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'उज्जवला' के बाद भी 'चूल्हा' जलाने को मजबूर हैं कोटा शहर के ये लोग

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाओं की पीड़ा को समझते हुए उज्ज्वला योजना लागू कर घर-घर निशुल्क गैस सिलेंडर पहुंचाने का दावा तो. लेकिन उनका यह दावा हकीकत से कहीं दूर नजर आ रहा है.

चूल्हा जलाते कोटा के लोग
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Published : Feb 19, 2019, 8:46 PM IST

कोटा. शाम का धुंधलका छाने लगा है. ऐसे में कच्चे घरों से निकलती धुंए की लकीरे कभी सीधे आसमान की ओर उठती है, तो बीच-बीच में सर्द हवा के झोंके के साथ धुंए की लकीरें भी आकाश में विलीन हो जाती है. यह किताबों में पड़े किस्से कहानियों के ग्रामीण परिदृश्य की याद ताजा कर देगा. लेकिन वास्तव में जिस जगह कि हम बात कर रहे हैं वह ग्रामीण नहीं बल्कि शिक्षा नगरी कोटा शहर का ही एक हिस्सा है.

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यह हिस्सा कोटा नगर निगम की सीमा में आने वाले वार्ड-11 का है. रंगपुर रोड स्थित नया भदान और इसके आसपास के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां यह दृश्य प्रतिदिन सुबह और शाम को दिखाई देते हैं. जब शहरी इलाके की महिलाओं की यह स्थिति है. तो सुदूर ग्रामीण इलाके की महिलाओं की दुर्दशा के बारे में तो कल्पना भी नहीं की जा सकती.

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाओं की पीड़ा को समझते हुए उज्ज्वला योजना लागू कर घर-घर निशुल्क गैस सिलेंडर पहुंचाने का दावा तो. लेकिन उनका यह दावा हकीकत से कहीं दूर नजर आ रहा है. उज्वला योजना लागू होने के बावजूद अभी भी हालात यह हैं कि शहरी क्षेत्र में ही कई घर ऐसे हैं जहां आज भी ना तो रसोई गैस है और ना ही योजना का कोई लाभ उनतक पहुंच पा रहा है.

अधिकतर घरों में चूल्हों पर ही खाना बनाया जा रहा है. चूल्हे पर निर्भरता के कारणों की बात करें तो गैस सिलेंडर महंगे होने का ही असर जान पड़ता है. ऐसा नहीं है कि लोगों के घरों में रसोई गैस सिलेंडर मुहैया नहीं हो पा रहे, कई घरों में रसोई गैस की सुविधा होने के बाद भी वह उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. घरों में गैस सिलेंडर नहीं होने और गैस महंगी होने से उज्ज्वला योजना का लाभ लोगों को पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है.

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क्या है उज्जवला योजना
केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) से कमजोर वर्ग के परिवारों खासकर महिलाओं को जो साल 2011 की जनगणना के हिसाब से बीपीएल कैटेगरी में आते हैं, उन्हें गैस कनेक्शन मुफ्त में दिया जाता है. सरकार ने इस योजना को 8 करोड़ लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था.

इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाके में खाना पकाने के लिए परंपरागत रूप से लकड़ी और गोबर के उपले का इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाले धुएं का खराब असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है. धुएं के असर से मुक्ति दिलाने के लिए इस योजना को लागू किया गया था. लेकिन आज भी कई तबके और लोग इस योजना से अछूते हैं.

कोटा. शाम का धुंधलका छाने लगा है. ऐसे में कच्चे घरों से निकलती धुंए की लकीरे कभी सीधे आसमान की ओर उठती है, तो बीच-बीच में सर्द हवा के झोंके के साथ धुंए की लकीरें भी आकाश में विलीन हो जाती है. यह किताबों में पड़े किस्से कहानियों के ग्रामीण परिदृश्य की याद ताजा कर देगा. लेकिन वास्तव में जिस जगह कि हम बात कर रहे हैं वह ग्रामीण नहीं बल्कि शिक्षा नगरी कोटा शहर का ही एक हिस्सा है.

