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स्पेशल: भुलाहेड़ा माता मंदिर में विराजती हैं सातों बहनें...क्या है विशेषताएं, यहां जानें - Bhulaheda Mata Temple

कोटा के सांगोद उपखंड से करीब 13 किमी दूर स्थित भुलाहेड़ा माता मंदिर में विराजती हैं सातों बहनें. यहां कनेर के पुष्पों से होता है माता का श्रृंगार और क्या है इस मंदिर की खास बात. देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

भुलाहेड़ा माता मंदिर,  Bhulaheda Mata Temple
भुलाहेड़ा माता मंदिर
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Published : Jan 13, 2020, 12:34 PM IST

सांगोद (कोटा). कोटा जिले के सांगोद उपखंड मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर भुलाहेड़ा माता मंदिर स्थित है. इसे चौथ माता मंदिर के नाम से भी जानते हैं. ऐसी मान्यता है, कि विक्रम संवत 1552 फाल्गुन शुक्ल पंचमी, मंगलवार रात 12 बजे सातों बहनें पिंड के रूप में वटवृक्ष फाड़कर यहां प्रकट हुईं.

लोग बताते हैं, कि प्रकट होने से पहले गांव के ही बोहरा नंदराम ब्राह्मण अपनी भैसों को ढूंढने जा रहे थे. लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई, कि भक्त तेरी भैसें घर पहुंच जाएगी. तुम गांव में ही मसानी बावड़ी पर बड़ के पेड़ के नीचे पहुंचो. जब ब्राह्मण वहां पहुंचा तो उसने देखा, कि एक 7-8 साल की कन्या थी, जिसने बताया, कि हम सात बहनें यहीं पर हैं.

यहां विराजती हैं सातों बहनें

इस दौरान सातों बहनों ने ब्राह्मण को ज्योति दर्शन दिए. मंदिर के पुजारी चतुर्भुज नागर ने बताया, कि लोगों के बीच ऐसी मान्यता है, कि गांव के ही दामोदर धाकड़ ऐसे दूसरे व्यक्ति थे, जो वहां पर पहुंचे और माता से बात की. ऐसे में दिनभर कोटा में भक्तों का जमावड़ा लगा रहा. पुजारी बताते हैं, कि माता ने कन्या रूप में दर्शन देकर दरबार के सामने कनेर के पत्ते से दामोदर जी धाकड़ का सर धड़ से अलग कर दिया और 3 दिन तक कपड़े से ढक दिया.

पढ़ें- मकर संक्रांति पर सजे बाजार, पंतगों के साथ-साथ तिल-गुड़ की महक फैली बाजार में

जिसके तीन दिन बाद फिर से माता ने कन्या रूप में दर्शन देकर दामोदर के सर को फिर से जोड़ दिया. ऐसी मान्यता है, कि भुलाहेड़ा माता मंदिर में खुद माता ने भक्तों को यह बताया, कि 364 दिन दामोदर पूजा करेगा और पंचमी के दिन बोहरा नंदराम 1 दिन की महाआरती करेगा और यह क्रम इसी तरह चलेगा. वहीं, जब पिंड प्रकट हुए तो उस समय भाला, शंख, डमरू, एक ताम्र पत्र के अलावा एक देव लिपि वटवृक्ष से निकली, जिसे चट्टी लाल ने हिंदी में अनुवाद करके लिखा.

वहीं, राजा प्रात सिंह हाड़ा ने माता की अखंड ज्योति जलाने के लिए 25 बीघा जमीन भेंट की. साथ ही दामोदर धाकड़ को मुंड कटवाने के लिए 5 बीघा जमीन दी. वहीं कोटा दरबार के हाड़ा किशोर सिंह ने 27 बीघा जमीन माता को सुबह-शाम भोग लगाने के लिए दान की.

बता दें, कि नवरात्रि में पंचमी के दिन रात में 12 बजे कनेर के पुष्पों से माता का श्रृंगार किया जाता है और इस दिन सब लोग महाआरती करते हैं. श्रद्धालुओं की ओर से अखाड़ा निकाल कर माता का जन्मदिन मनाया जाता है. साथ ही इस दिन तलवार की धार काम नहीं करती. कोई भी श्रद्धालु तलवार से खांड बांध ले सकता है और किसी को भी चोट नहीं आती.

