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लॉकडाउन 4.0ः बेरोजगार मजदूर दो जून की रोटी के लिए बेच रही सब्जी

'क्या करें साहब! पापी पेट का सवाल है, अपने और अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए कुछ तो करना पड़ेगा.' ऐसा कहना है उन मजबूर मजदूरों का, जिनका इस लॉकडाउन में काम-धंधा ही छिन गया है और उनके पास जीवन-यापन करने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा है. दरअसल, कोरोना के फैलते संक्रमण के बीच हुए लॉकडाउन से देश के लगभग सभी काम-धंधे बंद पड़े हैं, इससे रोज कमाकर अपने और अपने परिवार का पेट भरने वाले उन मजदूरों पर संकट आन पड़ी है, जिससे वे अब फल और सब्जी की दुकान लगाने को मजबूर हो गए.

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मजबूरी के चलते सब्जी बेचने को मजबूर लोग
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Published : May 19, 2020, 8:24 PM IST

करौली. देश में कोरोना की ऐसी मार पड़ी कि रोज कमाकर खाने वाले लोग अब बेबस और लाचार हो गए हैं. ऐसे में वो करें तो आखिर क्या? वहीं, अपना जीवन-यापन करने के लिए अब उन लोगों ने अपना व्यवसाय और कारोबार छोड़कर सब्जियां बेचना शुरू कर दिए हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ ऐसे लोगों से उनके स्थिति और व्यवसाय बदलने के स्पष्ट कारणों को जाना है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए खुद को कमजोर होने नहीं दिया.

मजबूरी के चलते सब्जी बेचने को मजबूर लोग

इस दौरान, लॉकडाउन के बीच विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए व्यवसाय बदलकर लगभग 50 दिनों में खुद की आर्थिक स्थिति सुधारने वाले कुछ लोगों से ईटीवी भारत ने उनका हाल जानने की कोशिश की. उन लोगों का कहना है कि उन्हें अपना जीवन-यापन शुरू करने और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा. ऐसे में उन्हें अपनी वर्तमान स्थिति में सुधार लाने के लिए पहले से करते आ रहे व्यवसायिक कार्यों को बंद हो जाने के कारण धंधा बदलना पड़ा.

कोरोना महामारी से आया संकट तो मिठाई की दुकान बंद कर बेचने लगे सब्जी

पूर्व में मिठाई की दुकान चलाने वाले ग्राम पंचायत बुकना निवासी बबलू प्रजापत बताते हैं कि उनकी मिठाई की दुकान थी, लेकिन संसार भर में फैली हुई कोरोना महामारी के कारण सरकार की ओर से मिठाई की दुकानों को बंद करने के आदेश दे दिए गए, जिसके बाद सरकार के आदेशों की पालना करते हुए उन्हें भी मिठाई की दुकान बंद करनी पड़ी. इस बीच उन्होंने कुछ दिनों तक मिठाई की दुकान बंद रखी, लेकिन कुछ दिनों बाद परिवार के सामने संकट आ गया.

पढ़ें- कोरोना संकटः केमिस्ट एसोसिएशन ने बढ़ाए मदद के हाथ, आमजन के लिए 5 हैंड सैनिटाइजर मशीन की भेंट

उन्होंने बताया कि जब परिवार के सामने आए रोजी-रोटी के संकट को देखते हुए सरकार की ओर से सब्जी की दुकानों को छूट देने के कारण मैंने भी परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सब्जी बेचना शुरू कर दिया है, ताकि मेरा परिवार भूखा नहीं रहे. अब सरकार ने मिठाई की दुकान खोलने के आदेश दे दिए है. ऐसे में मिठाई की दुकान में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखने पर सब्जी के ही व्यापार को आगे बढ़ाने का फैसला किया है.

वहीं, दूसरी ओर दिनेश कीर और रमेश कीर बताते हैं कि वे पूर्व में उनकी मिठाई की दुकान थी और उस दौरान दुकान पर चाट-पकौड़ी और कचौड़ी आदि की खूब बिक्री होती थी. लेकिन कोरोना संक्रमण फैलने से दुकान पर ग्राहकों की कमी आने लगी. वहीं, सरकार की ओर से मिठाई की दुकान को बंद करने के आदेश पर मिठाई की दुकान बंद करनी पड़ी, जिसके कारण वे बेरोजगार हो गए. वहीं, परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया. इसके चलते उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजबूरन सब्जी बेचनी पड़ रही है.

