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Special : कोरोना हुआ 'बेठिकाना'...कैसे बने आशियाना

कोटा शहर में लॉकडाउन खुलने के बाद से भवन निर्माण कराना महंगा हो गया है. बिल्डिंग मैटेरियल के दाम बढ़ गए हैं. बजरी के भाव आसमान छू रहे हैं. इसके साथ ही सीमेंट, गिट्टी, मिट्टी, सेनेट्री, पत्थर, ईंट, लोहा, फर्नीचर और इलैक्ट्रिक मैटेरियल के दाम आसमान छू रहे हैं. सस्ती लेबर का मिलना तक मुश्किल हो रहा है. लिहाजा कोटा में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम लगभग ठप पड़ा है.

Corona Epidemic 2020, Education city kota problems, Building Materials in Kota, Hadhuti employment crisis, kota industries
कोटा में भवन निर्माण का काम पड़ा है ठप
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Published : Nov 27, 2020, 6:22 PM IST

कोटा. कोरोना महामारी के बाद कच्चे माल और लेबर के दाम बढ़ने का असर भवन निर्माण पर दिखाई दे रहा है. सीमेंट के दाम भी बढ़ गए हैं. लोगों को अपना घर बनाने में भी अब ज्यादा लागत देनी पड़ रही है. दूसरी तरफ लॉकडाउन के बाद बड़ी तादाद में जो लेबर यहां से मूव कर गया था, उसकी कमी भी अब नजर आ रही है. अनुभवी कामगार नहीं होने के चलते मकान निर्माण में ज्यादा श्रमिक लगाने पड़ रहे हैं.

कोटा में भवन निर्माण कार्य की मुश्किलें

मकान निर्माण के दौरान बिल्डर जहां पर पूरे मकान का ठेका लेता था. उसकी दरें कोटा शहर में लॉकडाउन से पहले 1250 से 1300 रु. स्क्वायर फीट चल रही थीं. लेकिन अब इस रेट में भी 150 से 200 रुपए की बढ़ोतरी हुई है.

ठेकेदारों का कहना है कि उनको निर्माण सामग्री के ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं. साथ ही लेबर की दरें भी बढ़ गई हैं. कोटा के व्यापारियों का यह भी मानना है कि कोटा कोचिंग नगरी है. यहां देश भर से बच्चे पढ़ने आते हैं. लेकिन बीते 9 महीने से कोचिंग संस्थान बंद पड़े हैं. इसके चलते किराए के रूप में होने वाली आमदनी खत्म हो गई है. नए हॉस्टल्स का निर्माण भी नहीं हो रहा है.

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कोटा में नहीं मिल रहे कुशल कारीगर मजदूर

एक्सपर्ट कारीगर नहीं होने से हो रही समस्या

कई ठेकेदार और भवन निर्माण से जुडे़ लोगों का मानना है कि एक्सपर्ट कारीगर और लेबर अपने गृह राज्यों और जिलों की तरफ पलायन कर गई. इसके चलते अब एक्सपर्ट कारीगर नहीं मिलते, जो लोग अभी काम कर रहे हैं वे कम अनुभवी हैं.

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रेत की कीमतें आसमान पर

रेत 3 गुना महंगी, बड़ी मुश्किल से आ रही

बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में सबसे महत्वपूर्ण बजरी यानी रेत होती है. रेत काफी मुश्किल से मिल पा रही है. सरकार ने रेत के खनन पर रोक लगाई हुई है. ऐसे में वैध रेत बहुत कम उपलब्ध हो पा रही है. रेत की ट्रॉली जो 15 हजार में मिल जाया करती थी, अब उसकी कीमत 60 हजार पहुंच गई है.

पढ़ें - मजदूर पिता के बेटे-बेटी ने छू लिया आसमां, हासिल किया ये खास मुकाम

बढ़े दाम से सभी चिंतित, आर्थिक पैकेज की आवश्यकता

कोटा के प्राइवेट बिल्डर वीरेंद्र जैन का कहना है कि सीमेंट के साथ सभी निर्माण सामग्री की कंपनियां मनमाने दाम बढ़ा रही हैं. स्टील के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं. इसके अलावा लेबर भी बाहर से नहीं आ पा रही है. रेत, गिट्टी, सेंड, लोहा, सेनेटरी और इलेक्ट्रिकल आइटम भी काफी महंगे हैं. इसमें सब में 10 से 15 रुपए दाम बढ़ रहे हैं. इस समय कोई भी ग्राहक अपने मकान का निर्माण नहीं करवाना चाहता है और कोई ग्राहक तैयार भी होता है तो उन्हें बढ़े हुए दाम से समस्या होती है. सरकार को इस समस्या का हल करने के लिए एक रेगुलेटरी सिस्टम बैठाना चाहिए. साथ ही इस पूरे बिल्डिंग निर्माण को पैकेज की भी आवश्यकता है.

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कुछ महीनों के अंतराल में बढ़े सीमेंट के दाम

सीमेंट की सेल गिरी, आधी से भी कम

बिल्डिंग मैटेरियल सप्लायर विकास कुमार का कहना है कि उनकी सेल पहले से बहुत कम रह गई है. जहां पहले वे सीमेंट के चालीस कट्टे आसानी से बेच लिया करते थे, वह संख्या अब बमुश्किल 15 रह गई है. सीमेंट के दाम लॉकडाउन से पहले 260 से 270 रुपए प्रति कट्टा थे, वे बढ़कर 330 से 350 के बीच हो गए हैं.

कुल मिलाकर आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को बिल्डिंग निर्माण और बिल्डिंग सामग्री से जुड़े लोगों की समस्याओं की तरफ ध्यान देना होगा. क्योंकि यही सेक्टर है जो बड़ी तादाद में बेरोजगार मजदूरों वर्ग को दो वक्त की रोटी मुहैया कराता है.

कोटा. कोरोना महामारी के बाद कच्चे माल और लेबर के दाम बढ़ने का असर भवन निर्माण पर दिखाई दे रहा है. सीमेंट के दाम भी बढ़ गए हैं. लोगों को अपना घर बनाने में भी अब ज्यादा लागत देनी पड़ रही है. दूसरी तरफ लॉकडाउन के बाद बड़ी तादाद में जो लेबर यहां से मूव कर गया था, उसकी कमी भी अब नजर आ रही है. अनुभवी कामगार नहीं होने के चलते मकान निर्माण में ज्यादा श्रमिक लगाने पड़ रहे हैं.

कोटा में भवन निर्माण कार्य की मुश्किलें

मकान निर्माण के दौरान बिल्डर जहां पर पूरे मकान का ठेका लेता था. उसकी दरें कोटा शहर में लॉकडाउन से पहले 1250 से 1300 रु. स्क्वायर फीट चल रही थीं. लेकिन अब इस रेट में भी 150 से 200 रुपए की बढ़ोतरी हुई है.

ठेकेदारों का कहना है कि उनको निर्माण सामग्री के ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं. साथ ही लेबर की दरें भी बढ़ गई हैं. कोटा के व्यापारियों का यह भी मानना है कि कोटा कोचिंग नगरी है. यहां देश भर से बच्चे पढ़ने आते हैं. लेकिन बीते 9 महीने से कोचिंग संस्थान बंद पड़े हैं. इसके चलते किराए के रूप में होने वाली आमदनी खत्म हो गई है. नए हॉस्टल्स का निर्माण भी नहीं हो रहा है.

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कोटा में नहीं मिल रहे कुशल कारीगर मजदूर

एक्सपर्ट कारीगर नहीं होने से हो रही समस्या

कई ठेकेदार और भवन निर्माण से जुडे़ लोगों का मानना है कि एक्सपर्ट कारीगर और लेबर अपने गृह राज्यों और जिलों की तरफ पलायन कर गई. इसके चलते अब एक्सपर्ट कारीगर नहीं मिलते, जो लोग अभी काम कर रहे हैं वे कम अनुभवी हैं.

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रेत की कीमतें आसमान पर

रेत 3 गुना महंगी, बड़ी मुश्किल से आ रही

बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में सबसे महत्वपूर्ण बजरी यानी रेत होती है. रेत काफी मुश्किल से मिल पा रही है. सरकार ने रेत के खनन पर रोक लगाई हुई है. ऐसे में वैध रेत बहुत कम उपलब्ध हो पा रही है. रेत की ट्रॉली जो 15 हजार में मिल जाया करती थी, अब उसकी कीमत 60 हजार पहुंच गई है.

पढ़ें - मजदूर पिता के बेटे-बेटी ने छू लिया आसमां, हासिल किया ये खास मुकाम

बढ़े दाम से सभी चिंतित, आर्थिक पैकेज की आवश्यकता

कोटा के प्राइवेट बिल्डर वीरेंद्र जैन का कहना है कि सीमेंट के साथ सभी निर्माण सामग्री की कंपनियां मनमाने दाम बढ़ा रही हैं. स्टील के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं. इसके अलावा लेबर भी बाहर से नहीं आ पा रही है. रेत, गिट्टी, सेंड, लोहा, सेनेटरी और इलेक्ट्रिकल आइटम भी काफी महंगे हैं. इसमें सब में 10 से 15 रुपए दाम बढ़ रहे हैं. इस समय कोई भी ग्राहक अपने मकान का निर्माण नहीं करवाना चाहता है और कोई ग्राहक तैयार भी होता है तो उन्हें बढ़े हुए दाम से समस्या होती है. सरकार को इस समस्या का हल करने के लिए एक रेगुलेटरी सिस्टम बैठाना चाहिए. साथ ही इस पूरे बिल्डिंग निर्माण को पैकेज की भी आवश्यकता है.

Corona Epidemic 2020, Education city kota problems, Building Materials in Kota, Hadhuti employment crisis, kota industries
कुछ महीनों के अंतराल में बढ़े सीमेंट के दाम

सीमेंट की सेल गिरी, आधी से भी कम

बिल्डिंग मैटेरियल सप्लायर विकास कुमार का कहना है कि उनकी सेल पहले से बहुत कम रह गई है. जहां पहले वे सीमेंट के चालीस कट्टे आसानी से बेच लिया करते थे, वह संख्या अब बमुश्किल 15 रह गई है. सीमेंट के दाम लॉकडाउन से पहले 260 से 270 रुपए प्रति कट्टा थे, वे बढ़कर 330 से 350 के बीच हो गए हैं.

कुल मिलाकर आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को बिल्डिंग निर्माण और बिल्डिंग सामग्री से जुड़े लोगों की समस्याओं की तरफ ध्यान देना होगा. क्योंकि यही सेक्टर है जो बड़ी तादाद में बेरोजगार मजदूरों वर्ग को दो वक्त की रोटी मुहैया कराता है.

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