सांगोद (कोटा). कोटा जिले के सांगोद उपखंड मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर भुलाहेड़ा माता मंदिर स्थित है. इसे चौथ माता मंदिर के नाम से भी जानते हैं. ऐसी मान्यता है, कि विक्रम संवत 1552 फाल्गुन शुक्ल पंचमी, मंगलवार रात 12 बजे सातों बहनें पिंड के रूप में वटवृक्ष फाड़कर यहां प्रकट हुईं.

लोग बताते हैं, कि प्रकट होने से पहले गांव के ही बोहरा नंदराम ब्राह्मण अपनी भैसों को ढूंढने जा रहे थे. लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई, कि भक्त तेरी भैसें घर पहुंच जाएगी. तुम गांव में ही मसानी बावड़ी पर बड़ के पेड़ के नीचे पहुंचो. जब ब्राह्मण वहां पहुंचा तो उसने देखा, कि एक 7-8 साल की कन्या थी, जिसने बताया, कि हम सात बहनें यहीं पर हैं.

यहां विराजती हैं सातों बहनें

इस दौरान सातों बहनों ने ब्राह्मण को ज्योति दर्शन दिए. मंदिर के पुजारी चतुर्भुज नागर ने बताया, कि लोगों के बीच ऐसी मान्यता है, कि गांव के ही दामोदर धाकड़ ऐसे दूसरे व्यक्ति थे, जो वहां पर पहुंचे और माता से बात की. ऐसे में दिनभर कोटा में भक्तों का जमावड़ा लगा रहा. पुजारी बताते हैं, कि माता ने कन्या रूप में दर्शन देकर दरबार के सामने कनेर के पत्ते से दामोदर जी धाकड़ का सर धड़ से अलग कर दिया और 3 दिन तक कपड़े से ढक दिया.

पढ़ें- मकर संक्रांति पर सजे बाजार, पंतगों के साथ-साथ तिल-गुड़ की महक फैली बाजार में

जिसके तीन दिन बाद फिर से माता ने कन्या रूप में दर्शन देकर दामोदर के सर को फिर से जोड़ दिया. ऐसी मान्यता है, कि भुलाहेड़ा माता मंदिर में खुद माता ने भक्तों को यह बताया, कि 364 दिन दामोदर पूजा करेगा और पंचमी के दिन बोहरा नंदराम 1 दिन की महाआरती करेगा और यह क्रम इसी तरह चलेगा. वहीं, जब पिंड प्रकट हुए तो उस समय भाला, शंख, डमरू, एक ताम्र पत्र के अलावा एक देव लिपि वटवृक्ष से निकली, जिसे चट्टी लाल ने हिंदी में अनुवाद करके लिखा.

वहीं, राजा प्रात सिंह हाड़ा ने माता की अखंड ज्योति जलाने के लिए 25 बीघा जमीन भेंट की. साथ ही दामोदर धाकड़ को मुंड कटवाने के लिए 5 बीघा जमीन दी. वहीं कोटा दरबार के हाड़ा किशोर सिंह ने 27 बीघा जमीन माता को सुबह-शाम भोग लगाने के लिए दान की.

बता दें, कि नवरात्रि में पंचमी के दिन रात में 12 बजे कनेर के पुष्पों से माता का श्रृंगार किया जाता है और इस दिन सब लोग महाआरती करते हैं. श्रद्धालुओं की ओर से अखाड़ा निकाल कर माता का जन्मदिन मनाया जाता है. साथ ही इस दिन तलवार की धार काम नहीं करती. कोई भी श्रद्धालु तलवार से खांड बांध ले सकता है और किसी को भी चोट नहीं आती.

