हिण्डौन सिटी (करौली). नागरिकता संशोधन एक्ट को वापस लिए जाने को लेकर रविवार को जमीयत उलमा-ए-हिंद के पदाधिकारियों सहित काफी संख्या में लोग ईदगाह में एकत्रित हुए. इस दौरान एक विशाल बैठक का आयोजन किया गया. उसके बाद जमीअत उलमा ए हिन्द के समर्थकों ने केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करते हुए राष्ट्रपति के नाम एसडीएम सुरेश यादव को ज्ञापन सौंपकर विधेयक को अमान्य करते हुए इससे वापस लिए जाने की मांग की.
ज्ञापन में उल्लेख करते हुए हिण्डौन सदर अब्दुल वाहिद ने बताया कि नागरिकता संशोधन कानून भारतीय नागरिकता का निर्धारण करने के लिए कानूनी मापदंड के रूप में धर्म का उपयोग करता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और15 के विपरीत है.
इस कानून के समर्थन में केंद्र सरकार के गृहमंत्री ने कहा है कि इस कानून का इरादा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हमारे भारत देश में आने वाले वहां के अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को भारतीय नागरिकता देना रहेगा. जो कि हिन्दू, जैन, सिख, बौद्ध या अन्य किसी धर्म के अनुयायी हो सकते हैं.
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वहीं, दूसरी ओर ऐसे लोग जो 1971 से भारत के निवासी होने का प्रमाण नहीं दे पाएंगे, उनमें से मुसलमानों के अलावा अन्य धर्म के लोगों को इस कानून की ओर से भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी. इसलिए यह धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला कानून भारतीय संविधान की धर्म निरपेक्ष भावना के विरुद्ध है. यह कानून असम समझौता 1985 जिसके अनुसार विदेशी का पता लगाने के लिए जो तारीख तय की गई थी उसका भी उल्लंघन करता है.
संविधान की मूल भावना के विरुद्ध कानून बनाने के केंद्र की मोदी सरकार की ओर से किए गए इस कृत्य की हम निंदा करते हैं. हमारे देश के संविधान को इस सरकार से खतरा है. इस मामले में रविवार को राष्ट्रपति के नाम एसडीएम को ज्ञापन सौंपा. अगर हमारी मांग पूरी नही हुई तो नियमित रूप से जमीयत की ओर से लोकतांत्रिक तरीके से समय-समय पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे.