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विश्व मातृभाषा दिवस: राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार, छलका साहित्कारों का दर्द - RAJASTHANI LANGUAGE

दुनियाभर में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन राजस्थान में राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार.

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 21, 2025, 1:24 PM IST

Updated : Feb 21, 2025, 1:58 PM IST

जयपुर. हिंदी के प्रसिद्ध रचनाकार भारतेंदु हरिशचंद्र ने मातृभाषा के लिए कहा है, 'मातृभाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा दूर नहीं होती'. राजस्थान के लोगों को लंबे समय से मातृभाषा (राजस्थानी) को मान्यता का इंतजार है. यह इंतजार अब उनके दिल में शूल बनकर चुभने लगा है. आज जब दुनियाभर में मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है. प्रदेश के लोगों की यह पीड़ा खुलकर सामने आ गई है. दरअसल, हर साल 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. यूनेस्को ने विश्व में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिए 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मानाने की स्वीकृति दी थी. लेकिन आठ करोड़ से अधिक आबादी वाले राजस्थान की पीड़ा यह है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिलने से इसे वह हक नहीं मिल पाया है. जिसकी यह भाषा हकदार है.

पुरानी और समृद्ध भाषाओं में एक है राजस्थानी : राजस्थानी के प्रसिद्ध रचनाकार केसी मालू का कहना है, राजस्थानी सबसे पुरानी और सबसे समृद्ध भाषा है. हर तरह का साहित्य राजस्थानी भाषा में रचा गया है. वीर रस, शृंगार रस, वात्सल्य रस, भक्ति रस जैसे सभी रसों में रचनाओं का एक विपुल कोष है. जो साहित्य के हर मापदंड पर खरी उतरती हैं. पद्य, गद्य, उपन्यास, कहानी और वार्ता जैसी विधा में साहित्य रचना की गई है. फिर भी आज तक मान्यता की राह देख रहे हैं. यह हम सबके लिए सोचनीय विषय है.

राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें: राजस्थानी भाषा की मान्यता: छलका साहित्यकारों का दर्द, कहा- राजस्थानी भाषा को मिले उसका हक

राजीनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, युवाओं का नुकसान : वे बोले, राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलने का एक बड़ा कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है. इसके चलते राजस्थान की युवा पीढ़ी को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. बहुत से युवा राजस्थानी पढ़ना चाहते हैं. लेकिन जब वे आगे भविष्य की तरफ नजर उठाते हैं तो सोचते हैं कि इसमें नौकरी की जगह नहीं है. जबकि राजस्थानी को मान्यता मिलने पर प्रदेश के लोगों को ज्यादा अवसर मिलेंगे.

सरकार नहीं सुने तो लोग आगे आएं : उन्होंने कहा, आज वोट मांगते समय सभी नेता राजस्थानी में बात करते हैं. पीएम मोदी भी जब राजस्थान आते हैं तो घणी खम्मा से संबोधन शुरू करते हैं. लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ती है. वे बोले, प्रदेश सरकार को राजस्थानी भाषा को पढ़ाई में शामिल करना चाहिए और द्वितीय भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए. इसके लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की बाध्यता नहीं है. इच्छाशक्ति हो तो ऐसा किया जा सकता है. सरकार आगे नहीं आए तब तक प्रदेश के लोगों को इसका ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करने पर जोर देना चाहिए.

भाषा, परंपरा और संस्कृति ही बनाती है राजस्थान
भाषा, परंपरा और संस्कृति ही बनाती है राजस्थान (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

रोटी और रोजगार से जुड़ा है मुद्दा : साहित्यकार डॉ. भारत ओला का कहना है, राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा लंबे समय से अटका है. केंद्रीय साहित्य अकादमी, यूजीसी, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, आकाशवाणी-दूरदर्शन, भाषा की सभी अकादमियों ने राजस्थानी को मान्यता दे रखी है. सरकार को भी इसे आठवीं अनुसूची में जोड़ना चाहिए. अब तो डबल इंजन की सरकार है. केंद्र सरकार इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करे और प्रदेश की सरकार इसे द्वितीय भाषा के रूप में स्वीकृति दे. यह केवल साहित्यकारों की मांग नहीं है. बल्कि यह मुद्दा रोटी और रोजगार से जुड़ा है. यह संस्कृति, संस्कार और परंपराओं से जुड़ी मांग है.

नाम राजस्थान लेकिन भाषा का सम्मान नहीं
नाम राजस्थान लेकिन भाषा का सम्मान नहीं (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें: 'हिंदी केवल भाषा नहीं, यह हमारी संस्कृति, सोच और विचारों को सशक्त करती है' : सीएम भजनलाल

नाम राजस्थान लेकिन भाषा का सम्मान नहीं : पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार सीपी देवल का कहना है, राजस्थान का सांस्कृतिक परिदृश्य भी बिलकुल स्पष्ट नहीं है. आजादी के बाद राजस्थान बनने में (एकीकरण में) 9 साल लगे. जहां राजस्थानी बोली जाती थी. उन हिस्सों को नाम तो राजस्थान दिया लेकिन हमने अपनी मातृभाषा का वो सम्मान नहीं किया. हमारे नेताओं और नीति निर्धारकों ने हिंदी को राजस्थान की आधिकारिक भाषा बना दिया और राजस्थानी को भुला दिया.

राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार
राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

भाषा, परंपरा और संस्कृति ही बनाती है राजस्थान: साहित्यकार देवल कहते हैं राजस्थान कोई भूभाग का टुकड़ा मात्र नहीं है. परंपरा, भाषा और संस्कृति ही प्रदेश को राजस्थान बनाती है. इनके बिना प्रदेश को राजस्थान कहने में भी हमें संकोच होगा. राज्य सरकार से भी मांग है कि राजस्थानी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जाए. ताकि नई शिक्षा नीति को सही तरीके से लागू किया जा सके. इससे राजस्थान में बड़ी संख्या में निरक्षर होने का दाग भी मिट सकेगा. मातृभाषा पढ़ाने का माध्यम होगा तो प्रांत में कोई भी अनपढ़ या निरक्षर नहीं रहेगा. विकास के सारे रास्ते खुल जाएंगे.

राजस्थानी में वोट मांगते हैं लेकिन शपथ नहीं ले सकते : देवल ने कहा कि यह 200 विधायक जब गांवों में वोट मांगने जाते हैं तो राजस्थानी में बात करके वोट मांगते हैं. वो ही भाषा है. जिसमें वोट मांगते हैं. लेकिन विधानसभा में जब शपथ लेने जाते हैं तो स्पीकर कहते हैं कि यह संविधान के विरुद्ध है. यह कैसा मखौल है. छत्तीसगढ़ में विधायकों ने वहां की स्थानीय भाषा में शपथ ली. वो संविधान में है क्या. असल मुद्दा यही है कि राजस्थानी भाषा को उसका हक मिले और नई शिक्षा नीति लागू कर उसमें पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई राजस्थानी भाषा में करवाने की व्यवस्था की जाए.

पढ़ें: अल्लाह जिलाई बाई का वो मांड गायन जो बन गया कालजयी, लेकिन राजस्थानी भाषा को आज भी नहीं मिला संवैधानिक दर्जा

युवाओं ने छेड़ी मुहिम : राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर लंबे समय से चली आ रही मांग को लेकर अब युवाओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इसे लेकर मुहिम छेड़ी है. विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर आज 21 फरवरी को राजस्थानी भाषा को मान्यता देने और इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए ट्रेंड चलाया जा रहा है. इसका मकसद इस मुहिम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना है.

जयपुर. हिंदी के प्रसिद्ध रचनाकार भारतेंदु हरिशचंद्र ने मातृभाषा के लिए कहा है, 'मातृभाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा दूर नहीं होती'. राजस्थान के लोगों को लंबे समय से मातृभाषा (राजस्थानी) को मान्यता का इंतजार है. यह इंतजार अब उनके दिल में शूल बनकर चुभने लगा है. आज जब दुनियाभर में मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है. प्रदेश के लोगों की यह पीड़ा खुलकर सामने आ गई है. दरअसल, हर साल 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. यूनेस्को ने विश्व में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिए 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मानाने की स्वीकृति दी थी. लेकिन आठ करोड़ से अधिक आबादी वाले राजस्थान की पीड़ा यह है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिलने से इसे वह हक नहीं मिल पाया है. जिसकी यह भाषा हकदार है.

पुरानी और समृद्ध भाषाओं में एक है राजस्थानी : राजस्थानी के प्रसिद्ध रचनाकार केसी मालू का कहना है, राजस्थानी सबसे पुरानी और सबसे समृद्ध भाषा है. हर तरह का साहित्य राजस्थानी भाषा में रचा गया है. वीर रस, शृंगार रस, वात्सल्य रस, भक्ति रस जैसे सभी रसों में रचनाओं का एक विपुल कोष है. जो साहित्य के हर मापदंड पर खरी उतरती हैं. पद्य, गद्य, उपन्यास, कहानी और वार्ता जैसी विधा में साहित्य रचना की गई है. फिर भी आज तक मान्यता की राह देख रहे हैं. यह हम सबके लिए सोचनीय विषय है.

राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें: राजस्थानी भाषा की मान्यता: छलका साहित्यकारों का दर्द, कहा- राजस्थानी भाषा को मिले उसका हक

राजीनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, युवाओं का नुकसान : वे बोले, राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलने का एक बड़ा कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है. इसके चलते राजस्थान की युवा पीढ़ी को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. बहुत से युवा राजस्थानी पढ़ना चाहते हैं. लेकिन जब वे आगे भविष्य की तरफ नजर उठाते हैं तो सोचते हैं कि इसमें नौकरी की जगह नहीं है. जबकि राजस्थानी को मान्यता मिलने पर प्रदेश के लोगों को ज्यादा अवसर मिलेंगे.

