कोटा. बीते साल लहसुन किसानों को बुरे वक्त का सामना करना पड़ा था. उन्हें मंडी में उपज के दाम 1 से 2 रुपए किलो मिल रहे थे. हालात ऐसे थे कि कई किसानों ने खेत से ही माल नहीं निकाला. हजारों रुपए बीघा खर्च कर उगाए गए लहसुन को सड़ने के बाद कचरे में फेंक दिया, लेकिन इस साल किसानों को थोड़ी राहत मिली है. लहसुन का रकबा पहले ही कम हो गया था, साथ ही मौसम की मार के चलते इस बार उत्पादन भी कम हुआ है. इसका फायदा किसानों को मिल रहा है, उन्हें बीते साल से ज्यादा दाम मिल रहे हैं. यह लागत से थोड़ा ज्यादा जरूर है, लेकिन यह भी पूरा नहीं है.
8000 के आस पास पहुंचे मंडी में दाम : कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी में वर्तमान में 12 से 13 हजार लहसुन की रोज आवक हो रही है. यह आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है. मंडी में औसत भाव की बात की जाए तो 35 से 55 रुपए किलो किसानों को मिल रहा है. बीते सालों में लहसुन एक या दो रुपए किलो बिक रहा था, जिसमें बिखरा हुआ लहसुन भी शामिल था. ये भी इस बार 10 से लेकर 20 रुपए किलो बिक रहा है. एक्सपोर्ट क्वालिटी लहसुन की बात की जाए तो उसके दाम 8000 के आसपास पहुंच गए हैं. इससे थोड़ा नीचे का लहसुन 6 से 8 हजार के बीच बिक रहा है.
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औसत से कम रहा है उत्पादन : उद्यानिकी विभाग के उपनिदेशक आनंदी लाल मीणा ने बताया कि बीते साल उत्पादन काफी ज्यादा कम था. साल 2021 में किसानों ने 115445 हेक्टेयर में लहसुन की बुवाई कर दी थी, जिससे साल 2022 में उत्पादन 7.25 लाख मीट्रिक टन के आसपास हुआ था. इस बार यह उत्पादन कम हुआ है. ऐसे में क्वालिटी भी अच्छी नहीं थी. साथ ही पूरे इलाके में उत्पादन ज्यादा होने के चलते किसानों को दाम भी कम मिले थे. यह बुवाई साल 2022 में 79 हजार हेक्टेयर में हुई थी. इस बार भी यह उत्पादन 78 क्विंटल के आसपास ही है, जबकि क्वालिटी ज्यादा अच्छी होने पर यह 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास होता है.
इस साल मिली है थोड़ी राहत : सांगोद इलाके के लसाड़िया गांव के किसान राम कल्याण कहना है कि बीते साल 9 बीघा में लहसुन की बुवाई की थी, जिसमें कोई मुनाफा नहीं मिला था. इस बार माल थोड़ी सही रेट में बिक रहा है, थोड़ी लागत भी निकल रही है. इस बार लहसुन का उत्पादन केवल साढ़े तीन बीघा में ही किया था. अब तक 6000 और 5400 रुपए क्विंटल बिका है. बीते साल लाखों का नुकसान हो गया था. लोगों से लिया हुआ कुछ कर्जा उतर जाएगा.
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10 से घटाकर 3 बीघा किया : बारां जिले के अटरू तहसील के नया गांव ननावता निवासी मलखान मीणा का कहना है कि लहसुन के दाम इस बार बढ़ गए हैं. बीते साल और 10 बीघा में लहसुन की बुवाई की थी. इसमें मुनाफा मिलाकर भी करीब 4 लाख का नुकसान हो गया था. इस बार रकबा घटाकर कम कर दिया और केवल 3 बीघा में ही लहसुन का उत्पादन किया. इस बार लहसुन 5900 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है. इसके साथ ही बिखरा हुआ लहसुन यानी छर्री 2500 रुपए क्विंटल बिका है. इस बार थोड़ी राहत मिली है.
खर्चा-पानी निकलने जितना ही मिल रहा है पैसा : आमली झाड़ गांव निवासी तंवर सिंह का कहना है कि बीते साल 10 बीघा में लहसुन का उत्पादन किया था, इस बार कम करके 6 बीघा किया है. बीते साल कोई फायदा नहीं हुआ, उल्टा मजदूरी और खाद-बीज का पैसा जेब से देना पड़ा था. इस बार दाम थोड़े ज्यादा हैं, यह 4000 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास मिल रहे हैं. इसमें भी हमारा केवल खर्चा ही निकल पाएगा, क्योंकि इसकी लागत ही करीब 30 हजार रुपए प्रति बीघा के आसपास है. इस बार उत्पादन थोड़ा कम हुआ है. पैदावार कम होने के चलते फसल कमजोर है.
पहले से कम कर 20 प्रतिशत क्षेत्र में उगाया : रामगंजमंडी इलाके के पीपाखेड़ी गांव निवासी देवीलाल मीणा का कहना है कि पिछली बार उन्होंने 5 बीघा में लहसुन का उत्पादन किया था, जो पूरी तरह से बर्बाद ही हुई थी. मंडी में दाम न के बराबर मिल रहे थे, यह सुनकर माल को मंडी में नहीं ले गए. बाद में जब खेत में ही माल सड़ने लगा, तब कुछ माल निकाला और कुछ को फेंक दिया. उनका कहना है कि बीते साल उन्हें करीब एक लाख का नुकसान हुआ था. हालांकि, इस बार भी कुछ ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा है, बस दाम थोड़े से बढ़ गए हैं.