ETV Bharat / state

मिट्टी के दीयों पर चाइनीज लाइटों के कारोबार व महंगाई की मार - करौली कुम्हारों की खबर

दिवाली का अर्थ है दीपों की माला, लेकिन आधुनिक युग में इसके शाब्दिक अर्थ तो हैं पर त्यौहारों में दीपक कम नजर आते हैं. दीपावली के दिन भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने पर दीए जलाए गए थे. तभी से लोग दिवाली में दीये जलाते हैं और भगवान के अयोध्या आगमन की खुशियां मनाते हैं. दीये जलाने की यह परपंरा तो आज भी कायम है. लेकिन अब मिट्टी के दिए कम और चाइनीज दिए का उपयोग बढ़ने लगा है. आधुनिक युग में चाइनीज लाइटों के आगे मिट्टी के ये दिए फीके पड़ने लगे हैं. लेकिन कुंभकार समाज के दृढ़ संकल्प के चलते यह परंपरा आज भी जिंदा है.

karauli news
karauli news
author img

By

Published : Oct 27, 2019, 11:00 AM IST

Updated : Sep 30, 2022, 10:32 AM IST

करौली. समय के साथ बदलते इस समाज में मिट्टी के दीपकों की मांग कम हो चुकी है, लेकिन आज भी इनका प्रचलन बाजार में देखा जा सकता है और वह भी इन कुम्हारों की बदौलत. कुंभकार वर्षों से चली आ रही परंपरा को जिंदा रखने के लिए लगन और कड़ी मेहनत से इसमें जुटे हुए हैं.

कुंभकारों ने बताया कि आज से 15 साल पहले उनके हाथों से बिकने वाले दीपक दूर-दूर तक प्रसिद्द थे. लेकिन बदलते समय के साथ बाजार में कम मूल्यों पर इलेक्ट्रॅानिक, चाईनीज लाईटें और दीपक आ गए है. जो आजकल की पीढ़ी को काफी लुभा रहे हैं. चाईना से कम मूल्यों पर आने वाले दीपक लोगों को बहुत भा रहे है. जिससे दीपावली पर मिट्टी से बने दीपकों को उपयोग में लेने की पुरानी परंपरा खत्म सी होने लगी है. इसके साथ ही कुंभकारों ने कहा कि वे इस परंपरा को इतनी आसानी से खत्म नहीं होने देंगे.

पढ़ें- चूरू के मूक-बधिर बच्चे बेच रहे डिजाइनर दीपक, दे रहे संदेश - मिट्टी के दीये जलाएं, पर्यावरण संरक्षण के लिए आप भी आगे आएं

मिट्टी के दीपक बनाने के लिए ये कुम्हार गणेश चतुर्थी के तीन दिन बाद से ही जुट जाते है. फिर शुरू होता है मिट्टी के राजा कुम्हार के हाथ से निकलने वाले दीपकों का जादू. मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हार पूरे शहर और आसपास के इलाकों में मिट्टी के दीपको को सिर पर ढोकर बेचने जाते है. जिससे की पुरानी परंपरा बनी रहे.

  • कुंभकारों ने बताया कि दीये बनाने के लिए चिकनी मिट्टी 5 से 8 हजार से रुपए तक की आती है.
  • 200-300 रुपए मजदूर फैक्ट्री पर लाने के ले लेता है. फिर हम मिट्टी को छानते है.
  • उसके बाद मिट्टी को भिगोकर मशीन में रखते है. इसके बाद कहीं जाकर हाथों से ये दीये तैयार होते हैं.
  • दीपक तैयार हो जाने के बाद गीला रहता है. जिसे कड़ी धूप में सुखाया जाता है.
  • धूप में रखने के बाद जब दीपक हल्के से सूख जाते है. तब बदन को जलाने वाली भट्टी के आगे बैठकर उन्हें पकाया जाता है.
  • इस पूरी प्रकिया के बाद दीपक तैयार होता है. इतनी मेहनत करने के बाद यह दीपक बाजार मे 40-50 रुपए सैकड़ा के भाव से बिकता है.

पढें- सरदारशहर से शक्ति मंच व ऑटो रिक्शा यूनियन का चाइना को जवाब; हमारी दीपावली मिट्टी के दीयों से ही होगी रोशन, इसलिए सवा दो लाख दीपक निशुल्क बांटे

अपनी भारतीय परंपराओं को बचाने के लिए कुंभकार बहुत मेहनत करते हैं. इनमें से कुछ तो कर्ज से पैसा लेकर दीये बनाते हैं. लेकिन चाइनीज लाइटों और रोशनी की चका-चौंध में इन दीयों की रोशनी कहीं फीकी सी पड़ती जा रही है. ऐसे में अब हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम इनके बनाए दीयों को खरीदें. ताकि इन कुंभकारों के घरों में भी रोशनी हो सके.