सरकार नहीं सुने तो लोग आगे आएं : उन्होंने कहा, आज वोट मांगते समय सभी नेता राजस्थानी में बात करते हैं. पीएम मोदी भी जब राजस्थान आते हैं तो घणी खम्मा से संबोधन शुरू करते हैं. लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ती है. वे बोले, प्रदेश सरकार को राजस्थानी भाषा को पढ़ाई में शामिल करना चाहिए और द्वितीय भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए. इसके लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की बाध्यता नहीं है. इच्छाशक्ति हो तो ऐसा किया जा सकता है. सरकार आगे नहीं आए तब तक प्रदेश के लोगों को इसका ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करने पर जोर देना चाहिए.

भाषा, परंपरा और संस्कृति ही बनाती है राजस्थान
भाषा, परंपरा और संस्कृति ही बनाती है राजस्थान (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

रोटी और रोजगार से जुड़ा है मुद्दा : साहित्यकार डॉ. भारत ओला का कहना है, राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा लंबे समय से अटका है. केंद्रीय साहित्य अकादमी, यूजीसी, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, आकाशवाणी-दूरदर्शन, भाषा की सभी अकादमियों ने राजस्थानी को मान्यता दे रखी है. सरकार को भी इसे आठवीं अनुसूची में जोड़ना चाहिए. अब तो डबल इंजन की सरकार है. केंद्र सरकार इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करे और प्रदेश की सरकार इसे द्वितीय भाषा के रूप में स्वीकृति दे. यह केवल साहित्यकारों की मांग नहीं है. बल्कि यह मुद्दा रोटी और रोजगार से जुड़ा है. यह संस्कृति, संस्कार और परंपराओं से जुड़ी मांग है.

नाम राजस्थान लेकिन भाषा का सम्मान नहीं
नाम राजस्थान लेकिन भाषा का सम्मान नहीं (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें: 'हिंदी केवल भाषा नहीं, यह हमारी संस्कृति, सोच और विचारों को सशक्त करती है' : सीएम भजनलाल

नाम राजस्थान लेकिन भाषा का सम्मान नहीं : पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार सीपी देवल का कहना है, राजस्थान का सांस्कृतिक परिदृश्य भी बिलकुल स्पष्ट नहीं है. आजादी के बाद राजस्थान बनने में (एकीकरण में) 9 साल लगे. जहां राजस्थानी बोली जाती थी. उन हिस्सों को नाम तो राजस्थान दिया लेकिन हमने अपनी मातृभाषा का वो सम्मान नहीं किया. हमारे नेताओं और नीति निर्धारकों ने हिंदी को राजस्थान की आधिकारिक भाषा बना दिया और राजस्थानी को भुला दिया.

राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार
राजस्थानी भाषा को मान्यता का इंतजार (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

भाषा, परंपरा और संस्कृति ही बनाती है राजस्थान: साहित्यकार देवल कहते हैं राजस्थान कोई भूभाग का टुकड़ा मात्र नहीं है. परंपरा, भाषा और संस्कृति ही प्रदेश को राजस्थान बनाती है. इनके बिना प्रदेश को राजस्थान कहने में भी हमें संकोच होगा. राज्य सरकार से भी मांग है कि राजस्थानी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जाए. ताकि नई शिक्षा नीति को सही तरीके से लागू किया जा सके. इससे राजस्थान में बड़ी संख्या में निरक्षर होने का दाग भी मिट सकेगा. मातृभाषा पढ़ाने का माध्यम होगा तो प्रांत में कोई भी अनपढ़ या निरक्षर नहीं रहेगा. विकास के सारे रास्ते खुल जाएंगे.

राजस्थानी में वोट मांगते हैं लेकिन शपथ नहीं ले सकते : देवल ने कहा कि यह 200 विधायक जब गांवों में वोट मांगने जाते हैं तो राजस्थानी में बात करके वोट मांगते हैं. वो ही भाषा है. जिसमें वोट मांगते हैं. लेकिन विधानसभा में जब शपथ लेने जाते हैं तो स्पीकर कहते हैं कि यह संविधान के विरुद्ध है. यह कैसा मखौल है. छत्तीसगढ़ में विधायकों ने वहां की स्थानीय भाषा में शपथ ली. वो संविधान में है क्या. असल मुद्दा यही है कि राजस्थानी भाषा को उसका हक मिले और नई शिक्षा नीति लागू कर उसमें पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई राजस्थानी भाषा में करवाने की व्यवस्था की जाए.

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युवाओं ने छेड़ी मुहिम : राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर लंबे समय से चली आ रही मांग को लेकर अब युवाओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इसे लेकर मुहिम छेड़ी है. विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर आज 21 फरवरी को राजस्थानी भाषा को मान्यता देने और इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए ट्रेंड चलाया जा रहा है. इसका मकसद इस मुहिम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना है.

Last Updated : Feb 21, 2025, 1:58 PM IST
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