कोटा. जयपुर के रहने वाले अनिल मेहता अपनी पत्नी गीता के साथ भारत भ्रमण को निकले हैं और उनका इरादा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का है. इसी प्रण को लेकर 3 साल 15 दिन यानी 1111 दिन भारत में भ्रमण करेंगे. इसमें उनका लक्ष्य है कि ग्रामीण इलाके में रहेंगे और वह किसी होटल या अन्य जगहों पर नाइट स्टे नहीं करेंगे. इसके लिए उन्होंने अपने वाहन को पूरी तरह से मॉडिफाइड (बदलाव) कर चलता फिरता घर में तब्दील कराया है. जिसे कैरावन कहते हैं. इसी कैरावन से दंपती उत्तराखंड होकर आए हैं.
इसके बाद राजस्थान के जोधपुर और अन्य कई जगहों से होते हुए कोटा पहुंचे हैं. उनकी योजना दिसंबर तक केरल पहुंचने की और वापसी में वह गुजरात होते हुए लेह लद्दाख जाएंगे. इस यात्रा में उनका खाना-पीना, सोना-रहना सब कुछ गाड़ी में ही हो रहा है. कोटा में भी यात्रा के दौरान वे थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पहुंचे थे. अनिल का कहना है कि उनकी पत्नी ने कहा कि वो इस विजिट में उनकी मदद करेगी. वे नहीं आती तो, इस वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए घूमना संभव नहीं हो पाता. सफर के दौरान बातचीत और अन्य काम मेरी पत्नी बाखूबी संभालती है. खाना बनाने से लेकर अन्य काम भी उनकी पत्नी करती है. जरूरत का राशन किसी शहर या अच्छी जगह से खरीद लेते हैं.
गाड़ी बना घर, सोना खाना पीना और रहना भी : अनिल मेहता का कहना है कि वे ग्रामीण एरिया देखने और समझने के लिए यात्रा पर निकले हैं. उनके जयपुर स्थित घर में केवल उनकी पत्नी ही साथ रहती थी. इसलिए पत्नी के साथ ही इस वाहन को लेकर यात्रा पर निकले हैं. अनिल ने तैयार करवाई गई गाड़ी में सोने के लिए बेड से लेकर किचन और टॉयलेट तक की भी सुविधा है. इसके अलावा बिजली सप्लाई के लिए उन्होंने सोलर पैनल छत पर लगवाया हुआ है. जिसके जरिए इनवर्टर और बैटरी जुड़ा हुआ है. ताकि उन्हें जहां भी जरूरत होती है, वे इसका उपयोग करते हैं. इसमें खाना बनाने के लिए भी पूरी व्यवस्था की हुई है. यहां तक कि मिक्सी चलाने से लेकर लैपटॉप, मोबाइल और अन्य उपकरण चार्जिंग की फैसिलिटी भी है. अनिल और उनकी पत्नी गीता इसी में रात्रि निवास करते हैं.
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आर्टिस्ट होने के नाते आदिवासी कल्चर समझना चाहता हूं : अनिल के अनुसार वह भारत के ग्रामीण एरिया को देखने और समझने के लिए पत्नी के साथ यात्रा पर निकले हैं. हम बड़े और मेट्रो शहरों मुंबई और बेंगलुरु में जाने के लिए रूचि नहीं रखते हैं. आदिवासी इलाकों को देखना चाहते हैं, क्योंकि मैं आर्टिस्ट हूं और इसलिए मैं ग्रामीण इलाके को देखना चाहता हूं. हम सब कोशिश करते हैं कि गांव वालों के बीच में ही रुके, क्योंकि बाहर अन्य जगह पर कुछ खतरा हो सकता है. गांव वालों से अनूठा प्रेम भी हमें लगातार मिलता रहा है. ग्रामीण इलाकों में अतिथि देवो भव की कहावत आज भी चरितार्थ है. इसी कारण हमने बीते 70 दिनों में से 30 दिन भी खाना नहीं बनाया है. हमसे मिलकर गांव वालों बहुत खुश हुए और उनके मेहमान बन कर हमें भी काफी प्रसन्नता हुई.
यह है अगले साल तक का प्लान : अनिल के अनुसार जयपुर से 23 अप्रैल को निकले थे. कुछ दिन पहले मैं उत्तराखंड के कुमाऊं में था, वहां अल्मोड़ा के पास गाड़ी ब्रेकडाउन हो गई थी. जिसे दिल्ली में दुरुस्त करवाया. दिल्ली तक टैक्सी से आए थे. इसके बाद राजस्थान में जोधपुर, बुटाटी महाराज, माउंट आबू, रणकपुर, उदयपुर होते हुए कोटा पहुंचे हैं. हम आज यानी 4 जुलाई को कोटा से निकल जाएंगे और अगले 2 दिन बाद हम मध्य प्रदेश पहुंच जाएंगे. जहां पर 28 दिन बिताएंगे. बाद में महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक होते हुए केरल पहुंचेंगे. अगले साल जनवरी में हमारा वापस लौटने की योजना है. जिस दौरान हम गुजरात जाएंगे. जहां रण ऑफ कच्छ, सोमनाथ और आसपास के इलाके को देखेंगे. उसके बाद जोधपुर, जैसलमेर को देखते हुए पंजाब व हरियाणा होते हुए लेह लद्दाख पहुंचेंगे.
थानों से वेरीफाई कराते हैं अपना विजिट : अनिल मेहता का कहना है कि उन्होंने पहले देखा था कि विश्व रिकॉर्ड कितने दिनों का है. इसके बाद ही उन्होंने योजनाएं बनाई. जिसमें 1111 दिन कैरावन में रहकर ही भारत भ्रमण करने की है. अनिल और गीता को विश्व रिकॉर्ड बनाना है. इसके लिए उन्हें सबूत भी एकत्रित करने होंगे. जिसके लिए उन्होंने थानों में हाजिरी लगाकर वेरीफाई करवाने की व्यवस्था बनाई हुई है. उन्होंने लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए अप्लाई कर दिया है. जिसके नियम के अनुसार उन्हें सबूत भी देने होंगे. इसी के चलते हुए कोटा शहर में भी थाने में अपनी कोटा विजिट को वेरीफाई करवाने पहुंचे थे.
बेटियों ने भेजा वाहन, घूमने का खर्चा भी उठा रही है : अनिल और गीता की तीन बेटियां हैं. तीनों विदेश में रहती हैं. ऐसे में उन्हें अपने पिता अनिल के घूमने के शौक का पता था. वर्तमान में अनिल की उम्र 64 वर्ष और उनकी पत्नी गीता की उम्र 57 वर्ष है. इसके बावजूद उन्होंने एक वाहन उनके लिए भेजा. जिसे अनिल ने ही मॉडिफाई करवाया है. इसके अलावा घूमने के दौरान होने वाला खर्च भी उनकी बेटियां ही भेज रही हैं. अनिल का कहना है कि वह 1991 में भारत से नेपाल और भूटान की यात्रा मोटरसाइकिल से कर चुके हैं. साल 2000 में उनका एक्सीडेंट हो गया था, जिसके बाद से उन्हें थोड़ी शारीरिक दिक्कत आने लगी थी. कुछ फीसदी हैंडिकैप्ड हो गए हैं, इसके बावजूद भी भ्रमण पर निकले हैं.