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यह हिस्सा कोटा नगर निगम की सीमा में आने वाले वार्ड-11 का है. रंगपुर रोड स्थित नया भदान और इसके आसपास के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां यह दृश्य प्रतिदिन सुबह और शाम को दिखाई देते हैं. जब शहरी इलाके की महिलाओं की यह स्थिति है. तो सुदूर ग्रामीण इलाके की महिलाओं की दुर्दशा के बारे में तो कल्पना भी नहीं की जा सकती.

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाओं की पीड़ा को समझते हुए उज्ज्वला योजना लागू कर घर-घर निशुल्क गैस सिलेंडर पहुंचाने का दावा तो. लेकिन उनका यह दावा हकीकत से कहीं दूर नजर आ रहा है. उज्वला योजना लागू होने के बावजूद अभी भी हालात यह हैं कि शहरी क्षेत्र में ही कई घर ऐसे हैं जहां आज भी ना तो रसोई गैस है और ना ही योजना का कोई लाभ उनतक पहुंच पा रहा है.

अधिकतर घरों में चूल्हों पर ही खाना बनाया जा रहा है. चूल्हे पर निर्भरता के कारणों की बात करें तो गैस सिलेंडर महंगे होने का ही असर जान पड़ता है. ऐसा नहीं है कि लोगों के घरों में रसोई गैस सिलेंडर मुहैया नहीं हो पा रहे, कई घरों में रसोई गैस की सुविधा होने के बाद भी वह उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. घरों में गैस सिलेंडर नहीं होने और गैस महंगी होने से उज्ज्वला योजना का लाभ लोगों को पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है.

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क्या है उज्जवला योजना
केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) से कमजोर वर्ग के परिवारों खासकर महिलाओं को जो साल 2011 की जनगणना के हिसाब से बीपीएल कैटेगरी में आते हैं, उन्हें गैस कनेक्शन मुफ्त में दिया जाता है. सरकार ने इस योजना को 8 करोड़ लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था.

इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाके में खाना पकाने के लिए परंपरागत रूप से लकड़ी और गोबर के उपले का इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाले धुएं का खराब असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है. धुएं के असर से मुक्ति दिलाने के लिए इस योजना को लागू किया गया था. लेकिन आज भी कई तबके और लोग इस योजना से अछूते हैं.

Intro:कोटा. शाम का धुंधलका छाने लगा है ।ऐसे में कच्चे घरों से निकलती धुंए की लकीरे कभी सीधे आसमान की ओर उठती है, तो बीच-बीच में सर्द हवा के झोंके के साथ धुंए की लकीरें भी आकाश में विलीन हो जाती है। यह किताबों में पड़े किस्से कहानियों के ग्रामीण परिदृश्य की याद ताजा कर देगा। लेकिन वास्तव में जिस जगह कि हम बात कर रहे हैं वह ग्रामीण नहीं बल्कि शिक्षा नगरी कोटा शहर का ही एक हिस्सा है ।वह भी नगर निगम की सीमा में स्थित वार्ड 11। रंगपुर रोड स्थित नया भदान और इसके आसपास के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां यह दृश्य प्रतिदिन सुबह और शाम को दिखाई देते हैं। जब शहरी इलाके की महिलाओं की यह स्थिति है। तो सुदूर ग्रामीण इलाके की महिलाओं की दुर्दशा के बारे में तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।


Body:प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाओं की पीड़ा को समझते हुए उज्ज्वला योजना लागू कर घर-घर निशुल्क गैस सिलेंडर पहुंचाने का दावा तो किया । लेकिन हकीकत इससे कहीं दूर नजर आ रही है। उज्वला योजना लागू होने के बावजूद अभी भी हालात यह है कि शहरी क्षेत्र में ही कई घर ऐसे हैं जहां आज भी ना तो रसोई गैस है और ना ही उसका उपयोग हो रहा है। अधिकतर घरों में चूल्हों पर ही खाना बनाया जा रहा है । गैस सिलेंडर महंगे होने का ही असर है कि कई घरों में रसोई गैस की सुविधा होने के बाद भी वह उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं ।


Conclusion:घरों में गैस सिलेंडर नहीं होने और गैस महंगी होने से उज्ज्वला योजना का लाभ लोगों को पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है
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