भूखा पेट क्या ना करवाए...काम-धंधा ना होने के कारण मजबूरन बेचनी पड़ रही सब्जी

इसी प्रकार सपोटरा कस्बे की एक विधवा महिला काड़ी कीर का कहना है कि कुछ दिन पहले ही उनका बेटे का देहांत हो गया. अब उनके परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है. सरकार की ओर से उन्हें किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिल रही है. ऐसे में भूखे पेट को भरने के लिए उन्हें मजबूरन सब्जी बेचनी पड़ रही है. यह सभी लोग आज समाज के उन सभी वर्गों के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने-आप को डगमगाने नहीं दिया और खुद को मजबूत बनाए रखा.

करौली. देश में कोरोना की ऐसी मार पड़ी कि रोज कमाकर खाने वाले लोग अब बेबस और लाचार हो गए हैं. ऐसे में वो करें तो आखिर क्या? वहीं, अपना जीवन-यापन करने के लिए अब उन लोगों ने अपना व्यवसाय और कारोबार छोड़कर सब्जियां बेचना शुरू कर दिए हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ ऐसे लोगों से उनके स्थिति और व्यवसाय बदलने के स्पष्ट कारणों को जाना है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए खुद को कमजोर होने नहीं दिया.

मजबूरी के चलते सब्जी बेचने को मजबूर लोग

इस दौरान, लॉकडाउन के बीच विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए व्यवसाय बदलकर लगभग 50 दिनों में खुद की आर्थिक स्थिति सुधारने वाले कुछ लोगों से ईटीवी भारत ने उनका हाल जानने की कोशिश की. उन लोगों का कहना है कि उन्हें अपना जीवन-यापन शुरू करने और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा. ऐसे में उन्हें अपनी वर्तमान स्थिति में सुधार लाने के लिए पहले से करते आ रहे व्यवसायिक कार्यों को बंद हो जाने के कारण धंधा बदलना पड़ा.

कोरोना महामारी से आया संकट तो मिठाई की दुकान बंद कर बेचने लगे सब्जी

पूर्व में मिठाई की दुकान चलाने वाले ग्राम पंचायत बुकना निवासी बबलू प्रजापत बताते हैं कि उनकी मिठाई की दुकान थी, लेकिन संसार भर में फैली हुई कोरोना महामारी के कारण सरकार की ओर से मिठाई की दुकानों को बंद करने के आदेश दे दिए गए, जिसके बाद सरकार के आदेशों की पालना करते हुए उन्हें भी मिठाई की दुकान बंद करनी पड़ी. इस बीच उन्होंने कुछ दिनों तक मिठाई की दुकान बंद रखी, लेकिन कुछ दिनों बाद परिवार के सामने संकट आ गया.

पढ़ें- कोरोना संकटः केमिस्ट एसोसिएशन ने बढ़ाए मदद के हाथ, आमजन के लिए 5 हैंड सैनिटाइजर मशीन की भेंट

उन्होंने बताया कि जब परिवार के सामने आए रोजी-रोटी के संकट को देखते हुए सरकार की ओर से सब्जी की दुकानों को छूट देने के कारण मैंने भी परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सब्जी बेचना शुरू कर दिया है, ताकि मेरा परिवार भूखा नहीं रहे. अब सरकार ने मिठाई की दुकान खोलने के आदेश दे दिए है. ऐसे में मिठाई की दुकान में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखने पर सब्जी के ही व्यापार को आगे बढ़ाने का फैसला किया है.

वहीं, दूसरी ओर दिनेश कीर और रमेश कीर बताते हैं कि वे पूर्व में उनकी मिठाई की दुकान थी और उस दौरान दुकान पर चाट-पकौड़ी और कचौड़ी आदि की खूब बिक्री होती थी. लेकिन कोरोना संक्रमण फैलने से दुकान पर ग्राहकों की कमी आने लगी. वहीं, सरकार की ओर से मिठाई की दुकान को बंद करने के आदेश पर मिठाई की दुकान बंद करनी पड़ी, जिसके कारण वे बेरोजगार हो गए. वहीं, परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया. इसके चलते उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजबूरन सब्जी बेचनी पड़ रही है.

भूखा पेट क्या ना करवाए...काम-धंधा ना होने के कारण मजबूरन बेचनी पड़ रही सब्जी

इसी प्रकार सपोटरा कस्बे की एक विधवा महिला काड़ी कीर का कहना है कि कुछ दिन पहले ही उनका बेटे का देहांत हो गया. अब उनके परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है. सरकार की ओर से उन्हें किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिल रही है. ऐसे में भूखे पेट को भरने के लिए उन्हें मजबूरन सब्जी बेचनी पड़ रही है. यह सभी लोग आज समाज के उन सभी वर्गों के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने-आप को डगमगाने नहीं दिया और खुद को मजबूत बनाए रखा.

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