जबकि सबसे ज्यादा 88.23% झालावाड़ का है. इधर, पूरे हाड़ौती में औसत 65.71% रहा है. दूसरी ओर कांग्रेस का सर्वाधिक बेहतर प्रदर्शन 46.15% बूंदी जिला में रहा. इसके बाद बारां में 43.75% और कोटा जिले में 29% रहा है. वहीं, सबसे खराब प्रदर्शन झालावाड़ जिले में 11.76% रहा है.
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कांग्रेस का छह बार जिलों में हुआ था सूपड़ा साफ : कांग्रेस पार्टी का बीते चार चुनाव में छह बार जिलों से सूपड़ा साफ हुआ है. 2003 में बारां जिले में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. यहां चार सीटों बारां व किशनगंज से निर्दलीय और दो छबड़ा व अंता से भाजपा उम्मीदवार जीते थे. कांग्रेस को इस चुनाव में कोई सीट नहीं मिली थी. इसी तरह से 2003 के चुनाव में झालावाड़ जिले की 5 सीटों में से कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. बात अगर 2013 के चुनाव की करें तो भाजपा को जहां एक तिहाई बहुमत राजस्थान में लिया था. उसमें बारां, कोटा और झालावाड़ से एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिली थी. इसी तरह से 2018 के चुनाव में भी झालावाड़ जिले से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. जबकि सत्ता में कांग्रेस आई थी.
2008 में बारां से साफ हो गई थी भाजपा : कांग्रेस के लिए हाड़ौती में सबसे मजबूत बूंदी जिला बनकर उभरा. इसके बाद बारां जिला सबसे मजबूत रहा है. यहां पर 2008 के चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था. चारों सीटों पर कांग्रेस विजय रही थी. ये बीते चार चुनाव में केवल एक बार हुआ था कि हाड़ौती के किसी भी जिले में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी. यहां मंत्री प्रमोद जैन भाया के हाथ में कांग्रेस की लगभग पूरी कमान है और वो पूरी तरह से बारां जिले को कंट्रोल करते हैं. यहां तक कि जो यहां से विधायक चुने जाते हैं, वो भी भाया के करीबी ही होते हैं. भाया टिकट दिलाने से लेकर जीतने तक का काम करते हैं.
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जिलेवार बीते चार सालों का हिसाब-किताब
- झालावाड़ जिले की बात की जाए तो ये कांग्रेस के लिए कमजोर रहा है. 2003 के चुनाव में यहां पर पांच सीट थी, जो बाद में परिसीमन के बाद 4 रह गई. ऐसे में 2003 से 2018 तक यहां पर 17 सीटों पर चुनाव हुए. इनमें भाजपा के खाते में 15 सीट गई. जबकि कांग्रेस को महज दो सीटों पर जीत मिली. यह दोनों जीत भी साल 2008 के चुनाव में डग से मदनलाल वर्मा और मनोहर थाना से कैलाश चंद मीणा को मिली.
- बारां जिला भाजपा के लिए सबसे कमजोर रहा है. यहां पर साल 2003 के बाद 16 सीटों पर चुनाव हुए, जिनमें 7-7 सीट पर भाजपा और कांग्रेस विजयी रही. जबकि दो सीटों पर निर्दलीयों को सफलता मिली. इनमें 2003 के चुनाव में किशनगंज से हेमराज मीणा भाजपा के बागी और बारां से प्रमोद जैन भाया कांग्रेस के बागी होकर चुनाव जीते थे.
- कांग्रेस के लिए सबसे मजबूत जिला बूंदी रहा है. यहां पर 2003 के चुनाव में चार सीट हुआ करती थी, लेकिन परिसीमन के बाद एक सीट कम होकर तीन रह गई है. ऐसे में अब तक 13 सीटों पर चुनाव हुए, जिनमें भाजपा को 7 और कांग्रेस 6 सीटों पर जीती, लेकिन कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हाड़ौती के जिलों में यहीं पर रहा है.
- कोटा जिला भी कांग्रेस के लिए मुश्किल भरा रहा है. यहां पर परिसीमन के पहले 5 सीटें थी, बाद में यह 6 सीट हो गई है. साल 2014 में ओम बिड़ला के सांसद बनने के बाद कोटा दक्षिण सीट पर चुनाव हुआ था. ऐसे में अब तक यहां पर 24 सीटों पर चुनाव हुए, जिनमें 17 पर भाजपा और 7 पर कांग्रेस को जीत मिली है.