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स्पेशलः महिला दिवस से अनजान कचरे के बीच यूं ही गुजर जाता है इन महिलाओं का दिन - महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण के रूप में महिला दिवस मनाया जाता रहा है. जिसमें महिलाओं के लिए कई प्रकार की योजनाएं बनती है. लेकिन, सरकार की कई योजनाओं का लाभ अभी भी उन महिलाओं तक नहीं पहुंच पा रहा है, जो कचरे के ढेर में अपनी जिंदगी को गुजार देती है.

कोटा न्यूज, kota news, rajasthan news
परेशानियों के बीच गुजर जाता है इन महिलाओं का दिन
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Published : Mar 8, 2020, 3:03 PM IST

Updated : Mar 16, 2020, 8:35 AM IST

कोटा. महिला सशक्तिकरण के रूप में महिला दिवस मनाया जाता रहा. जिसमें महिलाओं के लिए कई प्रकार की योजनाएं बनती है. कई संस्थाओं द्वारा बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं. ईटीवी भारत जब हकीकत जानने के लिए भील जाति की महिलाओं के बीच पहुंचे. उन महिलाओं के हालात देखे तो वे काफी परेशानी में नजर आईं. ये महिलाएं 40 से 50 क्विंटल सूखी लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रखकर बेचती हुई नजर आईं.

परेशानियों के बीच गुजर जाता है इन महिलाओं का दिन

वन विभाग वाले करते है परेशान...

दरअसल, लकड़ी को बेचकर अपने परिवार का पेट पालना इतना आसान नहीं होता है. क्योंकि जिस जगह से सूखी लकड़ियां लाती हैं वह जमीन वन विभाग की है. महिलाओं का कहना है कि वन कर्मचारियों द्वारा आए दिन उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और उनको भगा दिया जाता है. महिलाएं प्लास्टिक, लोहा, कागज बिनकर कबाड़ियों को बेच कर परिवार का गुजर बसर करती हैं.

पढ़ेंः 8 मार्च : एक शताब्दी से ज्यादा पुरानी हुई महिला दिवस मनाने की परंपरा

'क्या होता है यह महिला दिवस'?

इसी अभाव में जब इन महिलाओं से महिला दिवस के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा, 'क्या होता है यह महिला दिवस'. उन्होंने कहा, कि हम तो सिर्फ इस कचरे के ढेर में से कचरा बिनकर अपने बच्चों का लालन-पालन करते है. साथ ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी जरूरी है. जिसके लिए हमें सरकारी योजना का आज तक कोई फायदा नहीं मिला. उनका कहना था, कि जहां पर पहले हम झोपड़ी बनाकर रहते थे उसे भी हटा दिया गया.

इन महिलाओं का कहना है, कि हम लोगों को आश्वासन दिया गया कि दूसरी जगह रहने के लिए उन्हें जगह मुहैया करवाई जाएगी, जो अभी तक नहीं हुई. इन महिलाओं का कहना है, कि नगर निगम वाले हमें परेशान करते है. खैर, महिला दिवस पर सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. मगर जो दावे कर रहे हैं उन्होंने कभी भी शायद इन महिलाओं की सुध नहीं ली. जरुरत है इन महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की, तभी जाकर महिला दिवस की सार्थकता नजर आएगी.

कोटा. महिला सशक्तिकरण के रूप में महिला दिवस मनाया जाता रहा. जिसमें महिलाओं के लिए कई प्रकार की योजनाएं बनती है. कई संस्थाओं द्वारा बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं. ईटीवी भारत जब हकीकत जानने के लिए भील जाति की महिलाओं के बीच पहुंचे. उन महिलाओं के हालात देखे तो वे काफी परेशानी में नजर आईं. ये महिलाएं 40 से 50 क्विंटल सूखी लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रखकर बेचती हुई नजर आईं.

परेशानियों के बीच गुजर जाता है इन महिलाओं का दिन

वन विभाग वाले करते है परेशान...

दरअसल, लकड़ी को बेचकर अपने परिवार का पेट पालना इतना आसान नहीं होता है. क्योंकि जिस जगह से सूखी लकड़ियां लाती हैं वह जमीन वन विभाग की है. महिलाओं का कहना है कि वन कर्मचारियों द्वारा आए दिन उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और उनको भगा दिया जाता है. महिलाएं प्लास्टिक, लोहा, कागज बिनकर कबाड़ियों को बेच कर परिवार का गुजर बसर करती हैं.

पढ़ेंः 8 मार्च : एक शताब्दी से ज्यादा पुरानी हुई महिला दिवस मनाने की परंपरा

'क्या होता है यह महिला दिवस'?

इसी अभाव में जब इन महिलाओं से महिला दिवस के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा, 'क्या होता है यह महिला दिवस'. उन्होंने कहा, कि हम तो सिर्फ इस कचरे के ढेर में से कचरा बिनकर अपने बच्चों का लालन-पालन करते है. साथ ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी जरूरी है. जिसके लिए हमें सरकारी योजना का आज तक कोई फायदा नहीं मिला. उनका कहना था, कि जहां पर पहले हम झोपड़ी बनाकर रहते थे उसे भी हटा दिया गया.

इन महिलाओं का कहना है, कि हम लोगों को आश्वासन दिया गया कि दूसरी जगह रहने के लिए उन्हें जगह मुहैया करवाई जाएगी, जो अभी तक नहीं हुई. इन महिलाओं का कहना है, कि नगर निगम वाले हमें परेशान करते है. खैर, महिला दिवस पर सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. मगर जो दावे कर रहे हैं उन्होंने कभी भी शायद इन महिलाओं की सुध नहीं ली. जरुरत है इन महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की, तभी जाकर महिला दिवस की सार्थकता नजर आएगी.

Last Updated : Mar 16, 2020, 8:35 AM IST
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