कोटा. जिले में कोरोना कहर बरपा रहा है और मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा होने से अब कोविड अस्पताल भी फुल हो चुके हैं. जिससे वहां की व्यवस्था चरमरा गई है. मरीजों के साथ अब उनके परिजन भी परेशान हो रहे हैं. वहीं, मेडिकल कॉलेज के व्यवस्था में भारी लापरवाही देखी जा रही है.
जिले में कोविड-19 का कहर लगातार जारी है. जिसके चलते कोटा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बने कोविड-19 वार्ड पूरी तरह भर चुके हैं. वहीं, प्रशासन ने अब कोरोना संक्रमितों को होम क्वॉरेंटाइन करना शुरू कर दिया है. जिसमें भी कई मरीजों तक दवाइयां नहीं पहुंच रही हैं. मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इन दिनों अंदर और बाहर मरीज और तीमारदारों की भीड़ देखी जा सकती है.
बता दें कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोटा, बूंदी, बारां के कोविड-19 मरीज भी भर्ती हैं. जिनके साथ आए तीमारदारों का कहना है कि अंदर मरीज परेशान हो रहे हैं. उन्हें समय पर दवाइयां नहीं मिल पा रही है, कोई देखने वाला नहीं है. मरीजों के परिजनों का कहना है कि हमें साथ नहीं रहने देते. ऑक्सीजन समय पर मरीजों को नहीं चढ़ाई जाती है.
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बूंदी जिले से आए एक मरीज के परिजनों ने अस्पताल-प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि मरीज को ऑक्सीजन समय पर नहीं चढ़ाई जाती है. तीन दिनों से परेशान हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमने वार्ड बदलने की भी बात कही लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता और बाहर निकाल देते हैं.
कोविड मरीजों को भर्ती करने में लगता है घंटों समय...
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के वरिष्ठ नागरिक ब्लॉक को कोविड जांच के लिए पर्चे बनाकर भर्ती किया जाता है, जहां पर भी मरीज और तीमारदारों को घंटों इंतजार करना पड़ता है. कई मरीज तो इमरजेंसी में आते हैं, जिनको ऑक्सीजन एम्बुलेंस में दी जाती है.
जगह-जगह पड़े रहते हैं पीपीई किट मास्क और गलव्स...
वहीं, कोटा मेडिकल कॉलेज अस्पताल परिसर में लापरवाही भी देखने को मिल रही है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल परिसर में इधर-उधर उपयोग किया हुआ. पीपीई किट और मास्क इधर-उधर पड़े रहते हैं. जिससे संक्रमण के रुकने की जगह फैलने की आशंका बनी रहती है.
कोविड मरीज को लेकर आए परिजनों का कहना है कि कोविड आने के बाद एम्बुलेंस से यहां लेकर आए, जहां पर मरीज को स्ट्रेचर पर लिटाकर चारों ओर घूमते रहे लेकिन किसी ने मदद नहीं की. उन्होंने कहा कि यहां के स्टाफ बिल्कुल काम नहीं करते हैं. वह किसी की नहीं सुनते है. वहीं बदतमीजी से पेश आते हैं. साथ ही एडमिट करने तक एम्बुलेंस में घंटों बैठे रहते हैं. दूसरी तरफ मरीज के परिजन खुले में बैठने को मजबूर हैं.