चाइनीज लाइटों का नहीं, मिट्टी के दीये का करें इस्तेमाल
कुम्हारों के घरों में भी होगा उजाला , जन-जन होगा खुशहाल

करौली. समय के साथ बदलते इस समाज में मिट्टी के दीपकों की मांग कम हो चुकी है, लेकिन आज भी इनका प्रचलन बाजार में देखा जा सकता है और वह भी इन कुम्हारों की बदौलत. कुंभकार वर्षों से चली आ रही परंपरा को जिंदा रखने के लिए लगन और कड़ी मेहनत से इसमें जुटे हुए हैं.

कुंभकारों ने बताया कि आज से 15 साल पहले उनके हाथों से बिकने वाले दीपक दूर-दूर तक प्रसिद्द थे. लेकिन बदलते समय के साथ बाजार में कम मूल्यों पर इलेक्ट्रॅानिक, चाईनीज लाईटें और दीपक आ गए है. जो आजकल की पीढ़ी को काफी लुभा रहे हैं. चाईना से कम मूल्यों पर आने वाले दीपक लोगों को बहुत भा रहे है. जिससे दीपावली पर मिट्टी से बने दीपकों को उपयोग में लेने की पुरानी परंपरा खत्म सी होने लगी है. इसके साथ ही कुंभकारों ने कहा कि वे इस परंपरा को इतनी आसानी से खत्म नहीं होने देंगे.

पढ़ें- चूरू के मूक-बधिर बच्चे बेच रहे डिजाइनर दीपक, दे रहे संदेश - मिट्टी के दीये जलाएं, पर्यावरण संरक्षण के लिए आप भी आगे आएं

मिट्टी के दीपक बनाने के लिए ये कुम्हार गणेश चतुर्थी के तीन दिन बाद से ही जुट जाते है. फिर शुरू होता है मिट्टी के राजा कुम्हार के हाथ से निकलने वाले दीपकों का जादू. मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हार पूरे शहर और आसपास के इलाकों में मिट्टी के दीपको को सिर पर ढोकर बेचने जाते है. जिससे की पुरानी परंपरा बनी रहे.

  • कुंभकारों ने बताया कि दीये बनाने के लिए चिकनी मिट्टी 5 से 8 हजार से रुपए तक की आती है.
  • 200-300 रुपए मजदूर फैक्ट्री पर लाने के ले लेता है. फिर हम मिट्टी को छानते है.
  • उसके बाद मिट्टी को भिगोकर मशीन में रखते है. इसके बाद कहीं जाकर हाथों से ये दीये तैयार होते हैं.
  • दीपक तैयार हो जाने के बाद गीला रहता है. जिसे कड़ी धूप में सुखाया जाता है.
  • धूप में रखने के बाद जब दीपक हल्के से सूख जाते है. तब बदन को जलाने वाली भट्टी के आगे बैठकर उन्हें पकाया जाता है.
  • इस पूरी प्रकिया के बाद दीपक तैयार होता है. इतनी मेहनत करने के बाद यह दीपक बाजार मे 40-50 रुपए सैकड़ा के भाव से बिकता है.

पढें- सरदारशहर से शक्ति मंच व ऑटो रिक्शा यूनियन का चाइना को जवाब; हमारी दीपावली मिट्टी के दीयों से ही होगी रोशन, इसलिए सवा दो लाख दीपक निशुल्क बांटे

अपनी भारतीय परंपराओं को बचाने के लिए कुंभकार बहुत मेहनत करते हैं. इनमें से कुछ तो कर्ज से पैसा लेकर दीये बनाते हैं. लेकिन चाइनीज लाइटों और रोशनी की चका-चौंध में इन दीयों की रोशनी कहीं फीकी सी पड़ती जा रही है. ऐसे में अब हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम इनके बनाए दीयों को खरीदें. ताकि इन कुंभकारों के घरों में भी रोशनी हो सके.

चाइनीज लाइटों का नहीं, मिट्टी के दीये का करें इस्तेमाल
कुम्हारों के घरों में भी होगा उजाला , जन-जन होगा खुशहाल

Last Updated : Sep 30, 2022, 10:32 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.