कोटा. राजे रजवाड़ों की धरती पर होली का अलग ही महत्व रहा है. आज के जमाने में जहां होली एक दो दिन में सिमट जाती है, रियासतों के दौर में होली सबसे बड़े त्योहार होता था और ये कई दिनों तक चलता था. उस दौर में कोटा रियासत (हाड़ौती) की होली भी बहुत अलग और खास थी.
इतिहास के झरोखों में जाएंगे तो मालूम होगा कि आजादी से पहले जब रियासतों का दौर हुआ करता था तब राजस्थान को राजपूताना कहा जाता था. कोटा रियासत और उससे सटे इलाकों को हाड़ौती कहा जाता था. तब होलिका दहन से होली के पर्व की शुरूआत होती थी और इसकी धमाल कम से कम 9 दिन तक चलती थी. हर दिन राजघराने के महाराव और जनता अलग-अलग रंग और खुशबुओं से सराबोर होकर होली का पर्व मनाते थे.
होलिका दहन के बाद धुलण्डी आठ दिन तक चलती थी. कभी धूल और मिट्टी की होली, तो किसी दिन गुलाल और रंग की होली, किसी दिन राजा अपनी प्रजा के साथ होली मनाता था तो एक दिन राजघराने की औरतें होली खेलती थीं. इसमें भी रानी, महारानी और बड़ारण की होली अलग-अलग हुआ करती थी. होली का उन्माद ऐसा होता था कि लोग उसे साल भर याद रखते थे और अगली होली का इन्तजार रहता था.
कोटा रियासत के महाराव उम्मेद सिंह की ख्याति उस जमाने में अन्य रियासतों तक फैली थी, इसकी वजह भी यही थी, यहां की होली का पर्व. फागुन सुदी पूर्णिमा से होली पर्व की शुरूआत होती थी. जो नौ दिन तक चलता था. आइए जानते हैं किस दिन क्या होता था विशेष
- पहला दिन: होलिका दहन के दिन शाम को तीसरे पहर के बाद उम्मेद भवन से जनानी सवारी शुरू होती थी. इस सवारी में रानी और महाराज बग्गी में सवार होकर रवाना होते थे. शाम 7 बजे गढ़ के चौक में होलिका दहन होता था. इस दौरान दरबार के विधुर हाड़ौती के लोकगीत गाकर वहां पहुंची जनता का मनोरंजन करते थे.
- दूसरा दिन: दूसरे दिन धुलण्डी का हुल्लड़ शुरू होता. इस दिन लोग होलिका दहन की राख से धुलंडी खेलते थे. इस दिन का नाम धुलंडी भी इसी लिए रखा गया है. खास बात यह होती थी कि इस दिन रंगों का कोई इस्तेमाल नहीं करता था.
- तीसरे दिन: धुलंडी के दूसरे दिन रियासत के महाराव दवात पूजन करते थे. पूजन का यह कार्य महल के चौक या किले में होता था. इस पूजन के मौके पर प्रजा भी बड़ी तादाद में शामिल हुआ करती थी. प्रजा में मिठाई भी बांटी जाती थी.
- चौथा दिन: कोटा रियासत में चौथे दिन नावड़ा की होली खेली जाती थी. इस दिन दरबार प्रजा के संग होली खेलने निकलते तो राजा व प्रजा के मध्य आत्मीयता का रंग बरसता था. इस होली के दिन महाराव एक यांत्रिक फव्वारे से प्रजा रंग बरसाते थे.
- पांचवा दिन: पांचवे दिन हाथियों की होली खेली जाती थी. जिसमें महाराव हाथियों पर सवार होकर लोगों से होली खेलने निकलते थे. इस होली में केवल प्राकृतिक रंगों को उपयोग होता था. इसे देखने के लिए प्रजा दूर-दराज के इलाकों से भी आती थी.
- छठा दिन: छठे दिन पड़त रहती थी.
- सातवां दिन: कोटा रियासत में सातवें दिन न्हाण खेला जाता था. इस दिन नृत्य होता था और महारामव अबीर और गुलाल से भरे गोटे फेंकते थे. लाख के बने गोटों में गुलाल भरा होता था. यह कार्यक्रम दरीखाने में होता था इसके बाद महाराव अपनी रानियों, महारानी और बड़ारण के साथ होली खेलते थे.
- आठवां दिन: आठवें दिन भी पड़त रखी जाती थी.
- नवें दिन: 9वें दिन अखाड़ों का आयोजन किया जाता था. यह कार्यक्रम भी दरीखाने में होता था जिसमें कचहरी व फौज के हलकारों के बीच अखाड़ा होता था. इसी के साथ होली का पर्व माप्त होता था.