Intro:Body:सांगोद(कोटा)
मोतीलाल सुमन
स्पेशल स्टोरी
भुलाहेड़ा माता मंदिर

सांगोद उपखण्ड मुख्यालय से करीबन 13 किलोमीटर दूर है भुलाहेड़ा माता मंदिर ।आज आपको बताते है माता के दरबार की विशेषताएं।
विक्रम संवत 1552 फाल्गुन शुद्धी पंचमी वार मंगलवार रात 12:00 बजे सातों बहने पिंड के रूप में वटवृक्ष फाड़कर प्रकट हुई प्रकट होने से पहले गांव के ही बोहरा नंदराम ब्राह्मण अपनी भैसो को ढूंढने जा रहे थे उसी समय आकाशवाणी हुई कि भक्त तेरी भैसे घर पहुंच जाएगी तुम गांव में ही मसानी बावड़ी पर बड़ के पेड़ के नीचे पहुंच वहां जाकर देखा तो एक 7 - 8 साल की कन्या उनको मिली कन्या ने कहा हम सात बहने यहीं पर है साथ ही सभी ने ज्योति दर्शन दिए और इस बात का गांव वालों को पता लगा तो सभी ग्रामवासी दौड़कर बावड़ी के पास पहुंचे उस समय दामोदर जी धाकड़ दूसरे नंबर पर वहां पहुंचे माता ने उनसे बात की उसी दिन कोटा दरबार भी यहां पहुंचे वह भी यह बात सुनकर माता के दर्शन के लिए क्षेत्र वासियों के बीच में दरबार लगाकर बैठ गए माता रानी ने कन्या रूप में दर्शन देकर दरबार के सामने कनेर के पत्ते से दामोदर जी धाकड़ का सर धड़ अलग कर दिया और 3 दिन तक कपड़े से ढक दिया
माता ने अपने बताए हुए समय के अनुसार 3 दिन बाद कन्या के रूप में दर्शन देकर दामोदर धाकड़ का सर व धड़ को अंजली का जल छिड़क कर जोड़ दिया और जिंदा कर दिया ग्रामवासियों ने माता के जयकारे लगाए और शक्ति चमत्कार को देख कर माता की बात सभी ने ध्यान से सुनी माता रानी ने कहा कि फाल्गुन शुद्धी पंचमी मंगलवार मध्यरात्रि 12:00 बजे हम सातों बहनों वटवृक्ष से पिंडी रूप में प्रकट होंगे व 364 दिन दामोदर चौहान बड़ोदिया गोत्र हमारी सेवा पूजा करेगा और पंचमी के दिन बौहरा नंदराम ब्राह्मण 1 दिन की महाआरती 12:00 बजे करेगा यह क्रम इसी प्रकार चलेगा पिंड प्रकट हुए उस समय एक भाला एक शंख एक डमरु एक ताम पत्र जो देव लिपि देसी भाषा में लिखा हुआ था वटवृक्ष में से निकले जिसको चट्टी लाल जी ब्राह्मण बोरा जी ने हिंदी में अनुवाद करके लिखा

यह ताम पत्र पर माता रानी को खुश करने के लिए मंत्र लिखे हुए थे कोटा दरबार ने उसी समय इस जगह पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवा दिया और अपनी जागीर की जमीन में से 25 बीघा जमीन अखंड ज्योति जलाने के लिए माता रानी को मंदिर पर भेंट की गई तथा हाड़ा किशोर सिंह ने 27 बीघा जमीन माता रानी के सुबह-शाम भोग लगाने के लिए जमीन दान की राजा प्रात सिंह हाड़ा ने दामोदर धाकड़ को मुंड कटवाने के लिए 5 बीघा जमीन मुंड कटी के लिए पुजारी दामोदर धाकड़ को इनाम बतौर दिया माता रानी का जन्मदिन आज भी लोग ग्रामवासी व क्षेत्र वासी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं नवरात्रि में पंचमी के दिन रात्रि में 12:00 बजे कनेर के पुष्पों से माता का श्रृंगार किया जाता है और इस दिन पूरा परिवार खानदान के लोग भी महाआरती करते हैं वह गांव के पांच आदमी जन्म दिवस मनाने के लिए माता से अपने सर पर कनेर के पत्तों से एक पुष्प चुनकर माता से विनती करते हैं जश गाते बजाते हैं और वह पुष्प नीचे पाल पर निर्धारित स्थान पर आने के बाद अखाड़ा निकाल कर माता का जन्मदिन मनाते हैं इस दिन तलवार की धार काम नहीं करती कोई भी श्रद्धालु तलवार से खांड बांध ले सकता है माता के हुकुम के अनुसार किसी को तेजधार से भी चोट नहीं आ सकती माता के प्रकट पर से अब तक किसी भी दुख व परेशानी को दूर करने के लिए हर सोमवार को रात्रि 11:00 बजे उपाधि धारण की जाती है वह माताजी पाती देने के बाद माता अपने शीशे कनेर का पुष्प जो उस दुखी आदमी के द्वारा चुना गया पुष्प निर्धारित स्थान पर गिरने से दुखी आदमी की मनोकामना पूर्ण हो जाती है

बाईट चतुर्भुज नागर मंदिर पुजारी
बाईट रामप्रसाद नागर श्रद्धालु
बाईट कृष्णमुरारी जोशी श्रद्धालु
बाईट शिवराज मेहरा मंदिर ट्रस्ट सचिवConclusion:
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